पहले हुड्डा और अब तंवर हो रहे हैं बागी, बैठकों से बनाई दूरी

By Team MyNation  |  First Published Sep 26, 2019, 4:32 PM IST

राज्य में अगले महीने चुनाव होने हैं। अभी तक कांग्रेस ने टिकट वितरण नहीं किया है। पार्टी में लगातार नई प्रदेश अध्यक्ष कुमारी शैलजा और चुनाव समिति के अध्यक्ष हुड्डा की बैठकें चल रही हैं। लेकिन पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक इन बैठकों से नदारद हैं। वह न तो हुड्डा की बैठकों में जा रहे हैं न ही शैलजा की। हालांकि अपना राजनैतिक वजूद बचाने के लिए तंवर अलग बैठकें कर रहे हैं।

नई दिल्ली। हरियाणा में कांग्रेस की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। पहले राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा पार्टी से नाराज चल रहे थे। लिहाजा उनकी नाराजगी दूर की तो अब पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर नाराज चल रहे हैं। तंवर ने पार्टी की बैठकों से दूरी बनाकर रखी और साफ तौर पर कह दिया है कि अगर वह बैठकों में शामिल होंगे तो कुछ लोगों को दिक्कत हो सकती है।

राज्य में अगले महीने चुनाव होने हैं। अभी तक कांग्रेस ने टिकट वितरण नहीं किया है। पार्टी में लगातार नई प्रदेश अध्यक्ष कुमारी शैलजा और चुनाव समिति के अध्यक्ष हुड्डा की बैठकें चल रही हैं। लेकिन पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक इन बैठकों से नदारद हैं। वह न तो हुड्डा की बैठकों में जा रहे हैं न ही शैलजा की। हालांकि अपना राजनैतिक वजूद बचाने के लिए तंवर अलग बैठकें कर रहे हैं। हालांकि इन बैठकों की कोई अहमियत नहीं है। क्योंकि राज्य में चुनाव की कमान शैलजा और हुड्डा के हाथ में ही है। ये दोनों नेता अपनी रिपोर्ट सीधे सोनिया गांधी को दे रहे हैं।

लेकिन तंवर की नाराजगी भी राज्य में अहम रखती है। तंवर दलित वर्ग से आते हैं और वह राज्य में तीन साल से ज्यादा प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। तंवर अपने समर्थकों के साथ बैठकर कर रहे हैं। यही नहीं उन्होंने शैलजा की बैठकों से भी दूरी बनाकर रखी है। गौरतलब है कि तंवर और हुड्डा में छत्तीस का आंकड़ा है। लिहाजा पिछले दिनों हुड्डा ने सोनिया पर दबाव बनाकर दो अहम पदों पर अपना कब्जा कर लिया था। जबकि तंवर को झटका देते हुए शैलजा को इस पद पर सोनिया गांधी ने नियुक्त किया था।

फिलहाल तंवर ने साफ कहा कि वह बैठकों में इसलिए नहीं जा रहे हैं कि कुछ लोगों को उनके आने से दिक्कत होती है इसलिए वह वहां नहीं जाना चाहते हैं। उन्होंने हुड्डा और शैलजा पर तंज कसते हुए कहा कि मेनिफेस्टो की बैठक में जाने का कोई मतलब नहीं है। क्योंकि मेनिफेस्टो तो 18 अगस्त को ही रोहतक में जारी कर दिया गया था।

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