गठबंधन की रणनीति होगी आज तय, आज मंच साझा करेंगे अखिलेश-माया

By Team MyNation  |  First Published Jan 12, 2019, 10:40 AM IST

आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ सपा-बसपा गठबंधन को लेकर चल रही अटकलों का दौर आज खत्म हो जाएगा. जब सपा प्रमुख अखिलेश यादव और बसपा प्रमुख मायावती संयुक्त संवाददाता सम्मेलन कर गठबंधन का ऐलान करेंगे.

आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ सपा-बसपा गठबंधन को लेकर चल रही अटकलों का दौर आज खत्म हो जाएगा. जब सपा प्रमुख अखिलेश यादव और बसपा प्रमुख मायावती संयुक्त संवाददाता सम्मेलन कर गठबंधन का ऐलान करेंगे. प्रदेश की राजनीति में पिछले पच्चीस सालों के दौरान ये सबसे बड़ा राजनैतिक फैसला माना जा रहा है. जो दो विरोधी दल आपस में मिलकर चुनाव का ऐलान करने जा रहे हैं.

भाजपा को आगामी लोकसभा चुनाव में हराने के लिए आज यूपी की राजनीति में 25 साल बाद पिछड़े व दलितों का गठजोड़ आज दोनों दलों के बीच गठबंधन का फैसला होने के बाद दिखेगा. इस गठबंधन की नींव डेढ़ साल पहले यूपी में हुए उपचुनाव में ही पड़ गयी थी, लेकिन औपचारिक तौर पर गठबंधन आज होगा. मौजूदा राजनीति में ये देश की सबसे बड़ा राजनैतिक गठबंधन है. जिस पर सभी दलों की नजर लगी हुई है.

अब सपा की कमान मुलायम सिंह यादव नहीं बल्कि अखिलेश के हाथ में है। असल में अयोध्या में 6 दिसम्बर 1992 को विवादित परिसर को ध्वस्त किए जाने के बाद यूपी में कल्याण सिंह की सरकार बर्खास्त हो चुकी थी. हिन्दुत्व की लहर में फिर भाजपा सत्ता में न आ जाए इसके मद्देनजर बसपा के तत्कालीन अध्यक्ष कांशीराम ने समाजवादी पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव से चुनावी गठजोड़ किया था. दलित-पिछड़ों के इस गठजोड़ का तब सबसे ज्यादा फायदा बसपा को हुआ. विधानसभा में 3 और 13 सीट पाने वाली बसपा 67 पर पहुंच गई और सपा 109 सीटों के बूते कांग्रेस व रालोद के समर्थन से मुलायम सरकार बनाने में सफल हो गये.

इस प्रयोग को लेकर राजनीतिक हलकों में खासकर भाजपा में खासी बेचैनी हुई. तब माना जाने लगा था कि यदि यह गठजोड़ बना रहा था तो फिर इन्हें सत्ता से हटा पाना मुश्किल होगा. राज्य में 4 दिसम्बर 1993 को मुलायम के नेतृत्व में बनी गठबंधन की सरकार तब 18 महीने चली. उस वक्त कुछ करणों से से 1 जून 1995 को बसपा ने सपा से समर्थन वापस लिया और 2 जून 1995 को बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम हुआ, जिसे देश की राजनीति में गेस्ट हाउस कांड के तौर पर जाना जाता है. इस घटनाक्रम ने बसपा और सपा में इतनी कड़वाहट भरी कि दोनों दलों के नेतृत्व में ढाई दशक तक यह दूरी बनी रही. मगर अब प्रदेश में एक बार फिर राजनीति ने करवट ली है.

भाजपा आज केन्द्र से लेकर राज्य की सत्ता में काबिज है. सपा और बसपा दोनों ही दल राजनीतिक रूप में कमजोर हुए हैं. ऐसे में दोनों दल अकेले चुनावी जंग में भाजपा को सत्ता से बेदखल करने में अपने को सक्षम नहीं मान रहे हैं. यूपी विधानसभा चुनाव के बाद गोरखपुर और फूलपुर सीट पर भाजपा की हार ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को एक नई किरण दिखायी. अखिलेश ने तत्काल ही इस जीत का श्रेय बसपा नेत्री मायावती को दिया. अखिलेश की इस पहल को मायावती ने महत्वपूर्ण माना और 25 साल से सपा-बसपा के बीच चली आ रही कड़वाहट को भुला दिया. हालांकि सपा-बसपा राज्य की कुछ छोटी पार्टियों रालोद, कौमी एकता पार्टी, अपना दल (कृष्णा पटेल), सुहेल देव राजभर समाज पार्टी को भी गठबंधन में जोड़ने की रणनीति पर काम कर रही है.

पिछली बार यानी 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 71 और उसके सहयोगी अपना दल ने 2 सीटें जीतीं थीं. वहीं, एसपी के खाते में पांच और कांग्रेस के खाते में दो सीटें ही आई थीं. हालांकि राजनैतिक हलकों में माना जा रहा है कि सबकुछ वोटों पर निर्भर करेगा. क्योंकि दोनों पार्टियों के द्वारा अपने वोट बैंक को अपने साझेदारों को ट्रांसफर करना है. इसमें साफ है कि बसपा का वोट बैंक सपा में ट्रांसफर तो हो जाएगा, लेकिन सपा का वोट बैंक भाजपा या फिर प्रसपा की तरफ जा सकता है.

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