कश्मीर में आतंकवादियों की मौत पर मानवाधिकार का राग अलापने वाले लोग पुलवामा में हुए सीआरपीएफ जवानों की मौत पर खामोश हैं। उन्हें इन शहीदों के मासूम बच्चों की चीखें और विधवाओं का विलाप नही सुनाई दे रहा है। बिहार के भागलपुर में शहीद रतन ठाकुर के घर का माहौल किसी पत्थरदिल इंसान को भी रोने के लिए मजबूर कर देगा। लेकिन मानवाधिकार के पुरोधाओं की जुबान अब तक सिली हुई है।
जम्मू कश्मीर के पुलवामा में बिहार के भागलपुर के रतन भी शहीद हो गए। उनका बेटा मात्र चार साल का है और पत्नी की तीन महीने में डिलीवरी होने वाली है। मौत से थोड़ी देर पहले ही शहीद रतन ठाकुर ने अपनी पत्नी राजनंदिनी से फोन पर बात की थी और कहा था कि नेटवर्क खराब है श्रीनगर पहुंचते ही तुमसे बात करुंगा।
लेकिन अब शहीद रतन कभी श्रीनगर नहीं पहुंचेंगे। उनका चार साल का बेटा कृष्णा और छह महीने की गर्भवती पत्नी राजनंदिनी जिंदगी भर उनका इंतजार करते ही रहेंगे।
शहीद रतन को उनके पिता रामनिरंजन ठाकुर ने बेहद मुश्किलों से मजदूरी करके पाला था। साल 2011 में जब उन्हें सीआरपीएफ की नौकरी मिली तो परिजनों को लगा कि दुख भरे दिन अब खत्म हो गए हैं।
लेकिन शहीद रतन का परिवार एक बार फिर मंझधार में है। उनकी शादी दिसंबर 2014 को हुई थी। उनका बेटा कृष्णा बेहद छोटा है। उसे नहीं पता कि उसके पिता देश की रक्षा में शहीद हो गए हैं। वह घर आने वाले लोगों को अपने खिलौने दिखाता है और अपने पिता की फोटो की ओर इशारा करके कहता है कि यह सब उसके पिता ने दिलवाया है।
जब कृष्णा बताता है कि ‘उसके पिता जल्दी ही घर लौट आएंगे और उसे बहुत से खिलौने और दिलवाएंगे’ तो सुनने वालों का कलेजा मुंह में आ जाता है।
शहीद रतन की पत्नी राजनंदिनी के गर्भ में पल रहा शिशु जन्म लेने से पहले ही अनाथ हो चुका है। छह महीने की गर्भवती राजनंदिनी की नाजुक हालत को देखते हुए उन्हें अब तक पति की शहादत की खबर नहीं दी गई है।
लेकिन बुजुर्ग पिता रामनिरंजन ठाकुर पर तो जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। उन्हें अपने परिवार के भविष्य की चिंता सता रही है। वह शहीद रतन के बारे में बात करते हुए रोने लगते हैं और कहते हैं कि ‘भगवान आतंकियों को कभी माफ नहीं करेगा’।
पूरे देश में शहीद जवानों के परिजन सिसक रहे हैं। उनके दुख का पारावार नहीं है। देश की जनता अपने शहीदों के खून का हिसाब मांग रही है। अब उन्हें आतंकियों और उनके समर्थकों की चलती हुई सांसें मंजूर नहीं हैं।