हिमाचल प्रदेश में जल्द संस्कृत अनिवार्य हो सकता है. इसके लिए हिमाचल प्रदेश तैयारी कर रही है. हालांकि इससे पहले राज्य सरकार ने राज्य में संस्कृत को दूसरी राज्य भाषा का दर्जा दिया है
हिमाचल प्रदेश में जल्द संस्कृत अनिवार्य हो सकता है. इसके लिए हिमाचल प्रदेश तैयारी कर रही है. हालांकि इससे पहले राज्य सरकार ने राज्य में संस्कृत को दूसरी राज्य भाषा का दर्जा दिया है. वहीं कांग्रेस का कहना है कि राज्य सरकार अपने राजनैतिक मकसद को साधने के लिए संस्कृत का इस्तेमाल कर रही है.
जहां राजस्थान में कांग्रेस सरकार अकबर महान या महाराणा प्रताप महान में उलझी हुई है. वहीं हिमाचल की भाजपा सरकार राज्य में संस्कृत को बढ़ावा दे रही है. राज्य में भाजपा सरकार ने राज्य के स्कूलों में संस्कृत को अनिवार्य करने की योजना तैयार की है. इसके तहत राज्य के सभी सरकारी और निजी स्कूलों में संस्कृत को अनिवार्य करने जा रही है. जयराम कैबिनेट ने हाल ही में संस्कृत को प्रदेश की दूसरी राजभाषा का दर्जा प्रदान करने को मंजूरी दी थी.
असल में भाजपा राज्य में राम मंदिर और गोरक्षा के साथ ही संस्कृत के जरिए आगामी लोकसभा सीटों पर कब्जा करना चाहती है. जयराम सरकार राज्य की शिक्षा में बदलाव करना चाहती है ताकि संस्कृत से दूर हो रहे बच्चों को भी फिर से इसे जोड़ा जा सके. अब सरकार के सामने असल परीक्षा राज्य में संस्कृत के शिक्षकों की उपलब्धता को लेकर है. जयराम कैबिनेट ने हाल ही में संस्कृत को प्रदेश की दूसरी राजभाषा का दर्जा प्रदान करने को मंजूरी दी है. कैबिनेट मंजूरी के बाद अब इस विषय को बजट सत्र के दौरान सदन में लाया जा रहा है.
वहीं राज्य के भाषा एवं संस्कृति विभाग ने सरकार के इस फैसले को लागू करने की तैयारियां शुरू कर दी हैं. इसके लिए जयराम सरकार इसे सदन में पारित करेगी और उसके बाद उसे राज्य के स्कूलों में लागू किया जाएगा. राज्य के शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज का भी मानना है कि राज्य सरकार संस्कृत की शिक्षा को बढ़ावा दे रही है. लेकिन अब सवाल ये है कि राज्य में कितने लोग संस्कृत जानते हैं और दूसरी सरकारी भाषा बनने के बाद राज्य के कितने लोग इसका प्रयोग करें. हालांकि विपक्ष का कहना है कि सरकार ने राजनीति मकसद को पूरा करने के लिए संस्कृत को लागू किया है. लेकिन जनता उसी भाषा का इस्तेमाल करती है जो वो जानती है. अभी हिमाचल में अंग्रेजी बीए तक और हिंदी दसवीं तक अनिवार्य विषय है, लेकिन संस्कृत छठी से आठवीं तक अनिवार्य विषय है. हालांकि राज्य सरकार का कहना है राज्य में देववाणी संस्कृत बोली जानी चाहिए. गौरतलब है कि जयराम सरकार का शपथग्रहण के दौरान दो मंत्रियों ने संस्कृत में शपथ ली थी और इसमें शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज और दूसरे वन मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर थे.