भारत में निर्वासित जीवन बिता रही बांग्लादेशी लेखिका ने बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को लेकर दोहरे मापदंड अपनाने का लगाया आरोप
बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आरोप लगाया है कि असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को लेकर चल रही कवायद के पीछे भाजपा है। बांटने और राज करने के 'राजनीतिक मकसद' से इसे चलाया जा रहा है। ममता ने कहा है कि 'लोगों को अपने ही देश में शरणार्थी नहीं बनाया जा सकता।' हालांकि बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने नागरिकता को लेकर ममता के दोहरे रवैया पर हमला बोला है।
ममता ने भाजपा को यह कहते हुए चेताया कि इस कदम से हिंसा फैल सकती है और देश में गृहयुद्ध छिड़ सकता है। लेकिन भारत में निर्वासित जीवन बिता रहीं तस्लीमा नसरीन ने ममता के दावों पर सवाल खड़े किए हैं। तस्लीमा को अपनी किताब 'लज्जा' के चलते 2007 में मुस्लिम समुदाय की ओर से हिंसक विरोध का सामना करना पड़ा था।
तस्लीमा ने ट्वीट किया, 'देखकर अच्छा लगा कि ममताजी के मन में 40 लाख बांग्ला भाषियों के लिए हमदर्दी है। उन्होंने यह भी कहा कि असम से निकाले जाने वाले लोगों को वह बंगाल में शरण देंगी। लेकिन उनके मन में तब मेरे लिए हमदर्दी क्यों नहीं जगी, जब उनके विरोधी दल ने मुझे बंगाल से बाहर फेंक दिया था।' इससे पहले, नसरीन ने ममता को खतरनाक विपक्ष बताया था।
Good to see Mamtaji is so sympathetic to 40 lakh Bengali speaking people. She even says West Bengal will shelter those people left out of Assam. How come she doesn't have any sympathy for me who was thrown out of Bengal by her rival party?
तस्लीमा ने ट्वीट किया, 'ममताजी के मन में अपनी जड़ों से कट चुके और बंगाली बोलने वाले बेघरों के लिए कोई हमदर्दी नहीं है। अगर ऐसा है, तो उनके मन में मेरे लिए हमदर्दी होनी चाहिए। उन्हें मुझे बंगाल में प्रवेश की इजाजत देनी चाहिए।'
Mamtaji does not have sympathy for all rootless or homeless Bengali speaking people. If she had, she would have sympathy for me and she would have allowed me to enter West Bengal.
— taslima nasreen (@taslimanasreen)तस्लीमा नसरीन 1994 से ही निष्कासित जीवन बिता रही हैं। उन्हें अपने लेखन के चलते मुस्लिम कट्टरपंथियों से कई बार जान से मारने की धमकी मिल चुकी है। 2004 में उन्होंने भारत में शरण ली और कोलकाता में रहने लगीं। लेकिन, 2007 में तत्कालीन वाम सरकार ने उन्हें बंगाल से बाहर चले जाने पर मजबूर कर दिया। महिलाओं के मामलों को लेकर आगे रहने वाली ममता इस मुद्दे पर चुप्पी साधे रहीं। इसके बाद सत्ता में आने के बाद उनके वोट बैंक ने उन्हें तस्लीमा से दूर बनाए रखा।
ममता ने कहा कि भगवा पार्टी देश को बांटने का काम कर रही है। इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। हालांकि जब तस्लीमा नसरीन ने ममता से मदद मांगी तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। 2017 में, एक इंटरव्यू में तस्लीमा नसरीन ने कहा था, 'हालांकि मैं यहां नहीं रहने वाली, ममता ने मेरी किताब निर्वासन को प्रकाशित नहीं होने दिया। मुस्लिम कट्टरपंथियों के विरोध के बाद ममता ने मेरे द्वारा लिखे गए एक टीवी सीरियल का प्रसारण भी रोक दिया। वह मुझे बंगाल में प्रवेश नहीं करने दे रहीं।'
इसलिये, इस पूरे विवाद से एक बड़ा सवाल जरूर खड़ा हो जाता है। क्या ममता वाकई एनआरसी को लेकर चिंतित हैं या ये सिर्फ अपने वोट बैंक को मजबूत करने का एक तरीका है।