नेताओं के आपराधिक मामलों में एक साल के अंदर फैसला सुनाने पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा सवाल

By Gopal Krishan  |  First Published Jan 8, 2019, 4:27 PM IST

सजा पाए नेताओं पर चुनाव लड़ने पर आजीवन रोक के मामले में सुनवाई से पहले सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने आदेश का स्टेटस जानने की इच्छा जाहिर की है। पहले के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राजनेताओं पर आपराधिक मामलों में एक साल के अंदर फैसला आ जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने देवरिया में माफिया नेता अतीक अहमद की गुंडागर्दी पर भी नाराजगी जाहिर की। 

आपराधिक मामलों में दोषी करार दिए गए नेताओ को आजीवन चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाने की मांग वाली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने देवरिया में अतीक की गुंडागर्दी पर नाराजगी जाहिर किया है। कोर्ट ने व्यापारी मोहित की पिटाई के मामले में सरकार से 2 हफ्ते में रिपोर्ट मांगी है। कोर्ट ने अतीक अहमद के रवैये पर तब नाराजगी जाहिर किया जब अमिक्स क्यूरी विजय हंसरिया ने अदालत को इसकी जानकारी दी। 

कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार बताये की अतीक अहमद के खिलाफ कितने केस चल रहे है और उसका स्टेट्स क्या है। पीड़ित मोहित कई सालों से प्रोपर्टी डीलिंग का काम कर रहा है। उसने धीरे धीरे करके काफी जमीन खरीद ली। अब जमीनों की कीमतों काफी बढ़ गई है। इसी के बाद अतीक अहमद उस पर दबाव बढ़ाने लगा । 
अक्सर उससे कहा जाता कि इतने पैसे लेकर फला जमीन का बैनामा कर दो जब उसने बात मानना बंद कर दिया तो अतीक अहमद ने अपहरण कर उसे देवरिया जेल में पीटा गया। 

आपराधिक मामलों में दोषी करार दिए गए नेताओ को आजीवन चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाने की मांग को लेकर बीजेपी नेता व वकील अश्विनी उपाध्याय की अर्जी में कहा गया है कि जनप्रतिनिधित्व कानून की     धारा- 8(3) के मुताबिक अगर किसी को दो साल से ज्यादा सजा होती है तो वह सजा काटने के बाद 6 साल तक चुनाव नहीं लड़ सकता। 

इस मामले को लेकर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने बीजेपी नेता व याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय से कहा था कि वह पूर्व में दाखिल अपनी याचिका की मुख्य मांग से न भटके। उपाध्याय ने याचिका में मांग की है कि जैसे ही नेता को आपराधिक मामले में दोषी करार दिया जाता है उसे जीवन भर के लिए चुनाव लड़ने पर बैन किया जाना चाहिए। 

सरकारी अधिकारी को सजा होने के बाद बाकी के तमाम जीवन के लिए उसकी नौकरी खत्म हो जाती है तो फिर नेताओं को ज्यादा तरजीह क्यों दी जाए। 

इस सुनवाई के दौरान पीठ इस मसले पर विचार करने से पहले यह जानना चाहता था कि कोर्ट के उस आदेश का क्या हुआ जिसमें दागी नेताओं के खिलाफ दर्ज मुकदमो का निपटारा एक वर्ष में पूरा करने का निर्देश दिया गया था। 

क्योंकि इस मामले की सुनवाई के दौरान अमिक्स क्यूरी विजय हंसरिया ने कहा था कि दागी सांसद व विधायकों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमे से निपटने के लिए स्पेशल कोर्ट बनाने से बेहतर है कि हर जिले में एक सत्र न्यायालय और एक मजिस्ट्रेट कोर्ट को विशेष तौर ऐसे मामलों के निपटारे के लिए सूचीबद्ध कर दिया जाए। जिससे निर्धारित समय के भीतर मुकदमे का निपटारा संभव हो सके। 

दागी सांसद और विधयकों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमे से निपटने के लिए 70 स्पेशल कोर्ट बनाने की जरूरत है। इसपर केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल ने कहा था कि सरकार का ऐसा मानना है कि जहां 65 से कम मुकदमे दर्ज है वहां किसी नियमित कोर्ट को ऐसे मुकदमो का निपटारा करने की जिम्मेदारी दे दी जानी चाहिए। याचिका में एडीआर की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था कि सांसद व विधायकों के खिलाफ 13680 आपराधिक मुकदमे लंबित है।
 

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