चुनावी बॉन्ड पर रोक नहीं, सियासी दलों को सुप्रीम कोर्ट में 15 मई तक बंद लिफाफे में देना होगा ब्यौरा

By Gopal K  |  First Published Apr 12, 2019, 5:43 PM IST

चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि इलेक्टोरल बॉन्ड में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन दानकर्ता के नाम सार्वजनिक किए जाने चाहिए क्योंकि लोगों और आयोग को राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार है। 

राजनीतिक दलों को चंदे के लिए जारी चुनावी बॉन्ड पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल इनकार कर दिया है। सभी राजनीतिक पार्टियों को 15 मई तक उन्हें मिली रकम की जानकारी सीलबंद लिफाफे में 30 मई तक सुप्रीम कोर्ट को सौंपने का आदेश दिया गया है। इसके बाद ही कोर्ट इस मामले में अगली सुनवाई करेगा। 

कोर्ट ने एक दिन पहले ही इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि चुनाव प्रक्रिया के दौरान चुनावी बॉन्ड के मुद्दे पर आदेश पारित नहीं करे। केंद्र ने कोर्ट से आग्रह किया था कि न्यायालय को इस मामले हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और चुनाव प्रक्रिया के पूरा होने के बाद इस मुद्दे पर निर्णय लेना चाहिए। 

अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने केंद्र के लिए बहस करते हुए यह भी कहा था कि चुनावी बॉन्ड राजनीतिक दान के लिए पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक बड़ा कदम है। अटॉर्नी जनरल का यह भी कहना था कि चुनावी बॉन्ड से पहले, अधिकांश दान नकद के माध्यम से किए गए थे, जिससे बेहिसाब धन चुनाव में डाले गए थे। इलेक्टोरल बॉन्ड सुनिश्चित करते हैं कि भुगतान केवल चेक, ड्राफ्ट और प्रत्यक्ष डेबिट के माध्यम से किया जाता है। कोई भी काला धन चुनाव में नहीं लगाया जा सकता। वहीं मामले की सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने यूटर्न लेते हुए कहा था कि वो चुनावी बॉन्ड के खिलाफ नहीं है। बल्कि चंदा देने वाले की पहचान गुप्त रखने के खिलाफ है। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को याद दिलाया कि उसने केंद्र को लिखे अपने पत्र में चुनावी बॉन्ड को प्रतिगामी कदम करार दिया था। 

कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा था कि क्या आयोग अपना रुख बदल रहा है। चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि इलेक्टोरल बॉन्ड में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन दानकर्ता के नाम सार्वजनिक किए जाने चाहिए क्योंकि लोगों और आयोग को राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार है। चुनाव आयोग ने यह भी कहा था कि मतदान के अधिकार का मतलब एक सूचित विकल्प बनाना है। अपने उम्मीदवार को जानना केवल आधा अभ्यास है। लोगों को उन लोगों के बारे में भी जानकारी होनी चाहिए जो राजनीतिक दलों को चंदा देते हैं। 

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में कहा था कि चुनावी बॉन्ड की योजना राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त धन और दान में पारदर्शिता को बढ़ावा देती है। केंद्र सरकार की ओर से यह हलफनामा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी व अन्य द्वारा दायर की गई याचिका के जवाब में दाखिल किया था। बतादें कि 2 जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने चुनावी बॉन्ड के लिए योजना को अधिसूचित किया था जो कि एक भारतीय नागरिक या भारत मे निगमित निकाय द्वारा खरीदे जा सकते हैं। ये बॉन्ड एक अधिकृत बैंक से ही खरीदे जा सकते हैं और राजनीतिक पार्टी को ही जारी किए जा सकते हैं। पार्टी 15 दिनों के भीत्तर बॉन्ड को भुना सकती है। दाता की पहचान केवल उसी बैंक को होगी जिसे गुमनाम रखा जाएगा। 

केंद्र सरकार का कहना है कि यह योजना वैध केवाईसी और ऑडिट ट्रेल के साथ बॉन्ड प्राप्त करने की एक पारदर्शी प्रणाली बनाने की परिकल्पना करती है। जो लोग इन बॉन्ड को खरीदते हैं, वे बैलेंस शीट में किए गए ऐसे दान के बारे में बताएंगे। चुनावी बॉन्ड योजना दानकर्ताओं को बैंकिंग मार्ग से दान करने के लिए प्रेरित करेगी। यह पारदर्शिता, जवाबदेही और चुनावी सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम सुनिश्चित करेगा। 

योजना के बारे में बताते हुए केंद्र सरकार का कहना है कि ये बॉन्ड केवल भारतीय स्टेट बैंक से खरीदे जा सकते हैं क्योंकि इसमें खरीदार केवाईसी मानदंडों का अनुपालन करता है। बॉन्ड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के महीनों के दौरान केवल 10 दिनों के लिए खरीद के लिए उपलब्ध होंगे। उन्हें 1000 रुपये, 10000 रुपये, एक लाख रुपये, दस लाख रुपये या एक करोड़ रुपये के गुणको में खरीद जा सकता है। बॉन्ड दाता का नाम बताया नही जाएगा। बॉन्ड के अंकित मूल्य को आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 13 ए के तहत आयकर से छूट के उद्देश्य से योग्य राजनीतिक दल द्वारा प्राप्त स्वैच्छिक योगदान के माध्यम से आय के रूप में गिना जाएगा।

click me!