आमतौर पर मायावती भाजपा का विरोध करती हैं। लेकिन पिछले कुछ दिनों में दोनों दलों की कैमस्ट्री कुछ अलग देखने को मिल रही है। बसपा का अचानक भाजपा की तरफ आने कई तरह के सवाल पैदा कर रहा है। वहीं मायावती ने सोनभद्र नरसंहार के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से आदिवासियों की जमीन उन्हें वापस दिलाए जाने की मांग की है।
लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में 17 जुलाई को हुए नरसंहार पर भाजपा से ज्यादा समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पर आक्रामक हो रही है। मायावती ने दोनों दलों पर इस मामले में राजनीति करने का आरोप लगाया है। मायावती ने कहा कि दोनों दलों के नेता पीड़ित परिवार के यहां घड़ियाली आंसू बहाने के बजाए अगर उनकी जमीन दिलवाने के लिए कोई प्रयास करते तो ज्यादा बेहतर होता।
लोकसभा में अनुच्छेद 370 हटाने में बसपा ने केन्द्र की सत्ताधारी भाजपा का साथ दिया। हालांकि आमतौर पर मायावती भाजपा का विरोध करती हैं। लेकिन पिछले कुछ दिनों में दोनों दलों की कैमस्ट्री कुछ अलग देखने को मिल रही है। बसपा का अचानक भाजपा की तरफ आने कई तरह के सवाल पैदा कर रहा है।
वहीं मायावती ने सोनभद्र नरसंहार के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से आदिवासियों की जमीन उन्हें वापस दिलाए जाने की मांग की है। मायावती ने कहा कि आदिवासियों की जमीनों को पहले कांग्रेस और फिर सपा के भू-माफियाओं ने हड़प लिया है और जिसका विरोध करने पर कई लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया।
मुस्लिम वोट बैंक पर बसपा की नजर
असल में लोकसभा चुनाव में बसपा को मिली सीटों के बाद मायावती काफी गदगद हैं। उन्हें लोकसभा चुनाव में मुस्लिमों का खास वोट मिला जबकि इस मामले में सपा को मात मिली। जबकि दोनों दलों ने मिलकर चुनाव लड़ा था। सपा को लोकसभा चुनाव में पांच सीटें मिली और बसपा को दस। लेकिन राज्य में अक्टूबर तक 12 विधानसभा की सीटों पर उपचुनाव होना है।
मायावती इसके जरिए राज्य में सपा की मुस्लिम राजनीति को खत्म करना चाहती है। लिहाजा मायावती भाजपा के बजाय सपा और कांग्रेस पर ज्यादा आक्रामक हो रही हैं। मायावती ने उपचुनाव की तैयारी काफी पहले से ही कर दी है। वहीं सपा अभी इस मामले में काफी पीछे है।
क्या है माया का प्लान
अभी राज्य में बसपा विधायकों की संख्या के लिहाज से तीसरे स्थान पर है। लेकिन मायावती का पूरा फोकस 2022 के विधानसभा चुनावों पर है। मायावती सत्ता पर काबिज होना चाहती है। अगर न भी हुई तो मुख्य विपक्षी दल का तमगा लेकर अपना अस्तित्व बचाना चाहती है। यही नहीं वह मुस्लिमों की सबसे बड़ी पार्टी भी बनना जाती हैं।