कुछ खास रियायतों के साथ पूर्ण बजट की तर्ज पर पेश हो सकता है इस बार का बजट

By Ashish Chandorker  |  First Published Jan 28, 2019, 4:35 PM IST

इस बार की केन्द्र सरकार का आखिरी बजट फरवरी की एक तारीख को पेश किया जाएगा। मोदी सरकार ने यह संकेत दिया है कि इस बार के बजट लेखानुदान होने की बजाए पूर्ण बजट की तरह पेश किया जा सकता है। संसद का सत्र 13 फरवरी तक है, इसलिए फाइनेन्स बिल पर बहस करने और उसे पास कराने के लिए पर्याप्त समय नहीं है। 

अरुण जेटली इन दिनों ईलाज के लिए अमेरिका गए हुए हैं। इसलिए पहली बार पीयूष गोयल केन्द्रीय बजट पेश करेंगे। जिन्होंने संकेत दिया है कि यह बजट पूर्ण बजट की तरह पेश किया जाएगा। इसकी वजह से इस बार के बजट का राजनीतिक महत्व बेहद ज्यादा हो गया है। 

हालांकि मोदी सरकार ने सालाना बजट का महत्व कम कर दिया है, क्योंकि वह अहम फैसलों के लिए बजट का इंतजार नहीं करती। इसलिए अब सरकार बजट का प्रयोग कुछ खास क्षेत्रों को राहत पहुंचाने के लिए किया जाता है। 

किसी खास योजना या फिर किसी विशेष मतदाता क्षेत्र को राहत पहुंचाने की कोशिश को वित्तीय व्यवस्था के आलोक में देखा जाना जरुरी है।  बहुत सारी संस्थाओं ने राजकोषीय घाटे बढ़ने का अनुमान लगाया है – हाल ही में बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच ने अनुमान लगाया कि राजकोषीय घाटा 3.7 प्रतिशत रह सकता है, जो कि वास्तविक अनुमान से 40 बेसिस प्वाइंट ज्यादा है। 

सरकार को इन परिस्थितियों का मूल्यांकन दो तरीके से करना चाहिए। सबसे पहले, मैक्रोइकॉनॉमिक मापदंडों के साथ काफी हद तक स्थिर लेकिन 2017-18 से कम आकर्षक, 
राजकोषीय घाटे का क्या मतलब होगा? दूसरे, अगर राजकोषीय घाटे के टूटने की संभावना है, तो क्या यह बेहतर होगा कि 30-40 बीपीएस अंतर के बजाए 5-10 बीपीएस का उपयोग किया जाए?

भारत की मैक्रोइकोनॉमिक स्थिति 2017-18 में सर्वोत्तम थी- विदेशी मुद्रा भंडार 11.3 महीनों के आयात के लिए पर्याप्त था। मार्च 2017 से 2018 के बीच करेंट एकाउंट डेफिसिट जीडीपी के 0.6 से 2 फीसदी के बीच था और ज्यादातर समय तक भारतीय रुपए की स्थिति अमेरिकी डॉलर के मुकाबले स्थिर थी। 

पिछले साल तेल की कीमतों का उतार चढ़ाव और निर्यात में ठहराव की वजह से व्यापक आर्थिक स्थिरता को थोड़ा नुकसान पहुंचा। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार स्थिर है और साढ़े नौ महीनों के आयात के लिए पर्याप्त है। 

अमेरिकी डॉलर और रुपया 72 अंको के आस पास स्थिर है और तेल की कीमतें थोड़े समय के लिए नीचे आई हैं, यह एक बाहरी मामला है जिसपर भारत का कोई नियंत्रण नहीं है। 

अच्छी बात यह है कि मुद्रास्फीति सौम्य रही है, इस हद तक कि खाद्यान्न की कीमतें अपस्फीति के क्षेत्र में पहुंच गई हैं। यूएस फेड पिछले साल के चार गुना के मुकाबले इस साल मात्र दो बार कीमतें बढ़ा सकता है, या कम से कम पूंजी के बहिर्गमन को पकड़े रहे। 

सरकार ने इस मिश्रित पृष्ठभूमि के खिलाफ राजकोषीय घाटे के लक्ष्य की निगरानी के निहितार्थ का मूल्यांकन जरुर किया होगा। आखिरकार, एक चुनावी वर्ष में, अर्थशास्त्र की किताबों में राजनीतिक विचार प्रबल रुप लें तो इसमें किसको आश्चर्य हो सकता है। 

किसी भी परिस्थिति में, भारत के घाटे को स्थानीय रूप से वित्तपोषित किया जाता है, इसलिए एक वैकल्पिक विचार प्रक्रिया है कि राजकोषीय घाटे का लक्ष्य - 3%, जिसे विश्व स्तर पर एक गोल्डन नंबर के रूप में स्वीकार किया जाता है – लेकिन यह भारत के लिए कम महत्वपूर्ण है

