सीबीआई ने सज्जन कुमार की ओर से दायर जमानत याचिका को खारिज करने का किया था अनुरोध। एजेंसी ने कहा था, अगर सुप्रीम कोर्ट सज्जन कुमार को जमानत देता है, तो लंबित मामलों की ठीक से जांच नहीं हो सकेगी।
1984 सिख दंगा मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे पूर्व कांग्रेसी नेता सज्जन कुमार को सुप्रीम कोर्ट से फिलहाल राहत नहीं मिली है। सज्जन कुमार को फिलहाल जेल में ही रहना होगा। कोर्ट ने साफ कहा है कि इस मामले में सज्जन कुमार की ओर से दायर जमानत याचिका पर अगस्त में सुनवाई करेगा। हालांकि सज्जन कुमार के वकील की तरफ से कई दलीलें दी गई और गोधरा कांड का उदाहरण भी दिया गया।
पिछली सुनवाई के दौरान सीबीआई ने कोर्ट से सज्जन कुमार की ओर से दायर जमानत याचिका को खारिज करने का आग्रह किया था। सीबीआई ने कहा था कि अगर सुप्रीम कोर्ट सज्जन कुमार को जमानत दे देता है, तो लंबित मामलों की ठीक से जांच नहीं हो सकेगी। सीबीआई ने कोर्ट में यह भी कहा था कि सज्जन कुमार एक प्रभावशाली नेता हैं और अपने खिलाफ गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं।
इसके बाद कोर्ट ने सीबीआई से यह बताने को कहा था कि वर्तमान में सज्जन कुमार पर कितने केस चल रहे हैं और उनकी स्थिति क्या है। कोर्ट ने सीबीआई से पूछा था अगर सज्जन कुमार को जमानत देते हैं तो क्या वह परेशानी का सबब बनेंगे? जिसपर सीबीआई ने पुरानी घटना का जिक्र करते हुए कहा था कि सर्च के दौरान भीड़ ने सीबीआई का विरोध किया। भीड़ तभी हटी जब सज्जन कुमार को जमानत मिली और उन्होंने भीड़ को कहा था कि अब अग्रिम जमानत मिल गई है अब इन्हें जाने दो।
सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई से पूछा था कि सज्जन कुमार के खिलाफ जो दूसरा मामला चल रहा है उसकी सुनवाई पूरी में कितना समय लगेगा। सीबीआई ने कोर्ट में बताया कि 3 से 4 महीने लग सकते हैं। वहीं सज्जन कुमार के वकील ने कहा था कि जिस घटना की सीबीआई बात कर रही है उसपर कोर्ट ने अविश्वास जताया था। सुप्रीम कोर्ट ने सज्जन कुमार के वकील से कहा कि वो फैसले की कॉपी हमें दिखाए। सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को कहा था कि आप हमें ऐसी दस्तावेज क्यों दिखा रहे हैं जिसपर कोर्ट ने अविश्वास जताया हो।
सज्जन कुमार को इस मामले में आरोपी पाए जाने के बाद हाइकोर्ट ने अन्य 5 आरोपियों पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया था। इनमें से बलराम खोखर, कैप्टन भागमल, गिरधारी लाल को आजीवन कारावास की सजा सुनवाई गई थी। साथ ही महेंद्र यादव और किशन खोखर की सजा को बढ़ाकर 10 साल कर दिया था। कोर्ट ने फैसला देते हुए टिप्पणी की थी कि विभाजन के बाद यह दूसरा मौका है जब नरसंहार में सैकड़ों लोगों की हत्या हुई। कोर्ट ने पाया था कि हत्यारों को राजनैतिक संरक्षण मिला था। दिल्ली कैंटोनमेंट के राज नगर इलाके में एक दो नवंबर 1984 को पांच सिखों की हत्या और एक गुरुद्वारा में आग लगाए जाने के मामले में दोषी करार दिया गया है। 31 अक्टूबर, 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख विरोधी दंगे हुए थे।