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नाराज नहीं विनोद खन्ना की पत्नी, कहा पीएम मोदी के साथ इसलिए सन्नी देयोल को समर्थन

Published : Apr 27, 2019, 01:32 PM ISTUpdated : Apr 27, 2019, 02:35 PM IST
नाराज नहीं विनोद खन्ना की पत्नी, कहा पीएम मोदी के साथ इसलिए सन्नी देयोल को समर्थन

सार

विनोद खन्ना गुरदासपुर लोकसभा सीट से लगातार चार बार सांसद रहे। उन्होंने 1998, 1999, 2004 और 2014 में इस सीट का प्रतिनिधित्व किया था। हालांकि 2017 में उनके निधन के बाद हुए उपचुनाव में बीजेपी को यहां से हार का सामना करना पड़ा था। क्योंकि पार्टी ने उनके परिवार के सदस्य के बजाए स्वर्ण सालारिया को उम्मीदवार बनाया था और वह कांग्रेस के सुनील जाखड़ ने हार गए थे।

गुरदासपुर से बीजेपी के पूर्व दिवंगत सांसद विनोद खन्ना की पत्नी कविता खन्ना ने पार्टी प्रत्याशी सनी देओल को आखिरकार अपना समर्थन दे दिया है। उन्होंने कहा कि वह इसे कोई व्यक्तिगत मुद्दा नहीं बनाने जा रही हैं और उनका पीएम नरेन्द्र मोदी को पूरा समर्थन है।

असल में कल खबर आ रही थी कि विनोद खन्ना की पत्नी कविता खन्ना पार्टी फैसले से नाराज हैं। क्योंकि पार्टी ने फिल्म अभिनेता सनी देओल को पंजाब की गुरदासपुर सीट से लोकसभा का टिकट दिया है। देओल कुछ दिन पहले ही बीजेपी में शामिल हुए हैं। हालांकि इस सीट से विनोद खन्ना सांसद रहे हैं और उनकी पत्नी इस सीट से दावा कर रही थी। लेकिन पार्टी ने उनकी दावेदारी को दरकिनार किया।

बीजेपी ने पंजाब में अपनी रणनीति को बदलते हुए सनी देओल को टिकट देकर उनकी दावेदारी को खत्म कर दिया। सनी देओल मशहूर फिल्म अभिनेता हैं और उनकी सौतेली मां हेमा मालिनी मथुरा सीट से बीजेपी की सांसद हैं और वहां से लोकसभा चुनाव लड़ रही हैं। जबकि उनके पिता धर्मेन्द्र राजस्थान के बीकानेर से सांसद रह चुके हैं।

बहरहाल कविता खन्ना ने कहा कि वह टिकट न मिलने को व्यक्तिगत मुद्दा नहीं बनाने जा रही हैं पार्टी के लिए उनका ये त्याग है। फिलहाल उनका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पूर्ण समर्थन है। गौरतलब है कि शुक्रवार को ही कविता ने संकेत दिया था कि वह गुरदासपुर से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ सकती हैं। लेकिन उन्होंने बाद में अपना फैसला बदल दिया है।

विनोद खन्ना गुरदासपुर लोकसभा सीट से लगातार चार बार सांसद रहे। उन्होंने 1998, 1999, 2004 और 2014 में इस सीट का प्रतिनिधित्व किया था। हालांकि 2017 में उनके निधन के बाद हुए उपचुनाव में बीजेपी को यहां से हार का सामना करना पड़ा था। क्योंकि पार्टी ने उनके परिवार के सदस्य के बजाए स्वर्ण सालारिया को उम्मीदवार बनाया था और वह कांग्रेस के सुनील जाखड़ ने हार गए थे।

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