फैज़ अहमद फ़ैज़ एक पाकिस्तानी कवि हैं। पाकिस्तान जैसे अत्याचारी राष्ट्र में मूर्तियों को तोड़ना बिल्कुल सामान्य बात है, लेकिन भारत में ऐसा नहीं करना हो सकता है। मूर्तिपूजन हिंदू धर्म का एक अभिन्न अंग है और ऐसी कविताएं हिंदू धर्म का अपमान करने के लिए अलावा कुछ नहीं हैं। हालांकि फैज की मूल कविताएं पाकिस्तानी तानाशाहों के खिलाफ थी जो इस्लाम के नियमों का पालन करने में विफल रहे।
भारतीय बुद्धिजीवियों ने इसे काफी स्पष्ट कर दिया है। हिंदुत्व के विरोध में वह जिहादी कट्टरपंथियों के समर्थन करते हैं और वह इस्लामी चरमपंथियों को पूरी तरह से समर्थन देते हैं। फैज अहमद फैज की कविताओं में जिस तरह से भारत में इन लोगों ने समर्थन किया। उसको देखकर ऐसा ही लगता है। फैज की विवादित हालिया कविताओं को लेकर जो विवाद हुआ है। उसमें साफ है कि वह हिंदूत्व के विरोधी थे और ये तथाकथित बुद्धिजीवी उन्हें समर्थन देते हैं।
फैज वह एक कवि हैं जो इस्लामी अतिवाद को उचित मानते हैं बल्कि उनके शब्द प्रचार करते हैं। भारत एक ऐसा देश है जहाँ लगभग 80% जनसंख्या हिंदू है। लेकिन, फैज़ अहमद फैज़ का गीत मूर्तियों को नष्ट करने की बात करता है और सिर्फ अल्लाह के नाम को प्रबल होने देता है। ऐसे लोग जो मूर्तियों की पूजा करते हैं (जो भारत में बहुसंख्यक हैं) को कैसे मानते हैं?
फैज़ अहमद फ़ैज़ एक पाकिस्तानी कवि हैं। पाकिस्तान जैसे अत्याचारी राष्ट्र में मूर्तियों को तोड़ना बिल्कुल सामान्य बात है, लेकिन भारत में ऐसा नहीं करना हो सकता है। मूर्तिपूजन हिंदू धर्म का एक अभिन्न अंग है और ऐसी कविताएं हिंदू धर्म का अपमान करने के लिए अलावा कुछ नहीं हैं। हालांकि फैज की मूल कविताएं पाकिस्तानी तानाशाहों के खिलाफ थी जो इस्लाम के नियमों का पालन करने में विफल रहे। तो, यह भारत के लिए कैसे लागू हो सकता है?
भारत को पाकिस्तान की तरह इस्लामिक क्यों होना चाहिए? केवल अल्लाह का नाम क्यों रहना चाहिए? पूरे नागरिकता संसोधन कानून के विरोध प्रदर्शनों के दौरान हमने बार-बार "हिंदुओं से आज़ादी" और "काफ़िरों से आज़ादी" जैसे शब्द सुने हैं। हमने ऐसे लोगों को देखा है जो जिहाद का समर्थन और प्रचार करते हैं, इन विरोध प्रदर्शनों के नायक बनते हैं। बॉलीवुड और लिबरल्स द्वारा उन्हें समान रूप से समर्थन किया जा रहा है।
दिलचस्प ये है कि भारत में मुसलमान वंदे मातरम को अस्वीकार करते हैं क्योंकि यह मूर्ति पूजा को बढ़ावा देता है। हिंदुओं को खुले हाथों से इस तरह के विद्रोह को स्वीकार करना चाहिए। भारत में तथाकथित उदारवादी इस तरह के विरोध करने वाले मुसलमानों का समर्थन करते हैं। स्थिति ये है कि वह अब वे सभी जिहादियों की पीआर मशीनरी की तरह व्यवहार करने लगे हैं। हम अपने देश में उदारवादियों की तरह बुद्धिमान नहीं हो सकते हैं, लेकिन हम निश्चित रूप से हिंदू धर्म के प्रति उनकी घृणा और जिहाद के लिए बिना शर्त प्यार के प्रति अंधे नहीं हैं।
(अभिनव खरे एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीईओ हैं, वह डेली शो 'डीप डाइव विद अभिनव खरे' के होस्ट भी हैं। इस शो में वह अपने दर्शकों से सीधे रूबरू होते हैं। वह किताबें पढ़ने के शौकीन हैं। उनके पास किताबों और गैजेट्स का एक बड़ा कलेक्शन है। बहुत कम उम्र में दुनिया भर के 100 से भी ज्यादा शहरों की यात्रा कर चुके अभिनव टेक्नोलॉजी की गहरी समझ रखते है। वह टेक इंटरप्रेन्योर हैं लेकिन प्राचीन भारत की नीतियों, टेक्नोलॉजी, अर्थव्यवस्था और फिलॉसफी जैसे विषयों में चर्चा और शोध को लेकर उत्साहित रहते हैं।
उन्हें प्राचीन भारत और उसकी नीतियों पर चर्चा करना पसंद है इसलिए वह एशियानेट पर भगवद् गीता के उपदेशों को लेकर एक सफल डेली शो कर चुके हैं। अंग्रेजी, हिंदी, बांग्ला, कन्नड़ और तेलुगू भाषाओं में प्रासारित एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीईओ अभिनव ने अपनी पढ़ाई विदेश में की हैं। उन्होंने स्विटजरलैंड के शहर ज्यूरिख सिटी की यूनिवर्सिटी ईटीएच से मास्टर ऑफ साइंस में इंजीनियरिंग की है। इसके अलावा लंदन बिजनेस स्कूल से फाइनेंस में एमबीए (एमबीए) भी किया है।)