मोदी सरकार की बड़ी कामयाबी, रु 1 करोड़ की आय बताने वालों की संख्या 60% बढ़ी

By Team MyNation  |  First Published Oct 22, 2018, 5:21 PM IST

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश ने एक और उपलब्धि हासिल की है। देश में रु 1 करोड़ से अधिक आमदनी के आधार पर टैक्स देने वालों की संख्या पिछले 4 साल में 60 फीसदी बढ़कर 1.40 लाख हो गई है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश ने एक और उपलब्धि हासिल की है। देश में रु 1 करोड़ से अधिक आय के आधार पर टैक्स देने वालों की संख्या पिछले 4 सालों में 60 फीसदी से बढ़कर 1.40 लाख हो गई है।

सेन्ट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज (CBDT) ने इस बारे में आंकड़े जारी किए हैं। यही नहीं पिछले चार सालों में इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल करने वालों की संख्या में भी 80 फीसदी का इजाफा हुआ है।

सीबीडीटी चेयरमैन सुशील चंद्रा ने कहा है कि वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान डायरेक्ट टैक्स-जीडीपी अनुपात (5.98 फीसदी) पिछले 10 सालों में सबसे अच्छा रहा है। पिछले 4 साल में जीएसटी रिटर्न फाइल करने वालों की संख्या 80 फीसदी इजाफे के साथ 2013-14 में 3.79 करोड़ से बढ़कर 2017-18 में 6.85 करोड़ हो गई।

1 करोड़ से अधिक आमदनी दिखाने वाले टैक्सपेयर्स की संख्या भी तेजी से बढ़ी है।

सीबीडीटी ने कहा, ‘2014-15 में जहां 88 हजार 649 लोगों ने अपनी आमदनी 1 करोड़ रुपये से ज्यादा की घोषित की, वहीं आकलन वर्ष 2017-18 में इनकी संख्या बढ़कर 1 लाख 40 हजार 139 हो गई। इस तरह करोड़पति टैक्सपेयर्स की संख्या में 60 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।'

इसी तरह, आकलन वर्ष 2014-15 से आकलन वर्ष 2017-18 के बीच 1 करोड़ रुपये से ज्यादा की आय वाले इंडिविजुअल टैक्सपेयर्स की संख्या भी 48 हजार 416से बढ़कर 81 हजार 344 हो गई है। यानी, पिछले चार वर्षों में इनकी तादाद में कुल 68 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

सीबीडीटी के चेयरमैन सुशील चंद्रा ने करोड़पति टैक्सपेयर्स की संख्या में इस इजाफे का श्रेय इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के विभिन्न प्रयासों को दिया है। उन्होंने कहा कि यह संख्या इनकम टैक्स डिपार्मेंट की ओर से पिछले चार सालों के दौरान कानून में सुधार, सूचना के प्रसार एवं कड़ाई से कानून का पालन करवाने की दिशा में उठाए गए कदमों का परिणाम है।

सीबीडीटी ने यह भी कहा है कि पिछले चार सालों के दौरान फाइल किए गए आईटीआर रिटर्न्स में 80 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि दर्ज की गई है और यह2013-14 के 3.79 करोड़ से बढ़कर 2017-18 में 6.85 करोड़ हो गया है।

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