अपने डीएनए में सुधार के लिए चीन बांध रहा भारत से उम्मीद?

By Rahul MisraFirst Published Apr 20, 2019, 3:40 PM IST
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उभरती वैश्विक व्यवस्था में आज भी चीन को संदेह की नजर से देखा जा रहा है और राष्ट्रपति शी जिनपिंग का ड्रीम प्रोजेक्ट वन बेल्ट वन रोड परियोजना (बॉर्डर रोड इनीशिएटिव) दक्षिण एशिया में गंभीर चुनौतियों से घिरा है.

भारत और चीन दुनिया सबसे पुरानी सभ्यताएं होने के साथ-साथ दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शुमार हैं. जहां भारत को इतिहास में मेल्टिंग पॉट का वह दर्जा प्राप्त था वहीं मौजूदा वैश्विक व्यवस्था में अमेरिका इसका दावा करता है. लेकिन चीन के लिए वैश्विक व्यवस्था में स्थिति कमोवेश पहले जैसी है, आइरन कर्टेन के पीछे खड़ा देश. यही वजह है कि उभरती वैश्विक व्यवस्था में आज भी चीन को संदेह की नजर से देखा जा रहा है और राष्ट्रपति शी जिनपिंग का ड्रीम प्रोजेक्ट वन बेल्ट वन रोड परियोजना (बॉर्डर रोड इनीशिएटिव) दक्षिण एशिया में गंभीर चुनौतियों से घिरा है.

पिछले साल की तरह अगले हफ्ते बीजिंग में आयोजित हो रही बेल्ट एंड रोड फोरम में भारत शामिल नहीं हो रहा है. भारत के अलावा अमेरिका और कई यूरोपीय देश चीन के इस फोरम को तरजीह नहीं दे रहे हैं. जहां वैश्विक व्यवस्था में अधिकांश देश चीन के इस कार्यक्रम को संदिग्ध मान रहे हैं वहीं भारत ने एक बार फिर यह कहते हुए इस फोरम से दूरी बना रखी है कि इस परियोजना से भारत की संप्रभुता और अखंडता को बड़ा खतरा है.

क्यों चीन की इस सड़क परियोजना के पक्ष में नहीं है भारत 

1.    यह परियोजना चीन की तरफ से पहली कोशिश है जिसका असर पूरी दुनिया पर अगले सैकड़ों वर्ष तक पड़ना तय है. अपनी सड़क परियोजना के जरिए चीन एशिया और यूरोप के लिए ड्रेड रूट निर्धारित करने की तैयारी कर रहा है.

2.    वैश्विक व्यवस्था में चीन एक अहम मैन्यूफैक्चरिंग हब है और इस सड़क परियोजना के बाद उसके लिए अपना उत्पादित माल यूरोप और एशियाई देशों तक पहुंचाना बेहज आसान और अधिक फायदेमंद हो जाएगा. वहीं एशिया और यूरोप के जिन हिस्सों से चीन की यह सड़क जाएगी उन देशों को चीन की बराबरी करने के लिए उत्पादन छमता में चीन को चुनौती देनी पड़ेगी.

3.    चीन के इस सड़क परियोजना का अमेरिका खुलकर विरोध कर रहे हैं. जहां पिछले साल बीआरआई फोरम से अमेरिका दूर रहा वहीं इस साल भी वह अपने निचले स्तर के अधिकारियों को शरीक होने के लिए बेझ रहा है. इस परियोजना के तहत चीन की कवायद को देखते हुए बीते एक साल के दौरान अमेरिका और चीन का द्विपक्षीय कारोबार ठप पड़ा है और दोनों देश अभी नया कारोबारी समझौता नहीं कर पा रहे हैं. वहीं ठप कारोबार के चलते चीन को कारोबार में बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है.

4.    चीन की इस सड़क परियोजना का एक अहम चरण पाकिस्तान से होकर गुजरना प्रस्तावित है. हालांकि इस चरण में CPEC पाक अधिकृत कश्मीर के क्षेत्र से प्रस्तावित है. इसे लेकर भारत ने चीन के सामने विरोध दर्ज किया है कि यह उसकी संप्रभुता का हनन है. पाकिस्तान की साजिश है कि वह इस कॉरिडोर को अपने कब्जे वाले कश्मीर से निकालकर कश्मीर के इस हिस्से में भारत का पक्ष कमजोर कर देगा.

5.    चीन ने 3-4 दशकों के दौरान दुनिया का मैन्यूफैक्चरिंग हब बनते हुए खुद को शीर्ष अर्थव्यवस्था में शुमार कर लिया है. हालांकि इसके लिए चीन ने पश्चिमी देशों की टेक्नोलॉजी के प्रोटोटाइप और सस्ती-घटिया मैन्यूफैक्चरिंग का सहारा लेने का काम किया है. बहरहाल, वैश्विक मामलों के जानकारों का दावा है कि बॉर्डर रोड इनीशिएटिव राष्ट्रपति शी जिनपिंग के दिमाग की ऐसी उपज है जिसके सहारे चीन की कवायद वैश्विक कारोबार पर सैकड़ों वर्षों तक अपनी साख जमाने की है. हालांकि चीन की इस कोशिश के खतरनाक परिणाम आने वाले दशकों में देखने को मिल सकते हैं.

6.    वहीं, आयरन कर्टेन के पीछे खड़े चीन की मौजूदा वैश्विक व्यवस्था में यह भी सच्चाई है कि चीन दुनिया के जिस क्षेत्र अथवा देश के साथ काम करता है, उसपर कर्ज और नियमों की ऐसी शर्तों को थोपता है कि उसकी कारोबारी संप्रभुता चीन के पास हमेशा के लिए गिरवी हो जाती है.

गौरतलब है कि बीते एक साल के दौरान चीन अपनी इस सड़क परियोजना के लिए वैश्विक सहमति जुटाने में लगा है. लेकिन अब उसे आभास हो चुका है कि बिना भारत को साथ लाए उसके लिए प्राचीन सिल्क रूट को पुनर्जीवित करना संभव नहीं होगा. लिहाजा, अगले हफ्ते बीजिंग में आयोजित बीआरआई फोरम में निमंत्रण के साथ चीन ने भारत को आश्वस्त करने की कवायद की है कि संप्रभुता की उसकी शिकायत पर वह बातचीत करने के लिए तैयार है.

वहीं सड़क परियोजना के पाकिस्तान चरण में आ रही आर्थिक दिक्कतों में वह पाकिस्तान को भी मनाने में जुटा है कि चीन सरकार पाकिस्तान के फायदे पर नए सिरे से बात करने के लिए भी तैयार है. गौरतलब है कि पाकिस्तान में इमरान खान के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद कहा गया था कि पूर्व की पाकिस्तान सरकार ने चीन के फायदे के लिए सीपीईसी करार किया है और लंबी अवधि में पाकिस्तान को सिर्फ नुकसान उठाना पड़ सकता है.

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