शहरी नक्सलियों का देश के खिलाफ युद्ध: पीएम की हत्या की साजिश, आतंकवाद को फंडिंग, आदिवासियों का धर्मांतरण........

By Siddhartha Rai  |  First Published Sep 28, 2018, 6:56 PM IST

भारत के प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में घुसपैंठ से लेकर, विचारधारा के नाम पर छात्रों का ब्रेनवाश, देश के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में आदिवासियों का धर्मांतरण तक इन शहरी नक्सलियों का हर कार्य का उद्देश्य भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली वाली शासन व्यवस्था को ध्वस्त करना है, जिसमें प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश का मामला भी शामिल है।

नई दिल्ली-  सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को पांच शहरी नक्सलियों की गिरफ्तारी को बरकरार रखा, साथ ही  विशेष जांच दल (एसआईटी) के द्वारा स्वतंत्र जांच की मांग को खारिज कर दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने 2-1 के बहुमत से दिए अपने फैसले में इस बात का भी उल्लेख किया है, कि गिरफ्तारी वैचारिक मतभेद और असंतोष के आधार पर नहीं की गई है।

माय नेशन आपको उन गंभीर आरोपों और उसकी घृणित प्रकृति के बारे में विस्तार से बताएगा, जिसका आरोप इन शहरी नक्सलियों पर लगा है। इसमें भारत के प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में घुसपैंठ से लेकर, विचारधारा के नाम पर छात्रों का ब्रेनवाश, देश के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में आदिवासियों का धर्मांतरण तक इन शहरी नक्सलियों का हर कार्य का उद्देश्य भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली वाली शासन व्यवस्था को ध्वस्त करना है, जिसमें प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश का मामला भी शामिल है।  

1.    भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा की जांच करते हुए पुलिस को इस बात के सबूत हासिल हुए कि माओवादी भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हत्या की साजिश रच रहे हैं। जिसके लिए श्रीलंका के आतंकी संगठन एलटीटीई द्वारा राजीव गांधी की हत्या का तरीका अपनाने का षड्यंत्र चल रहा था।

2.    मामले की जांच करते समय पुणे पुलिस के हाथ एक पत्र लगा, जिससे इस बात पर से पर्दा उठा, कि कैसे शहरी नक्सली जंगल में रहने वाले अपने कामरेड साथियों की मदद से गरीब और संदेहरहित आदिवासियों का ईसाई धर्म में धर्मांतरण कराने के लिए मिशनरियों की मदद कर रहे थे।    
‘पिछले कई सालों से हमलोग रांची जेसुइट सोसायटी के साथ काम कर रहे हैं’- पुलिस के हाथ लगी एक चिट्ठी में किसी विजयन दादा ने लिखा। ‘ईसाईयत के कार्य के लिए सबसे गरीब और समाज के वंचित वर्ग के हितार्थ सुरेन्द्र भी लगातार हमारी आर्थिक मदद कर रहा है’। चिट्ठी में जिस सुरेन्द्र का जिक्र आया है, उसे पुलिस ने सुरेन्द्र गाडलिंग बताया है।
जैसा कि चिट्ठी में लिखा है, नक्सली प्रार्थना सभा का आयोजन कराने के लिए दूरदराज के इलाकों तक जाते हैं।‘हमारे बहुत से भाई और बहन आदिवासियों की दवा, खाना जैसी कई तरह की मदद लेकर पहुंच रहे हैं। पीटर मार्टिन, एंथोनी पुथुमट्टाथिल, जेवियर सोरेंग और मारिया लुईस लगातार आदिवासियों को जागरुक करने के लिए प्रवचन आयोजित कराते हैं’।

3.    नक्सलियों के मास्टरमाइंड ‘झारखंड फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट 2017’ को लेकर भी नाखुश हैं और इसे रद्द करवाने के लिए बीजेपी नेताओं को अगवा करने की साजिश रच रहे हैं।
इसी पत्र में आगे लिखा है- ‘हमारे मकसद के सामने नई चुनौतियां आ रही हैं। जिसमेंसे एक समस्या है राज्य विधानसभा द्वारा लाया गया नया धर्मांतरण-विरोधी बिल। हम अपनी मिशनरियों पर इसके दुष्प्रभाव का अंदाजा लगा सकते हैं। यह गंभीर चिंता का विषय है। जमीनी स्तर पर हम आपकी ओर से कार्रवाई की उम्मीद करते हैं, कि आप राज्य स्तर के सत्ताधारी दल बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं को कब्जे में लें और इस दमनकारी कानून को रद्द करने के लिए दबाव बनाएं’।

4.    कई शहरी नक्सली, जो अब तक मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और कवियों के रूप खुद को प्रस्तुत कर रहे थे, वह पूरे भारत के विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों के संगठन को नियंत्रित करते हैं और देश के खिलाफ षड्यंत्र करते हैं

नक्सलियों के बीच हुए एक और पत्रव्यवहार से यह साफ पता चलता है, कि भारत के अलग अलग विश्वविद्यालयों में पढ़ा रहे वामपंथी विचारधारा के शिक्षक, जिन्होंने दक्षिणपंथी संगठनों के कथित अत्याचार या राज्य द्वारा तथाकथित अत्याचार की जांच के लिए कमिटियों का गठन कर रखा है। उन्हें नक्सलियों द्वारा पैसा दिया जाता है।

माय नेशन को हाथ लगे एक पत्र से यह राज सामने आया है, कि कामरेड सुरेन्द्र, गिरफ्तार किए गए शहरी नक्सली वरवर राव का नजदीकी सहयोगी था, जो कि उससे पैसे हासिल करके कई तरह के विध्वंसक और हिंसक गतिविधियों के लिए भेजता था। उससे पैसा हासिल करने वालों में दिल्ली से हैदराबाद तक के अलग अलग कॉलेजों के प्रोफेसर शामिल थे।

5.    स्वनामधन्य ट्रेड यूनियन लीडर सुधा भारद्वाज, जो कि माओवाद प्रभावित छत्तीसगढ़ में पिछले 29 सालों से जमी हुई हैं। उन्होंने एक कामरेड को पत्र लिखकर साईं बाबा को सजा मिलने के बाद वामपंथी चरमपंथी कार्यकर्ताओं के गिरते मनोबल पर निराशा प्रकट की थी।

माय नेशन के हाथ एक पत्र लगा है, जो कि कथित रुप से किसी प्रकाश को सुधा भारद्वाज ने लिखा था। उनको 28 अगस्त को भीमा कोरेगांव हिंसा की जांच कर रही पुणे पुलिस ने दूसरे माओवादी समर्थकों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया।

चिट्ठी का सबसे आपत्तिजनक पहलू यह है, कि इसमें भारद्वाज ने भारतीय सेना का जिक्र दुश्मन के तौर पर किया है, जो कि जम्मू कश्मीर के आतंकवादियों(जिन्हें वह अलगाववादी करार देती है) के मानवाधिकारों को उल्लंघन करती है।
 भारद्वाज द्वारा लिखे गए इस कथित पत्र में गौतम नवलखा का भी जिक्र है, जिसे पुणे पुलिस ने 28 अगस्त को गिरफ्तार किया था। चिट्ठी के मुताबिक नवलखा भारतीय कश्मीर में संघर्षरत लोगों के संपर्क में था। 

click me!