कुछ दल ऐसे भी हैं जिन्होंने बीते चार चुनावों के दौरान यूपीए और एनडीए में जीत की संभावनाओं का सटीक आंकलन किया और इसका सीधा राजनीतिक लाभ पाने में सफल रहे।
देश में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों का गठबंधन बीते चार लोकसभा चुनावों में बेहद अहम रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर 1998 में नैशनल डेमोक्रैटिक एलायंस (एनडीए) और 2004 में यूनाइटेड प्रोग्रेसिव एलायंस (यूपीए) के गठन के साथ देश में छोटे-बड़े लगभग 3 दर्जन क्षेत्रीय दलों में इनमें से एक गठबंधन में जगह बनाने की कवायद रहती है।
खासबात यह है कि इनमें से कुछ दल ऐसे भी हैं जिन्होंने बीते चार चुनावों के दौरान यूपीए और एनडीए में जीत की संभावनाओं का सटीक आंकलन किया और इसका सीधा राजनीतिक लाभ पाने में सफल रहे। एनडीए और यूपीए गठबंधन के क्षेत्रीय दलों का आंकलन करें तो साफ है कि उत्तर प्रदेश और बिहार में राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) और लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) ने प्रत्येक चुनावों में एनडीए और यूपीए को चुनने में सटीक कदम उठाया और सत्ता में स्थापित होने में सफल हुए।
देश में राजनीतिक लहर को समझने की परिपक्वता एलजेपी के मुखिया रामविलास पासवान ने पेश की है। 2004 और 2014 के बीचे दोनों प्रमुख राष्ट्रीय गठबंधनों से चुनाव लड़ चुके पासवान अपने फैसले के चलते सत्ता में बैठने में सफल रहे हैं।
2004 के लोकसभा चुनावों में एलजेपी ने यूपीए के साथ चुनाव लड़ने के फैसला करते हुए बिहार में आवंटित 5 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया। इन चुनावों में एलजेपी को 4 सीटों पर आसान जीत मिली। वहीं 2009 के चुनावों में एलजेपी ने लालू प्रसाद यादव की आरजेडी और मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी के साथ एक अपरिभाषित गठबंधन (चौथा मोर्चा) से चुनाव लड़ा लेकिन वह 2004 की अपनी उपलब्धि पर कायम नहीं हो पाए।
लिहाजा, 2014 में एलजेपी ने एनडीए का दामन थाम लिया, जहां बिहार में एनडीए और एलजेपी के बीच हुए गठबंधन के असर से बीजेपी को बड़ा फायदा पहुंचा वहीं इन चुनावों में 7 सीटों पर चुनाव लड़ी एलजेपी को 6 सीट पर जीत मिली।
वहीं उत्तर प्रदेश में एनडीए और यूपीए के बीच सटीक चुनाव कर राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) भी फायदा उठा चुका है. आरएलडी नेता अजीत सिंह ने 2009 के लोकसभा चुनावों में एनडीए के साथ मैदान में उतरने का फैसला किया। गठबंधन में आरएलडी को 7 सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिला और पार्टी को इनमें 5 सीटों पर जीत मिली।
हालांकि 2009 में एनडीए विपक्ष में रहा और अगले चुनावों से पहले आरएलडी अपने 5 सांसदों के चलते यूपीए में शामिल हुई और सत्तापक्ष के साथ बैठ गई। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में आरएलडी ने यूपीए के साथ जानें का फैसला किया लेकिन चुनाव नतीजे आने पर उसे एक भी सीट पर जीत नहीं मिली।
मौजूदा चुनावों में बिहार में एलजेपी ने लगातार सत्ता में रहने के कारण एक बार फिर एनडीए के साथ मैदान में उतरने का फैसला किया है। वहीं उत्तर प्रदेश में आरएलडी ने 2014 में हाथ लगी मायूसी के बाद 2019 के लिए समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के साथ महागठबंधन में शामिल होने का फैसला किया है। लेकिन इन दोनों पार्टियों के चुनाव पूर्व और चुनाव के बाद के फैसलों को देखकर साफ है कि अंतिम नतीजे आने के बाद ये पार्टियां सत्ता के लिए किसी करवट बैठ सकती हैं।