कांग्रेस से जुड़े संगठन ऑल इंडिया प्रफेशनल्स कांग्रेस की ओर से आयोजित एक डॉयलॉग में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस चेलमेश्वर ने यह बात कही है।
सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित होने के बावजूद सरकार राम मंदिर निर्माण के लिए कानून बना सकती है। कांग्रेस से जुड़े संगठन ऑल इंडिया प्रफेशनल्स कांग्रेस (एआईपीसी) की ओर से आयोजित एक डॉयलॉग में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस चेलमेश्वर ने यह बात कही है। उनके मुताबिक, विधायी प्रक्रिया द्वारा अदालती फैसलों में अवरोध पैदा करने के उदाहरण पहले भी रहे हैं।
इस साल की शुरुआत में जस्टिस चेलमेश्वर सुप्रीम कोर्ट के उन चार वरिष्ठ जजों में शामिल थे जिन्होंने प्रेस कांफ्रेंस कर तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के कामकाज के तौर-तरीकों पर सवाल उठाए थे। जब जस्टिस चेलमेश्वर से पूछा गया कि सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित रहने के दौरान क्या संसद राम मंदिर के लिए कानून पारित कर सकती है, इस पर उन्होंने कहा कि ऐसा हो सकता है। उन्होंने कहा, 'यह एक पहलू है कि कानूनी तौर पर यह हो सकता है या नहीं। दूसरा यह है कि यह होगा या नहीं। मुझे कुछ ऐसे मामले पता हैं जो पहले हो चुके हैं, जिनमें विधायी प्रक्रिया ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों में अवरोध पैदा किया था।'
चेलमेश्वर ने कावेरी जल विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश पलटने के लिए कर्नाटक विधानसभा द्वारा एक कानून पारित करने का उदाहरण भी दिया। उन्होंने राजस्थान, पंजाब एवं हरियाणा के बीच अंतर-राज्यीय जल विवाद से जुड़ी ऐसी ही एक घटना का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा, 'देश को इन चीजों को लेकर बहुत पहले ही खुला रुख अपनाना चाहिए था....राम मंदिर पर कानून संभव है।'
जस्टिस चेलमेश्वर की टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ करने के लिए सरकार पर अध्यादेश लाने अथवा कानून बनाने का दबाव बढ़ा दिया है। एक दिन पहले ही संघ के सह सरकार्यवाह भैय्याजी जोशी ने कहा था, यह कोर्ट की जिम्मेदारी बनती है कि वह लोगों की भावनाओं का सम्मान करे और अगर कोई विकल्प नहीं बचता है तो फिर सरकार अध्यादेश पर विचार करे। शीर्ष अदालत में सुनवाई टलने के सवाल पर जोशी ने कहा था, 'यह कोर्ट का अधिकार है। उनके इस अधिकार पर हम टिप्पणी नहीं करेंगे। लेकिन उनकी प्राथमिकताएं अलग होने वाले बयान से हमें दुख है। हिंदू समाज की भावनाओं से जुड़े इस मुद्दे पर जिस तरह से जवाब दिया गया, इससे हिंदू समाज अपमानित महसूस कर रहा है। करोड़ों हिंदुओं की आस्था अदालत की प्रथामिकता में नहीं है, यह आश्चर्यजनक है।'