वैश्विक बिरादरी में पीएम मोदी की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। उनकी लगातार चुनावी सफलताओं को देखते हुए विश्व के कई नेता उनसे राजनीतिक शिक्षा हासिल करने की तमन्ना रखते हैं। शायद यही वजह है कि राजनीतिक के धुरंधर खिलाड़ी इजरायल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू पीएम मोदी से मुलाकात करने नई दिल्ली आ रहे हैं। खास बात यह है कि इस मुलाकात के मात्र आठ दिनों के बाद ही इजरायल में चुनाव होने वाले हैं, जिसमें नेतन्याहू के भविष्य का फैसला होने वाला है। इसे देखते हुए यह अनुमान लगाया जा रहा है कि वह पीएम मोदी से जीत का मंत्र लेने भारत आ रहे हैं।
नई दिल्ली: इजरायल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू सितंबर के महीने में पीएम मोदी से मुलाकात करने के लिए भारत आ रहे हैं। वह नौ सितंबर को एक दिन की यात्रा पर नई दिल्ली आएंगे। हालांकि वह मात्र कुछ ही घंटे के लिए यहां रुकेंगे। उनका कार्यक्रम मुख्य रुप से पीएम मोदी से मुलाकात करना है।
बताया जा रहा है कि दोनों नेताओं के बीच व्यवसायिक मुद्दों पर चर्चा होने वाली है। लेकिन मुख्य मुद्दा कुछ और ही है।
दरअसल इजरायल में जल्दी ही फिर से चुनाव होने वाले हैं। वहां पीएम मोदी की लोकप्रियता बहुत ज्यादा है। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि उनसे नजदीकी दिखाने के लिए नेतन्याहू नई दिल्ली की दौरा कर रहे हैं। जिससे उन्हें इजरायल के अंदर इस यात्रा का लाभ मिल सके।
बात यह है कि इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन पिछली बार चुनाव जीतने के बाद भी सरकार बनाने में नाकामयाब रहे थे। इजरायल के अंदर नेतन्याहू को कड़ी राजनीतिक चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में उनकी लिकुड पार्टी की हालत अच्छी नहीं बताई जा रही है।
नेतन्याहू द्वारा गठबंधन सरकार का गठन करने में विफल रहने के बाद इजरायली सांसदों ने मई में 45 के मुकाबले 74 मतों से नेसेट (संसद) को भंग करने और दोबारा आम चुनाव कराने की सिफारिश कर दी है।
इजराइली सांसद करीब छह सप्ताह पहले ही निर्वाचित हुए थे। उन्होंने 21वीं नेसेट (इजराइली संसद) को भंग करने और इसी कैलेंडर वर्ष में दूसरी बार आम चुनाव कराने के पक्ष में 45 के मुकाबले 74 मतों से प्रस्ताव पारित किया।
नेतन्याहू ने नौ अप्रैल को हुए चुनाव में रिकॉर्ड पांचवीं बार उल्लेखनीय जीत हासिल की थी। उनकी यह जीत अस्थायी साबित हुई क्योंकि वह चरम पुरातनपंथी यहूदी शिक्षण संस्थानों के छात्रों को सेना में अनिवार्य भर्ती से छूट देने संबंधी एक सैन्य विधेयक को लेकर गतिरोध को तोड़ने में नाकाम रहे।
उनके और इजराइल के पूर्व रक्षा मंत्री अविग्दोर लिबरमैन के बीच विधेयक को लेकर मतभेद के कारण गठबंधन नहीं हो सका।
राष्ट्रवादी दल 'यिजराइल बेतेन्यू’ पार्टी से संबंध रखने वाले लिबरमैन ने अति-धर्मनिष्ठ यहूदी दलों के साथ आने के लिए यह शर्त रखी थी कि उन्हें अनिवार्य सैन्य सेवा में छूट देने के अपने मसौदे में परिवर्तन करने होंगे।
मतदान से पहले लिबरमैन ने कहा कि इजराइल में इसलिए चुनाव कराने होंगे क्योंकि सत्तारूढ पार्टी लिकुड ने अति धर्मनिष्ठ यहूदी दलों के आगे पूर्ण आत्मसमर्पण कर दिया।
'यिजराइल बेतेन्यू’ के बिना नेतन्याहू 120 सदस्यीय सदन में केवल 60 सांसदों का समर्थन ही हासिल कर सके और केवल एक मत से बहुमत साबित करने से चूक गए।
हालांकि नेतन्याहू ने कहा था कि ‘इजराइल में जनता ने स्पष्ट फैसला दिया। यह फैसला हुआ कि लिकुड दक्षिणपंथी सरकार का प्रतिनिधित्व करेगी, मैं प्रधानमंत्री बनूंगा ।’
लेकिन तकनीकी आधार पर वह सरकार बनाने से चूक गए। और अब वह चुनाव के ठीक पहले पीएम मोदी से जीत का मंत्र लेने के लिए भारत आ रहे हैं।