अयोध्या मामले को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस एस के कौल की पीठ के सामने सुनवाई के लिए चार जनवरी को सूचीबद्ध किया गया है। डबल बेंच के इस मामले में सुनवाई के लिए तीन जजों की पीठ का गठन करने की संभावना है।
सुप्रीम कोर्ट चार जनवरी को रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि मालिकाना हक मामले से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। इस मामले को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस एस के कौल की पीठ के सामने सूचीबद्ध किया गया है।पीठ के इस मामले में सुनवाई के लिए तीन जजों की पीठ का गठन करने की संभावना है। इस बीच, केंद्र सरकार ने भी अपना रुख साफ कर दिया है। सरकार चाहती है कि अयोध्या-बाबरी विवाद मामले की रोजाना सुनवाई हो। केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा है कि सरकार चाहती है कि मामले को रोजाना के आधार पर सुना जाए।
Union Minister Prakash Javadekar said that the central government wants the Ram Janmabhoomi-Babri Masjid title suit to be heard on day to day basis in the court
Read Story | https://t.co/8rS890ExKe pic.twitter.com/O7XGEfGRvB
उधर लखनऊ में एक कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने भी सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या के रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट की तरह करने की अपील की है। उन्होंने कहा कि जब सबरीमला और समलैंगिकता के मामले में कोर्ट जल्द निर्णय दे सकता है तो अयोध्या मामले पर क्यों नहीं। प्रसाद ने कहा कि हम बाबर की इबादत क्यों करें...बाबर की इबादत नहीं होनी चाहिए। उन्होंने संविधान की प्रति दिखाते हुए कहा कि इसमें राम चंद्र जी, कृष्ण जी और अकबर का भी जिक्र है, लेकिन बाबर का जिक्र नहीं है। यदि हिंदुस्तान में इस तरह की बातें कर दो तो अलग तरह का बखेड़ा खड़ा कर दिया जाता है।
चार दीवानी वादों पर वर्ष 2010 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 अपील दायर हुई हैं। हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया था कि 2.77 एकड़ भूमि को तीन पक्षों सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर बराबर बांटा जाए। शीर्ष अदालत ने 29 अक्टूबर को जनवरी के पहले सप्ताह में ‘उचित पीठ’ के सामने मामले को सुनवाई के लिए रखने को कहा था जो सुनवाई का कार्यक्रम तय करेगी।
बाद में, तत्काल सुनवाई की मांग को लेकर याचिका दायर की गई थी लेकिन शीर्ष अदालत ने अनुरोध ठुकराते हुए कहा था कि उसने इस मामले की सुनवाई के संबंध में 29 अक्टूबर को आदेश पारित कर दिया है। जल्द सुनवाई के अनुरोध वाली याचिका अखिल भारतीय हिन्दू महासभा ने दायर की थी जो इस मामले के मुख्य याचिकाकर्ताओं में शामिल एम सिद्दीक के कानूनी वारिसों द्वारा दायर अपील के प्रतिवादियों में शामिल है।
शीर्ष अदालत के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 27 सितंबर को 2:1 के बहुमत वाले फैसले में उसकी 1994 के फैसले की इस टिप्पणी पर पुनर्विचार के लिए इसे पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेजने से इंकार कर दिया था कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने 29 अक्टूबर को कहा था कि इस मामले की सुनवाई जनवरी के पहले हफ्ते में 'उपयुक्त बेंच' में होगी, जो सुनवाई की तारीख पर फैसला लेगी। बाद में, कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर मामले की शीघ्र सुनवाई की मांग की गई थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इससे इनकार करते हुए कहा कि वह मामले की सुनवाई को लेकर 29 अक्टूबर को पहले ही फैसला दे चुका है।अखिल भारत हिंदू महासभा ने मामले की जल्द सुनवाई के लिए याचिका डाली थी। (इनपुट भाषा से भी)