बिहार में कानून व्यवस्था बेहतर है। क्योंकि जवानों को कभी बंदूक चलानी नहीं पड़ती है। यहां पर तो सिर्फ अपराधियों के हथियारों की आवाजें आती हैं। लिहाजा पुलिस के पास मौजूद अकसर धोखा दे देती हैं।
पटना। बिहार में पुलिस के जवानों की राइफलें एक बार फिर धोखा गई। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब आखिरी विदाई के लिए पुलिस के जवानों को फायर करना था और बंदूकों से आवाज नहीं निकली। इससे पहले राज्य में पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्र की अंतिम विदाई में भी फायर नहीं हुआ था। जबकि इस कार्यक्रम में खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मौजूद थे।
बिहार में कानून व्यवस्था बेहतर है। क्योंकि जवानों को कभी बंदूक चलानी नहीं पड़ती है। यहां पर तो सिर्फ अपराधियों के हथियारों की आवाजें आती हैं। लिहाजा पुलिस के पास मौजूद अकसर धोखा दे देती हैं। ऐसा एक बार नहीं बल्कि कई बार हो चुका है कि मौके पर ही बिहार पुलिस की बंदूके धोखा दे जाती हैं।
एक बार ऐसा वाकया फिर देखने को मिला जब आरा के रहने वाले शहीद सीआरपीएफ जवान रमेश रंजन को आखिरी विदाई देने के दौरान बिहार पुलिस की बंदूकों खामोश रही और आवाज नहीं निकाल सकी। क्योंकि बंदूके खराब हो चुकी हैं। लिहाजा मौके पर पुलिस के जवानों ने दिखाने के लिए बंदूकों को कंधे में ही रखा।
राज्य में ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। इससे पहले राज्य के पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्रा की अंतिम विदाई के दौरान भी बिहार पुलिस बंदूकों खामोश रही और विदाई नहीं दे सकी। बिहार के आरा में शहीद रमेश को अंतिम विदाई दी जानी थी। विदाई के मौके पर राज्य की जनता पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगा रही थी और गांव वाले अंतिम यात्रा में शामिल होकर शमसान पहुंचे थे। सरकार की तरफ से भी जवान को अंतिम विदाई देने के लिए पुलिसकर्मियों से सलामी देने को कहा गया था।
लेकिन ऐन वक्त पर पुलिस की बंदूके धोखा दे गई और मजबूरी में बिहार पुलिस के जवानों को बंदूक कंधे पर रखने का दिखावा करना पड़ा। विदाई के लिए राज्य सरकार के मंत्री से लेकर पुलिस और सीआरपीएफ के जवान गांव पहुंचे थे। गौरतलब है कि बुधवार को जम्मू-कश्मीर के परमपोरा में आतंकियों ने सीआरपीएफ के दस्ते पर आतंकियों ने गोलीबारी शुरू कर दी। जिसमें सीआरपीएफ के जवान रमेश रंजन घायल हो गए बाद में उन्होंने दम तोड़ दिया।