जनसंघ के सहसंस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मौत आज तक रहस्यमय बनी हुई है। आज उपाध्याय की 51वीं पुण्यतिथि है। लेकिन उनकी मौत की गुत्थी आज तक लोगों के लिए संस्पेंस बनी हुई है।
जनसंघ के सहसंस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मौत आज तक रहस्यमय बनी हुई है। आज उपाध्याय की 51वीं पुण्यतिथि है। लेकिन उनकी मौत की गुत्थी आज तक लोगों के लिए संस्पेंस बनी हुई है। उनकी मौत एक प्राकृतिक मौत थी या फिर हत्या आज तक कोई भी सरकार इस गुत्थी को सुलझा नहीं पायी। हालांकि उस वक्त इसी जांच भी कराई गयी। लेकिन इस रहस्य को नहीं सुलझाया जा सका है।
विख्यात संघ विचारक तथा भारतीय जनसंघ पार्टी के संस्थापक पंडित दीन दयाल उपाध्याय की आज 51 वीं पुण्यतिथि जयंती है। उनकी मौत के इक्कावन साल हो जाने के बाद भी उनकी मौत की गुत्थी को कोई भी जांच एजेंसी नहीं सुलझा पायी है और आज भी भारतीय जांच एजेंसियों के लिए ये बड़ा टास्क है। उपाध्याय संघ विचारक और भारतीय जनसंघ पार्टी के सह-संस्थापक रहे और 1967 में जनसंघ के अध्यक्ष बने थे। पंडित दीन दयाल उपाध्याय के पिता पेशे से एक ज्योतिषी थे। जब वह सिर्फ तीन वर्ष के थे, तब उनकी माता का देहांत हो गया था। उसके कुछ वर्ष बाद ही जब उनकी उम्र आठ वर्ष थी तब पिता का साया भी सिर से उठ गया। 'एकात्म मानववाद' का संदेश देने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के विचारक दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 को मथुरा के नगला चंद्रबन में हुआ था।
जनसंघ की स्थापना के बाद देश में उसकी ताकत बढ़ रही थी। लेकिन तभी 11 फरवरी 1968 को मुगल सराय रेलवे स्टेशन (अब दीनदयाल उपाध्याय स्टेशन) के पास उनका शव मिला। तत्कालीन सरकार का मानना था कि उनकी मौत प्राकृतिक मौत हुई है। लेकिन जनसंघ का कहना था कि उनकी हत्या हुई है। तब से आज तक ये मौत है या फिर हत्या, ये राज बना हुआ है। हाल ही में यूपी की आदित्यनाथ सरकार ने इसकी जांच करवाने का फैसला भी किया है। लेकिन अभी तक नतीजा सिफर है। दीनदयाल उपाध्याय रेलवे स्टेशन के थाने के रिकार्ड के मुताबिक 11 फरवरी, 1968 को सुबह तकरीबन 3.30 बजे के प्लेटफॉर्म से करीब 150 गज पहले रेलवे लाइन के दक्षिणी ओर के बिजली के खंभे से लगभग तीन फीट की दूरी पर उनका शव मिला था।
एफआईआर के मुताबिक लोहे और कंकड़ों के ढेर पर दीनदयाल उपाध्याय पीठ के बल सीधे पड़े हुए थे और कमर से मुंह तक का भाग दुशाले से ढका हुआ था। उनकी जेब से प्रथम श्रेणी का टिकट नं 04348 रिजर्वेशन रसीद नं 47506 और 26 रुपये बरामद हुए। स लाश को सबसे पहले रात करीब 3.30 बजे लीवर मैन ईश्वर दयाल ने देखा और अपने सहायक स्टेशन मास्टर को इसकी सूचना दी। लाश की जानकारी मिलते ही वह मौके पर पहुंचे। उसके बाद उन्होंने आगे की कार्यवाही करते हुए अपने रजिस्टर में लिखा कि व्यक्ति की मौत हो चुकी है। इसके बाद रेलवे पुलिस के दो सिपाही राम प्रसाद और अब्दुल गफू दो सिपाही 15 मिनट बाद वारदात की जगह पर पहुंचे और उनके साथ तत्कालीन दारोगा फतेहबहादुर सिंह भी थे।
जानकारी के मुताबिक इसके बाद रेलवे डॉक्टर को शव का मुआयना करने के लिए बुलाया गया और वह सुबह करीब 6 बजे वहां पहुंचा। डाक्टर ने शव को देखने के बाद उसे अधिकारिक तौर पर मृत घोषित कर दिया। इस दौरान की गयी कार्यवाही के बाद सरकारी दस्तावेजों में उसे 3 बजकर 55 मिनट कर दिया गया। हालांकि उपाध्याय की मौत में जनसंघ के बीच में भी कई नेताओं के बीच में आरोप प्रत्यारोप के दौर शुरू हुए। सन् 23 अक्टूबर 1969 को विभिन्न दलों के 70 सांसदों की मांग पर सरकार ने इस मामले की जांच के लिए जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ का एक सदस्यीय आयोग बनाया गया था और आयोग ने भी सीबीआई द्वारा की गयी जांच के नतीजों को सही बताया था। लेकिन जनसंघ ने एक गुट ने इसे स्वीकार नहीं किया। कुछ लोगों ने इसे राजनैतिक हत्या करार दिया। लेकिन सच्चाई ये है कि उपाध्याय की हत्या आज भी रहस्यमय बनी हुई है।