खेद से माफी तक राहुल गांधी के सफर के पांच मायने

By Team MyNationFirst Published May 8, 2019, 1:18 PM IST
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राहुल गांधी के बयान के खिलाफ बीजेपी नेता मीनाक्षी लेखी ने आपराधिक मानहानि का मामला दर्ज किया था जिसकी सुनवाई मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की बेंच कर रही है। 

राफेल मामले में दिए विवादित बयान पर पहले खेद जताने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में बिना शर्त लिखित माफी मांग ली है। राहुल गांधी के बयान के खिलाफ बीजेपी नेता मीनाक्षी लेखी ने आपराधिक मानहानि का मामला दर्ज किया था जिसकी सुनवाई मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की बेंच कर रही है। 

इससे पहले 22 अप्रैल को कांग्रेस अध्यक्ष के वकील और पार्टी नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम  कोर्ट में हलफनामा देते हुए कहा था कि राहुल गांधी को अपने बयान पर खेद जताया है और इस खेद को ही माफी मान ली जानी चाहिए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के कड़े रुख के बयाद बुधवार को एक बार फिर हलफनामा देते हुए कांग्रेस अध्यक्ष ने बिना किसी शर्त माफी मांगी है। जानें इस पूरे प्रकरण में राहुल गांधी के विवादित बयान से लेकर सुप्रीम कोर्ट में पहले खेद प्रकट करना और अंत में लिखित माफी मांगने के पांच मतलब।

पहला: नहीं चली चालाकी
राहुल गांधी ने विपक्ष की अहम भूमिका में बैठकर पहले राष्ट्रीय सुरक्षा और न्याय व्यवस्था के साथ मजाक किया। अपने राजनीतिक बयान की आंच सुप्रीम कोर्ट पर आती देख राहुल गांधी ने पहले सुप्रीम कोर्ट में खेद जताकर मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की। हलफनामें के जरिए जताए गए खेद को राहुल के वकील ने कहा कि इसे ही माफी मान लिया जाना चाहिए। हालांकि, कोर्ट की अवमानना के मामले में सख्त रुख देखने के बाद राहुल गांधी को नया हलफनामा देकर बिना शर्त माफी मांगने की जरूरत पड़ी। यानी इस अपराधिक  मामले में राहुल की चालाकी काम नहीं आई।

दूसरा: लगी मुहर, झूठे हैं राहुल
पहले खेद जताकर दावा किया कि उन्होंने सिर्फ सुप्रीमकोर्ट पर आई बयान कीआंच के लिए माफी मांगा है। लिहाजा, खेद जताने के बाद एक बार फिर राहुल गांधी ने चुनावी रैलियों में अपने विवादित चौकीदार बयान को नए सिरे से उठाना शुरू किया। हालांकि इस बार वह खुद यह बयान देने से बचे और कोशिश की कि चौकिदार चोर है का दावा जनता करे। लेकिन मामले में सुप्रीम कोर्ट में जारी सुनवाई और दबाव के बाद राहुल गांधी के पास लिखित माफी मांगने के सिवाए कोई विकल्प नहीं बचा। यानी एक बार फिर साफ हो गया कि राहुल गांधी राफेल मामले में राजनीतिक लाभ के लिए सफेद झूठ का सहारा ले रहे थे और पकड़े जानें पर कांग्रेस के चुनाव प्रचार के प्रमुख एजेंडा को तगड़ा झटका लगा।

तीसरा: सलाहकारों ने ही फंसाया
चौकीदार मामले में विवादित बयान में राहुल गांधी की बढ़ी परेशानियों के लिए एक बार फिर उनके सलाहकारों की भूमिका पर सवाल उठता है। राहुल गांधी के सलाहकारों ने पहले उन्हें इस बात के लिए आश्वस्त किया कि 2019 के चुनाव प्रचार में वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को घेरने के लिए झूठा मामला खड़ा करें। सलाहकारों ने इस झूठ के निर्माण में पर्याप्त रेकी नहीं की जिसके चलते राहुल गांधी के दावे का सीधा असर सुप्रीम कोर्ट पर पड़ा और उन्हें आपराधिक मामला झेलना पड़े रहा है। वहीं कोर्ट में इस मामले के दौरान भी सलाहकारों की भूमिका बेहद स्पष्ट है। कांग्रेस अध्यक्ष के सलाहकार लगातार राहुल को समझाने में सफल होते रहे कि इसके जरिए वह पीएम मोदी को नुकसान पहुंचाने में सफल हो रहे हैं। यानी सलाहकारों ने राहुल को विफल किया।

चौथा: देश को धोखा देने की कोशिश
पूरे प्रकरण में एक बार फिर साफ हुआ कि कांग्रेस अध्यक्ष ने राफेल मामले में राष्ट्रिय सुरक्षा को भी पूरी तरह नजरअंदाज करते हुए राजनीतिक लाभ उठाने की कवायद की। इसके लिए उनका सबसे बड़ा अपराध है कि वह अपने झूठे बयान से पूरे देश को गुमराह करने की कवायद कर रहे थे। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचने के बाद भी राहुल गांधी ने पहले खेद जताकर अपनी रणनीति पर आगे बढ़ने की कोशिश की लेकिन अंत में उन्हें सुप्रीम कोर्ट में लिखित माफी देनी पड़ी। लिहाजा, लिखित माफी से यह साफ होता है कि वह लगातार देश को धोखा देने की कवायद में लगे रहे।

पांचवा: सत्ता के लिए अभी तैयार नहीं
अंत में इस पूरे प्रकरण में सबसे अहम मतलब यह निकलता है कि राहुल गांधी अभी सत्ता के लिए तैयार नहीं है। गौरतलब है कि कांग्रेस पार्टी ने देश में आजादी के बाद सर्वाधिक समय तक राज किया। लेकिन भारतीय जनता पार्टी द्वारा विपक्ष का रास्ता दिखाए जानें के बाद जहां कांग्रेस से उम्मीद थी कि वह विपक्ष की भूमिका को अदा करते हुए देश की राजनीतिक प्रक्रिया को सामान्य चलने दे। लेकिन इस पूरे मामले से साफ तौर पर कहा जा सकता है कि जब राहुल गांधी को विपक्ष में बैठकर विपक्ष की भूमिका पर काम करने की जरूरत थी वह झूठ के सहारे सत्ता में वापस आने की तैयारी में लगे हैं। ऐसे में यह साफ कहा जा सकता है कि राहुल गांधी न सिर्फ अपनी विपक्ष की भूमिका में विफल हुए बल्कि यह भी साफ है कि अभी सत्ता के लिए तैयार नहीं है।

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