टॉम वडक्कन Exclusive : ‘अध्यक्ष बनने के बाद मुझसे एक बार भी नहीं मिले राहुल गांधी’

By Anindya Banerjee  |  First Published Mar 29, 2019, 8:55 AM IST

सोनिया गांधी के करीबी और राजीव गांधी के साथ सलाहकार के तौर पर काम कर चुके टॉम वडक्कन ने पाकिस्तान के बालाकोट को लेकर पार्टी के रुख के बाद कांग्रेस छोड़ दी। पार्टी छोड़ने के पीछे की वजहों पर वडक्कन ने ‘माय नेशन’ से खुलकर बात की। 

असम के पूर्व मुख्यमंत्री के करीबी हेमंता बिस्व शर्मा के कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामने के साढ़े तीन साल बाद बारी थी टॉम वडक्कन की। सोनिया गांधी के करीबी और राजीव गांधी के साथ सलाहकार के तौर पर काम कर चुके टॉम वडक्कन ने पाकिस्तान के बालाकोट को लेकर पार्टी के रुख के बाद कांग्रेस छोड़ दी। कांग्रेस की मीडिया सेल के मुख्य चेहरा रहे टॉम वडक्कन ने अपने इस कदम और उसके पीछे के कारणों को लेकर ‘माय नेशन’ से खुलकर बात की। 

भाजपा में शामिल होने के बाद अपने पहले इंटरव्यू में वडक्कन ने कांग्रेस का वह पक्ष मीडिया के सामने रखा जिसे कोई करीबी ही बता सकता है। यह भारतीय राजनीति का दूसरा हेमंता बिस्व शर्मा पल है। 

एक साल से नहीं हो पाई राहुल से मुलाकात

एक सनसनीखेज खुलासा करते हुए कांग्रेस के पूर्व नेता ने कहा कि वह राहुल गांधी के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद से उनसे नहीं मिल पाए हैं। उन्होंने कहा, ‘मैं आपको यह चौंकाने वाली जानकारी दे रहा हूं। जब राहुल राजनीति में नहीं आए थे तो मैं उनके साथ क्रिकेट खेला करता था। जब वह घर में होते थे तो मेरी कभी कभार उनसे मुलाकात हो जाती थी। लेकिन उनके कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद ऐसा नहीं हुआ। आखिरी बार मेरी उनसे मुलाकात एक साल पहले हुई थी।’ खास बात यह है कि पूर्वोत्तर के बड़े नेता हेमंता बिस्व शर्मा ने भी कांग्रेस छोड़ने से पहले महीनों तक राहुल से मुलाकात न हो पाने को एक बड़ी वजह बताया था। 

राहुल से बेहतर थी सोनिया गांधी
 
टॉम वडक्कन ने कहा कि यूपीए के चेयरपर्सन सोनिया गांधी लोगों को सुनती हैं। उनका लोगों से मिलने का तरीका लोकतांत्रिक है। लेकिन यहां आप आप अकेले में नहीं मिल सकते। जब भी आपकी मुलाकात होगी दोचार लोग आसपास होंगे। अगर आप अपने कार्यकर्ताओं की नहीं सुनेंगे तो कैसे चलेगा। कम से कम सुनने की कोशिश तो करनी ही चाहिए। सोनिया गांधी कार्यकर्ताओं से मिलती थीं। वह अक्सर उनसे सुनती और सलाह देती थीं। वडक्कन ने कहा, ‘यहां ठीक उल्टा है। अगर आप कार्यकर्ता हैं तो हां में हां मिलाइये।’ उन्होंने आरोप लगाया कि ‘कांग्रेस की कथनी और करनी में अंतर है।’ 

राहुल अभी परिपक्व नहीं

हेमंता बिस्व शर्मा की तरह टॉम वडक्कन ने भी कहा कि राहुल अभी ‘परिपक्व’ नहीं हैं। उन्होंने कहा, ‘मैं उन्हें अब भी बच्चे की तरह ही देखता हूं। हालांकि वह खुद को बड़ा दिखाने के लिए दूसरे को काटना चाहते हैं। माफ कीजिए, लेकिन राजनीति में ऐसा नहीं होता है।’ टॉम वडक्कन ने यह बात पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के कुछ दिन बाद कही है। ममता ने भी राहुल को ‘बच्चा’ कहा है। 

