सैन्य अदालत ने नई नीति के तहत बने लेफ्टिनेंट जनरल प्रमोशन बोर्ड पर रोक लगाई

By Ajit K Dubey  |  First Published Oct 16, 2018, 2:01 PM IST

मेजर जनरल कुमार को हाल ही में लेफ्टिनेंट जनरल के रैंक पर प्रमोशन देने से मना कर दिया गया था। दो साल पहले एडीशनल डायरेक्टर जनरल में तैनाती के दौरान प्रक्रियागत चूक के चलते उन्हें 'रिकॉर्ड न करने योग्य सेंसरशिप' का सामना करना पड़ा था। 

सेना की एक अदालत ने एक मेजर जनरल रैंक के अधिकारी की याचिका पर आर्मी एयर डिफेंस के लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के अधिकारियों वाले प्रमोशन बोर्ड पर रोक लगा दी है। बोर्ड ने उक्त मेजर जनरल को सेना की नई नीति के आधार पर आगे प्रमोशन देने से मना कर दिया था। इस नीति के तहत किसी अधिकारी को प्रमोशन देते समय यह देखा जाता है कि पिछले दस साल में उन्हें किसी तरह का छोटा सा भी दंड तो नहीं दिया गया। 

मेजर जनरल सुबोध कुमार के वकील मेजर एसएस पांडे ने बताया, 'कोर्ट ने रक्षा मंत्रालय को लेफ्टिनेंट जनरल के रैंक पर प्रमोशन के लिए आर्मी एयर डिफेंस कोर के अधिकारियों वाले प्रमोशन बोर्ड के परिणामों को डी-क्लासिफाई करने को कहा है।'

मेजर जनरल कुमार को हाल ही में लेफ्टिनेंट जनरल के रैंक पर प्रमोशन देने से मना कर दिया गया था। दो साल पहले एडीशनल डायरेक्टर जनरल में तैनाती के दौरान प्रक्रियागत चूक के चलते उन्हें 'रिकॉर्ड न करने योग्य सेंसरशिप' का सामना करना पड़ा था।  

मामले के शुरुआती चरण में इस अधिकारी ने तर्क दिया था कि उसे दिए गए दंड को रिकॉर्ड पर नहीं लिया जाना चाहिए। इसे उसके खिलाफ कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके बाद वह मामले को आर्म्ड फोर्सेज ट्राइब्यूनल में ले गए। 

हाल ही में एक वरिष्ठ लेफ्टिनेंट जनरल को नए नियमों के तहत कमांडर-इन-चीफ के पद पर प्रोन्नति का अवसर गंवाना पड़ा था। नए नियमों के मुताबिक किसी अधिकारी के करियर में आगे की प्रगति पर फैसले लेने से पहले यह देखा जाता है कि पिछले दस साल में उन्हें कोई छोटा सा भी दंड तो नहीं दिया गया।

इस वरिष्ठ अधिकारी को सैन्य कमांडर के रैंक पर प्रोन्नत किया जाना था। उनका नाम भी सैन्य कमांडर के रैंक पर प्रमोशन के लिए रक्षा मंत्रालय को भेज दिया गया था। नई नीति को सेना में पिछले साल लाया गया था। इसका मकसद सेना में एक कड़ी अनुशासनात्मक नीति को स्थापित करना था। 

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