अगर सरकार चुनाव मे जाने का रास्ता तैयार कर रही है, ऐसे में किन क्षेत्रों को प्राथमिकता में रखना बेहतर हो सकता है। 

पहली बात तो यह है कि  किसानों के लिए राहत पैकेज पहली प्राथमिकता में रहेगा।  ग्रामीण अर्थव्यवस्था की सुस्ती और कांग्रेस की कर्जमाफी के वायदों- हालांकि कर्नाटक, मध्य प्रदेश और पंजाब में इसके कार्यान्वयन की संदिग्धता स्पष्ट दिखी है- केन्द्र सरकार विपक्ष की ओर चल रही हवा को अपनी ओर खींचना चाहेगी। 
सभी विश्लेषक इस बात पर एकमत हैं कि गरीब किसानों के लिए डायरेक्ट कैश ट्रांसफर स्कीम लाई जा सकती है। यह कार्यक्रम सिर्फ छोटे किसानों के लिए हो सकता है, जिनके पास एक या दो हेक्टेयर की ही जमीन है। 

दूसरा, कुछ डायरेक्ट टैक्स रिफॉर्म भी इस बजट में दिखाई दे सकते हैं। हालांकि एक व्यापक प्रत्यक्ष कर संहिता की समीक्षा चल रही है, यह अभ्यास अगले साल ही समाप्त होगा।
अंतरिम उपाय के रूप में, सरकार या तो कराधान सीमा को बढ़ा सकती है या धारा 80 C के तहत निवेश की सीमा को बढ़ाने पर विचार कर सकती है ताकि वेतनभोगी वर्ग को विशिष्ट निवेशों के माध्यम से कर छूट प्राप्त हो सके। हालांकि वेतनभोगी वर्ग हमेशा असंतोषी होता है, लेकिन यह जोर शोर से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को वोट भी  देता है। 


तीसरा, सरकार वित्तीय वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही में विशिष्ट खर्च के उपाय प्रदान कर सकती है। जबकि नई सरकार बाद में वर्ष में खातों का मिलान करेगी,  इस सरकार के पास पहली चौथाई के लिए अधिक खर्च करने का रास्ता भी खुला है। जिसको कि अगले साल की बजट घोषणाओं के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है, प्रक्रिया फरवरी से ही शुरु हो जाएगी, लेकिन भुगतान 31 मार्च के बाद किया जा सकता है। ये व्यय मार्की परियोजनाओं पर हो सकते हैं, जहां कार्यक्रमों की घोषणा एक महीने पहले की जाती है लेकिन उनकी जोर शोर से शुरुआत एक महीने बाद होती है। 

चौथा, अपने करियर के मध्य में पहुंचे वेतनभोगी वर्ग के लिए कुछ लक्षित प्रोत्साहन हो सकती है। राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) कटौती पर सीमा बढ़ाई जा सकती है, जबकि वरिष्ठ नागरिकों के लिए अधिक कर प्रोत्साहन  दिया जा सकता है। यह अपने करियर के मध्य और आखिर में पहुंचे वेतनभोगी वर्ग की बचत को प्रोत्साहित करेगा।  

पांचवा, रियल स्टेट सेक्टर को कुछ नई राहतें मिल सकती हैं। यह सेक्टर नोटबंदी के बाद से ही मुश्किलों में है।  हालांकि खरीद में कम नकदी का इस्तेमाल अच्छा है, लेकिन यह नए प्रोजेक्ट्स और सामान्य निर्माण की गतिविधियों को धीमा करता है। किफायती आवास प्रदान करने पर सरकार ने मुख्य रुप से फोकस किया है। नए मकान की खरीद को प्रोत्साहन देने से भी निर्माण क्षेत्र को मदद मिल सकती है।

हालांकि बजट पेश किए जाने में अब आखिरी कुछ दिन ही बचे हैं। ऐसे में पीयूष गोयल के सामने विवादास्पद कराधान के मुद्दों का एक तत्व भी हो सकता है। हालांकि वाणिज्य मंत्रालय ने हाल ही में एंजेल टैक्स प्रावधानों के बारे में दिशा-निर्देश जारी किए हैं, लेकिन इससे भारतीय स्टार्ट अप के शुरुआती निवेश प्रभावित हो सकते हैं। 
 
इस तरह के मामले औऱ जीएसटी से संबंधित दूसरे मामले जिसमें यदि तर्कसंगत मुनाफाखोरी औऱ दूसरी प्रक्रियाएं शामिल नहीं है, उसपर विचार किया जा सकता है। 

मोदी सरकार का बजट चौंका सकता है औऱ यह बेहद रुढ़िवादी भी हो सकता है, यहां तक कि इसे रुढ़िवादी मोदी समर्थकों की आलोचना भी झेलनी पड़ सकती है। पीएम मोदी अपनी पहली पारी के आखिरी समय में अर्थशास्त्र के पंडित से ज्यादा राजनीतिज्ञ दिखना पसंद करेंगे। 

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