देश के विभाजन के आरोप से बचने के लिए जिन्ना और सावरकर को दोष देती है कांग्रेस

By Team MyNation  |  First Published Dec 14, 2019, 6:06 PM IST

 दो राष्ट्र का सिद्धांत पहली बार 1880 के दशक में सर सैयद अहमद खान द्वारा प्रस्तावित किया गया था जो एक प्रमुख मुस्लिम सुधारक थे। वास्तव में, गांधी द्वारा मुस्लिम तुष्टिकरण नीति लागू करने से बहुत पहले, हिंदू और मुस्लिम अपने आपसी मतभेदों से अवगत थे।

हाल ही में हमें संसद में दो राष्ट्र के सिद्धांत पर हंगामा देखने को मिला। सवाल उठाए जा रहे थे कि दो राष्ट्र सिद्धांत के लिए कौन जिम्मेदार था। गृह मंत्री श्री अमित शाह ने विभाजन के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया और कांग्रेस ने इसका पूरा दोष क्रांतिकारी वीर सावरकर पर थोपा। जबकि सच्चाई इससे मेल नहीं खाती है। लोगों ने इतिहास को अपने तरीके से पेश किया और प्रचार किया। जबकि वास्तव में भारत के विभाजन जो जिम्मेदार थे। उनके बारे में कभी इसका जिक्र नहीं हुआ।

तो, दो राष्ट्र सिद्धांत के लिए कौन जिम्मेदार है?

हिंदू और मुस्लिम बहुत विविध संस्कृति वाले समुदाय हैं, सावरकर के अस्तित्व से बहुत पहले ये विचार मौजूद थे। दो राष्ट्र का सिद्धांत पहली बार 1880 के दशक में सर सैयद अहमद खान द्वारा प्रस्तावित किया गया था जो एक प्रमुख मुस्लिम सुधारक थे। वास्तव में, गांधी द्वारा मुस्लिम तुष्टिकरण नीति लागू करने से बहुत पहले, हिंदू और मुस्लिम अपने आपसी मतभेदों से अवगत थे। एक सवाल के जवाब में कि भारत, हिंदू या मुसलमान पर शासन कौन करेगा, अगर ब्रिटिश सभी हथियारों के साथ भारत छोड़ देते हैं, सर सैयद ने कहा कि उनका मानना था कि दोनों में समान शक्ति नहीं हो सकती है और एक राष्ट्र को शांति के लिए दूसरे देश पर राज करना चाहिए।

लेकिन हम फिर वीर सावरकर को इस तस्वीर में क्यों खींच रहे हैं?

अभी तक जो तथ्य इस संबंध में पेश किए गए हैं। वह सावरकर को पूरी तरह से गलत बताया गया है। सावरकर के अनुसार, दो राष्ट्र होंगे, लेकिन वे एक ही संविधान द्वारा शासित होंगे। वह किसी समुदाय को विशेष विशेषाधिकार देने में विश्वास नहीं करते थे। वह चाहते थे कि सरकार धर्म और उसके रीति-रिवाजों की रक्षा करे, लेकिन वह विधानमंडल या प्रशासन में अलग-अलग सीटों की माँगों को मानना नहीं चाहती थी।

लेकिन हम फिर वीर सावरकर को इस तस्वीर में क्यों खींच रहे हैं?

इस संबंध में सावरकर को पूरी तरह से गलत बताया गया है। सावरकर के अनुसार, दो राष्ट्र होंगे, लेकिन वे एक ही संविधान द्वारा शासित होंगे। वह किसी समुदाय को विशेष विशेषाधिकार देने में विश्वास नहीं करते थे। वह चाहता था कि सरकार धर्म और उसके रीति-रिवाजों की रक्षा करे, लेकिन वह विधानमंडल या प्रशासन में अलग-अलग सीटों की माँगों को मानना नहीं चाहती थी।

तो अब क्यों?

इससे पहले, यह ज्ञात था और स्वीकार किया जाता है कि हिंदुओं और मुसलमानों के बीच विश्वास और संस्कृति में अंतर है लेकिन देर से कांग्रेस, धर्मनिरपेक्षता की आड़ में, सिर्फ मुसलमानों का तुष्टीकरण किया। यह गांधी थे जिन्होंने तुर्की में खिलाफत के खिलाफ खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया था, उन्होंने जिन्ना का भारतीय मुसलमानों के नेता के रूप में अभिषेक और आगे बढ़ाया। और इसके जरिए विभाजन का मार्ग प्रशस्त किया था।

हालांकि खुद को बचाने और न बदलने की आदत पर पर्दा डालने के लिए कांग्रेस ने विभाजन का आरोप जिन्ना और सावरकर पर स्थानांतरित किया। ताकि इसके जरिए वह खुद को बचा सके। यही नहीं वे अब एक बार फिर इतिहास को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं। हमें याद रखना चाहिए कि हमें हमेशा अपराधबोध का बोझ नहीं उठाना चाहिए और अपने पूर्वजों की उस सोच पर गर्व करना चाहिए जो अब महसूस की जा रही है।

(अभिनव खरे एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीईओ हैं, वह डेली शो 'डीप डाइव विद अभिनव खरे' के होस्ट भी हैं। इस शो में वह अपने दर्शकों से सीधे रूबरू होते हैं। वह किताबें पढ़ने के शौकीन हैं। उनके पास किताबों और गैजेट्स का एक बड़ा कलेक्शन है। बहुत कम उम्र में दुनिया भर के 100 से भी ज्यादा शहरों की यात्रा कर चुके अभिनव टेक्नोलॉजी की गहरी समझ रखते है। वह टेक इंटरप्रेन्योर हैं लेकिन प्राचीन भारत की नीतियों, टेक्नोलॉजी, अर्थव्यवस्था और फिलॉसफी जैसे विषयों में चर्चा और शोध को लेकर उत्साहित रहते हैं।

उन्हें प्राचीन भारत और उसकी नीतियों पर चर्चा करना पसंद है इसलिए वह एशियानेट पर भगवद् गीता के उपदेशों को लेकर एक सफल डेली शो कर चुके हैं। अंग्रेजी, हिंदी, बांग्ला, कन्नड़ और तेलुगू भाषाओं में प्रासारित एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीईओ अभिनव ने अपनी पढ़ाई विदेश में की हैं। उन्होंने स्विटजरलैंड के शहर ज्यूरिख सिटी की यूनिवर्सिटी ईटीएच से मास्टर ऑफ साइंस में इंजीनियरिंग की है। इसके अलावा लंदन बिजनेस स्कूल से फाइनेंस में एमबीए (एमबीए) भी किया है।)

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