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मौत के बाद भी साथ नहीं छोड़ रही जातियां

Published : Jul 30, 2018, 12:16 PM IST

क्या राजा, रंक और फकीर। मौत के बाद तो माटी में मिल जाना है, फना हो जाना है। लेकिन श्मशान का यथार्थ कहता है कि मौत ने भी खुद को ऊंच-नीच के दर्जो में बांट लिया है। भारतीय समाज अनेक जाति-धर्मों में बंटा है, लेकिन यह बंटवारा श्मशान घाट में भी दिखाई देता है। राजस्थान में रियासत के दौर में अलग-अलग जातियों के श्मशान घाट का चलन शुरू हुआ। यह आज भी जारी है। बाड़मेर जैसे छोटे से शहर में लगभग चार दर्जन श्मशान घाट हैं, हर जाति का अपना अंतिम दाह-संस्कार स्थल हैं। यहां तक कि उपजातियों ने भी अपने मोक्ष धाम बना लिए हैं। कहते हैं, दिवंगत व्यक्ति के शरीर में कोई जाति नहीं होती। लेकिन श्मशान में भेदभाव जारी हैं।

क्या राजा, रंक और फकीर। मौत के बाद तो माटी में मिल जाना है, फना हो जाना है। लेकिन श्मशान का यथार्थ कहता है कि मौत ने भी खुद को ऊंच-नीच के दर्जो में बांट लिया है। भारतीय समाज अनेक जाति-धर्मों में बंटा है, लेकिन यह बंटवारा श्मशान घाट में भी दिखाई देता है। राजस्थान में रियासत के दौर में अलग-अलग जातियों के श्मशान घाट का चलन शुरू हुआ। यह आज भी जारी है। बाड़मेर जैसे छोटे से शहर में लगभग चार दर्जन श्मशान घाट हैं, हर जाति का अपना अंतिम दाह-संस्कार स्थल हैं। यहां तक कि उपजातियों ने भी अपने मोक्ष धाम बना लिए हैं। कहते हैं, दिवंगत व्यक्ति के शरीर में कोई जाति नहीं होती। लेकिन श्मशान में भेदभाव जारी हैं।

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