राकेश सिन्हा मुझे भाजपा में लाए

भाजपा में मुझे लाने का श्रेय संघ के विचारक और भाजपा के राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा को जाता है। वडक्कन ने कहा कि मैं कुछ समय से इस पर विचार कर रहा था, सिन्हा ने मुझे इस बारे में सोचने को कहा था। अक्सर टीवी पर  भाजपा की विचारधारा पर सवाल उठाने वाले वडक्कन अब टीवी पर भाजपा का क्रिश्चियन चेहरा होंगे। गांधी परिवार के पूर्व करीबी वडक्कन ने कहा, ‘हमारी कई बार सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर चर्चा हुई। सिन्हा ने मुझे बताया कि कैसे उनका धर्म तटस्थ है। कोई भी उसका हिस्सा बन सकता है।’ इसके बाद उन्होंने राकेश सिन्हा के ‘सांस्कृति राष्ट्रवाद’ का हिस्सा बनने की संभावनाएं तलाशना शुरू कर दिया। जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने कब भाजपा में शामिल होने का फैसला किया तो वडक्कन ने कहा कि यह एक हफ्ते में हो गया। इसके बाद कई दौर की चर्चा हुई और फिर भाजपा कार्यालय मे उनके पार्टी में आने की घोषणा हुई। 

भाजपा की टिकट की पेशकश को ठुकराया

माना जा रहा था कि भाजपा वडक्कन को आगामी लोकसभा चुनाव में केरल से टिकट दे सकती है। लेकिन पार्टी ने ऐसा नहीं किया। हालांकि उन्होंने कहा कि पार्टी की ओर से उन्हें सीट देने की पेशकश हुई थी। लेकिन उन्होंने इससे इनकार कर दिया। वडक्कन के मुताबिक, वह पार्टी में नए हैं। उन्हें संगठन से जुड़ना है। अभी वह स्थानीय ईकाई से भी परिचित नहीं हैं, ऐसे में उनका चुनाव लड़ना लंबे समय से काम करने वाले लोगों को धोखा लग सकता था। वडक्कन ने कहा कि अगर पार्टी आगे मुझे कोई संगठन अथवा चुनाव से जुड़ा कोई भी दायित्व देगी तो मैं इसके लिए तैयार हूं। अभी मैं राज्य में पार्टी की स्थानीय इकाई से जुड़ना चाहता हूं। 

सबरीमला प्रकरण दुखद, चर्च भी करता है परंपरा का समर्थन

केरल में ध्रुवीकरण का मुद्दा बने सबरीमला मुद्दे पर भी वडक्कन ने खुलकर अपनी बात रखी। उन्होंने एक कदम आगे जाते हुए कहा, जब सरकारों अथवा कोर्ट द्वारा मान्यताओं पर अतिक्रमण होता है। तो उस पर सवाह उठ सकते हैं। केरल से भाजपा का प्रमुख चेहरा बन चुके वडक्कन ने कहा कि चर्च भी सबरीमला की परंपरा का समर्थक है। परंपराओं से छेड़छाड़ के चलते राज्य में हिंसा हुई। सबरीमला की परंपरा के समर्थक अय्यपा के भक्तों की पुलिस से भिड़ंत भी हुई। दो दशकों से कांग्रेस का हिस्सा रहे वडक्कन ने कहा कि इस मुद्दे पर कांग्रेस की राज्य ईकाई का रुख अलग जबकि केंद्रीय ईकाई का रुख अलग था। केवल भाजपा ऐसी पार्टी थी जो सबरीमला के अनुयायियों के साथ अकेले खड़ी थी। 

वडक्कन का कांग्रेस छोड़ने के पीछे की वजहें वैसी ही हैं, जैसी असम के वित्त मंत्री और पूर्व सीएम तरुण गोगोई के करीबी हेमंता बिस्व शर्मा के समय में थी। आज हेमंता पूर्वोत्तर के सबसे बड़े नेता बन चुके हैं। भाजपा महासचिव राम माधव खुद कह चुके हैं कि पूर्वोत्तर के मामलों में हेमंता भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से ज्यादा शक्तिशाली हैं। कांग्रेस छोड़ते समय उन्होंने भी कांग्रेस नेता राहुल गांधी की बेरूखी का मुद्दा उठाया था। कुल मिलाकर यह साफ हो गया है कि इतने वर्षों में कांग्रेस में व्यवस्थाएं नहीं बदली हैं। वडक्कन ने एक बड़ा बयान देते हुए कहा कि जहां तक मेरा मानना है कि कांग्रेस का मीडिया विभाग खत्म हो चुका है। 

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