राफेल डील पर लंबी चली सुनवाई, सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला

- चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की पीठ ने कहा - जब तक इसे सार्वजनिक न किया जाए, तब तक कीमतों पर कोई बहस नहीं होनी चाहिए। 

Rafale pricing can be discussed only if facts of deal come into public domain: SC

सुप्रीम कोर्ट ने फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीद की सीबीआई जांच कराने की मांग वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। साथ ही कहा कि जब तक इसे सार्वजनिक नहीं करे, तब तक इसकी कीमतों पर कोई बहस नहीं होनी चाहिए। इसे याचिकाकर्ताओं के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। बुधवार को चली सुनवाई के दौरान सभी संबंधित पक्षों की तरफ से अपनी-अपनी दलीलें पेश की गईं। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं और सरकार के साथ-साथ वायुसेना अधिकारियों का भी पक्ष सुना।

करीब 5 घंटे लंबी मैराथन सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने कहा कि राफेल लड़ाकू विमानों की कीमतों पर कोई भी बहस तभी हो सकती है जब इस सौदे के तथ्य जनता के सामने आने दिए जाएं।  पीठ ने कहा, ‘हमें यह निर्णय लेना होगा कि क्या कीमतों के तथ्यों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए या नहीं।’ पीठ ने अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल से कहा कि तथ्यों को सार्वजनिक किए बगैर इसकी कीमतों पर किसी भी तरह की बहस का सवाल नहीं है।    

हालांकि, पीठ ने अटार्नी जनरल को स्पष्ट किया कि यदि वह महसूस करेगी कि ये तथ्य सार्वजिनक होने चाहिए, तभी इनकी कीमतों पर बहस के बारे में विचार किया जायेगा।    केंद्र की ओर से जब अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने बहस शुरू की तो पीठ ने 36 राफेल विमानों की खरीद के मामले में भारतीय वायु सेना के किसी अधिकारी से भी सहयोग का आग्रह किया है। पीठ ने कहा, ‘हम वायु सेना की जरूरतों पर विचार कर रहे हैं और हम राफेल विमान के बारे में वायु सेना के किसी अधिकारी से जानना चाहेंगे। हम इस मुद्दे पर रक्षा मंत्रालय के अधिकारी को नहीं बल्कि वायु सेना के अधिकारी को सुनना चाहते हैं।’    वेणुगोपाल ने कहा कि वायु सेना के एक अधिकारी कुछ मिनटों में ही यहां पहुंचने वाले हैं।

अटार्नी जनरल ने बहस के दौरान राफेल विमानों की कीमतों से संबंधित गोपनीयता के प्रावधान का बचाव किया और कहा, ‘यदि कीमतों के बारे में सारी जानकारी सार्वजनिक कर दी गई तो हमारे शत्रु इसका लाभ ले सकते हैं। विमानों की कीमतों के विवरण का खुलासा करने से इनकार करते हुये वेणुगोपाल ने कहा कि कीमतों के मुद्दे पर वह न्यायालय की और अधिक मदद नहीं कर सकेंगे। अटार्नी जनरल ने कहा, ‘मैंने खुद भी इसका अवलोकन नहीं करने का निर्णय किया क्योंकि इसके लीक होने की स्थिति में मेरा कार्यालय इसके लिये जिम्मेदार होगा।’

वेणुगोपाल ने शीर्ष अदालत से कहा कि न्यायालय न्यायिक रूप से यह फैसला करने के लिए सक्षम नहीं है कि कौन सा विमान और कौन से हथियार खरीदे जाएं क्योंकि यह विशेषज्ञों का काम है। ‘हम लगातार कह रहे हैं कि इन विमानों की पूरी कीमत के बारे में संसद को भी नहीं बताया गया है।’  एक याचिकाकर्ता प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया था कि इस सौदे के लिए फ्रांस ने कोई सरकारी गारंटी नहीं दी है, इस आरोप पर अटार्नी जनरल ने स्वीकार किया कि कोई सरकारी गारंटी नहीं दी गई है लेकिन कहा कि फ्रांस ने सहूलियत पत्र दिया है जो सरकारी गारंटी की तरह ही है।

वेणुगोपाल ने कहा कि संप्रग सरकार के दौरान के पिछले अनुबंध में विमान जरूरी हथियार प्रणाली से लैस नहीं थे और सरकार की आपत्ति इस तथ्य को लेकर ही है कि वह अंतर-सरकार समझौता और गोपनीयता के प्रावधान का उल्लंघन नहीं करना चाहती। उन्होंने कहा कि नवंबर, 2016 की विनिमय दर के आधार पर सिर्फ लड़ाकू विमान की कीमत 670 करोड़ थी। भारत ने अपनी वायु सेना को सुसज्जित करने की प्रक्रिया में उड़ान भरने के लिए तैयार अवस्था वाले 36 राफेल लड़ाकू विमान फ्रांस से खरीदने का समझौता किया था। इस सौदे की अनुमानित लागत 58,000 करोड़ रुपये है। वेणुगोपाल ने कहा कि पहले इन विमानों को जरूरी हथियार प्रणाली से लैस नहीं किया जाना था और सरकार की आपत्ति इस तथ्य को लेकर ही है कि वह अंतर-सरकार समझौता और गोपनीयता के प्रावधान का उल्लंघन नहीं करना चाहती। (इनपुट भाषा)
 

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