हिमाचल प्रदेश में छात्रवृत्ति घोटाले की वजह से राज्य से सवा लाख छात्रों का भविष्य दांव पर है। यहां पूर्ववर्ती वीरभद्र सरकार के शासनकाल में ढाई सौ करोड़ का छात्रवृत्ति घोटाला हुआ था। जिसके कारण छात्रों को मिलने वाला पैसा रुक गया है। इस मामले की जांच सीबीआई कर रही है।
हिमाचल प्रदेश में पिछली सरकार के शासनकाल में हुए छात्रवृत्ति घोटाले से यहां क छात्र प्रभावित हो रहे हैं। लगभग ढाई सौ करोड़ के इस घोटाले के उजागर होने के बाद हिमाचल के विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी शिक्षण संस्थानों में पढ़ रहे अनुसूचित जाति वर्ग के एक लाख से ज्यादा छात्र-छात्राओं की छात्रवृत्ति रुक गई है।
स्टूडेन्ट्स को 2017-18 की छात्रवृत्ति भी नहीं मिल सकी है। इस मामले में हिमाचल की नई सरकार का कहना है कि शिक्षण संस्थानों को छात्रवृत्ति के लिए फूलप्रूफ सिस्टम बनाने के लिए कहा गया है। इस के बाद ही राशि जारी होगी।
उधर, उच्च शिक्षा निदेशालय ने छात्रवृत्ति जारी करने की मांग कर रहे एक छात्र संगठन को लिखे पत्र में कहा है- चूंकि, अभी केंद्र सरकार से उन्हें बजट नहीं मिला है, इसके चलते वर्ष 2017-18 की छात्रवृत्ति लंबित है।
हिमाचल प्रदेश के छात्र संगठन लगातार राज्यपाल से लेकर मुख्यमंत्री तक छात्रवृत्ति जारी करने की मांग कर रहे हैं। धर्मशाला में हुए विधानसभा के शीत सत्र के दौरान विपक्ष की ओर से छात्रवृत्ति न मिलने का मुद्दा उठाने पर सरकार की ओर से गोलमोल जवाब ही दिया गया था।
दरअसल हर साल प्रदेश सरकार को केंद्र सरकार से मिली राशि का यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट देना पड़ता है। पिछले दो साल का यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट राज्य सरकार ने केंद्र को भेजा ही नहीं है।
इसलिए बजट रोक दिया गया है। स्कॉलरशिप की राशि पात्र विद्यार्थियों के खाते में सीधे डाली जाती है। संस्थानों से कहा गया है कि इसके लिए फूलप्रूफ व्यवस्था की जाए, ताकि पहले की तरह कोई गड़बड़ी न हो।
यह घोटाला हिमाचल में प्रदेश में पहले की वीरभद्र सरकार के समय में हुआ था। जिसमें बिना वेरीफिकेशन के ही यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट जारी कर दिए गए थे और अपात्रों को भी छात्रवृत्तियां दी गई।
यही नहीं दस फीसद निजी संस्थानों को 90 फीसदी यानी 210 करोड़ जारी किए। जबकि बाकी के 90 फीसद सरकारी संस्थाओं को केवल 10 फीसद धनराशि ही दी गई।
इस मामले में हिमाचल की नई ठाकुर सरकार ने सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी है।