भाजपा की बागी सांसद ने थामा कांग्रेस का हाथ, कई और सांसद हैं प्रियंका के संपर्क में

By Team MyNation  |  First Published Mar 3, 2019, 11:07 AM IST

 हालांकि पहले ये कहा जा रहा था कि पार्टी के राज्यसभा सांसद पीएल पुनिया बहराइच से चुनाव लड़ेंगे। लेकिन वो अपने क्षेत्र बाराबंकी से बाहर नहीं जाना चाहते हैं। पुनिया बाराबंकी से 2009 में सांसद रह चुके हैं। 

भाजपा की बागी सांसद सावित्री बाई फुले ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है। फुले बहराइच से भाजपा की सांसद है और कुछ तीन महीने पहले उन्होंने भाजपा से इस्तीफा दे दिया था। फुले के कांग्रेस ज्वाइन करने के बाद इस बात की संभावना बढ़ गयी हैं कि आने वाले समय में कई और बागी सांसद कांग्रेस का दामन थाम कर आगामी लोकसभा चुनाव में फिर से भाग्य आजमा सकते हैं।

फुले भाजपा के टिकट पर बहराइच की सुरक्षित सीट से जीती थी। लेकिन पिछले दो साल से उन्होंने पूरी तरह के भाजपा की केन्द्र और राज्य सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ था। पिछले साल उन्होंने आरक्षण के मुद्दे पर लखनऊ में रैली की थी। लेकिन भाजपा ने उन्हें पार्टी से नहीं निकाला। फुले के पार्टी छोड़ने के बाद से ही कयास लग रहे थे कि वह सपा या बसपा से जुड़ सकती हैं। पिछले दिनों उन्होंने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से भी मुलाकात की थी। लेकिन उन्हें टिकट दिए जाने के लिए कोई आश्वासन नहीं मिला।

हालांकि कांग्रेस भी पहले उन्हें टिकट देने के पक्ष में नहीं थी। लेकिन राज्य के पूर्वी हिस्से की कमान प्रियंका को दिए जाने के बाद कांग्रेस ने दूसरे दलों के नेताओं को पार्टी में शामिल करना शुरू कर दिया था। फुले के अलावा फतेहपुर से पूर्व सांसद राकेश सचान भी कांग्रेस में शामिल हुए। ऐसा कहा जा रहा है कि फुले को कांग्रेस बहराइच से टिकट दे सकती है। ये सीट सुरक्षित वर्ग में आती है। हालांकि पहले ये कहा जा रहा था कि पार्टी के राज्यसभा सांसद पीएल पुनिया बहराइच से चुनाव लड़ेंगे। लेकिन वो अपने क्षेत्र बाराबंकी से बाहर नहीं जाना चाहते हैं।

पुनिया बाराबंकी से 2009 में सांसद रह चुके हैं। फुले की कांग्रेस में इंट्री के बाद भाजपा के कई और बागी सांसद भी कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं। क्योंकि भाजपा में करीब चार दर्जन सांसदों के टिकट कट सकते हैं। लिहाजा ज्यादातर सांसद अपने टिकट बचाने की जुगत में हैं कुछ सांसद दूसरे दलों के संपर्क में हैं ताकि भाजपा से टिकट न मिलने की स्थिति में अन्य दलों के टिकट पर चुनाव लड़ा जा सके।

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