फिलहाल राज्य में लोकसभा चुनाव के बाद महागठबंधन का अस्तित्व संकट में है। पिछले कुछ दिनों से राज्य के सभी विपक्षी दलों की नीतीश कुमार के साथ नजदीकियां बढ़ रही हैं। क्योंकि लोकसभा चुनाव के बाद राज्य में आरजेडी की राजनीति को तकरीबन खत्म माना जा रहा है। लिहाजा जो दल गठबंधन में शामिल होकर चुनाव लड़े वह अब नीतीश कुमार की तारीफ कर रहे हैं। फिलहाल राज्य में लोकसभा चुनाव का सबसे बड़ा नुकसान आरजेडी को हुआ है।
पटना। लोकसभा चुनाव में बिहार में कांग्रेस और आरजेडी गठबंधन को मिली हार के पीछे के कारणों को अब खोजा जा रहा है। आरजेडी ने पार्टी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के आदेश पर एक समिति का गठन किया है। जो जल्द ही अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। फिलहाल पार्टी नेताओं का कहना है कि आरजेडी का सवर्ण आरक्षण का विरोध करना गठबंधन के लिए नुकसानदायक साबित हुआ है। अगर पार्टी कांग्रेस की बात मान लेती तो उसकी दुर्गति ये न होती। कांग्रेस ने सलाह दी थी कि वह सवर्ण आरक्षण का विरोध न करे।
फिलहाल राज्य में लोकसभा चुनाव के बाद महागठबंधन का अस्तित्व संकट में है। पिछले कुछ दिनों से राज्य के सभी विपक्षी दलों की नीतीश कुमार के साथ नजदीकियां बढ़ रही हैं। क्योंकि लोकसभा चुनाव के बाद राज्य में आरजेडी की राजनीति को तकरीबन खत्म माना जा रहा है। लिहाजा जो दल गठबंधन में शामिल होकर चुनाव लड़े वह अब नीतीश कुमार की तारीफ कर रहे हैं।
फिलहाल राज्य में लोकसभा चुनाव का सबसे बड़ा नुकसान आरजेडी को हुआ है। आरजेडी राज्य में मुख्य विपक्षी दल है और देश की राजनीति में अच्छा दखल रखती थी। लेकिन लोकसभा चुनाव के निराशाजनक परिणामों के बाद राजद देश की केन्द्रीय राजनीति में किनारे हो गयी है। फिलहाल आरजेडी ने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जगदानंद सिंह का अगुवाई में तीन सदस्यीय जांच कमेटी बनाई गई है।
इस कमेटी में अब्दुल बारी सिद्दीकी और आलोक मेहता को शामिल किया गया है और ये कमेटी जल्द ही इस पर अपनी रिपोर्ट पार्टी अध्यक्ष को रांची में जाकर सौंपेगी। लेकिन कमेटी ने साफ किया है कि सवर्ण आरक्षण का विरोध करना पार्टी को महंगा पड़ा है। यही नहीं यादव परिवार की लड़ाई से जनता में भी नाराजगी देखने को मिली है। वहीं तेजस्वी यादव की छवि नकारात्मक होने के कारण पार्टी को नुकसान हुआ है।
नेताओं का कहना है कि लालू प्रसाद यादव के जेल जाने के बाद तेजस्वी ने पार्टी की कमान सही तरीके से नहीं संभाली। जबकि जिस वक्त तेजस्वी ने पार्टी की कमान संभाली थी उस वक्त जनता को लग रहा था कि वह बिहार के भविष्य के मुख्यमंत्री हैं। लेकिन सवर्ण आरक्षण का विरोध उन्हें महंगा पड़ा। असल में कांग्रेस ने भी आरक्षण विरोध न करने की सलाह आरजेडी को दी थी।