क्या 23 मई के बाद भी चलेगा माया और नई बहू का ये रिश्ता

By Harish Tiwari  |  First Published Apr 28, 2019, 1:41 PM IST

 बहरहाल इस खबर की शुरूआत उत्तर प्रदेश में 2017 में हुए विधानसभा चुनाव से करते हैं, जहां राजनैतिक गठबंधन के साथ ही एक नए रिश्ते की शुरूआत हुई थी। ये रिश्ता समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव और मायावती के बीच बना। इस रिश्ते के बनने की कहानी भी कुछ अलग है। ये दोनों दल अपने सियासी वजूद के लिए लड़ रहे थे, क्योंकि बीजेपी ने केन्द्र के साथ ही जिस तरह से राज्य की सत्ता पर वापसी की, उसने इन दोनों दलों को साथ आने को मजबूर कर दिया।

लोकसभा चुनाव में राजनैतिक दलों के बीच चुनावी गठबंधन हो चुके हैं। तीन दिन पहले ही राजनीति से इतर एक नए रिश्ते ने यूपी की सियासत में कौतूहल पैदा कर दी। ये रिश्ता बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव के बीच बना। मायावती ने सार्वजनिक मंच से डिंपल को अपना बहू बताया और कन्नौज की जनता से उन्हें जिताने की अपील की।

सच्चाई ये ही आम जिंदगी की तरह सियासत में रिश्ते बनते और बिगड़ते हैं। लेकिन रिश्ते बाद में सियासी न रहकर व्यक्तिगत हो जाते हैं, तो कुछ रिश्तों की भनक तो किसी को लगती नहीं। लेकिन ज्यादातर सियासी रिश्ते सार्वजनिक मंचों पर ही बनते हैं और वहीं पर खत्म हो जाते हैं। बहरहाल इस खबर की शुरूआत उत्तर प्रदेश में 2017 में हुए विधानसभा चुनाव से करते हैं, जहां राजनैतिक गठबंधन के साथ ही एक नए रिश्ते की शुरूआत हुई थी। ये रिश्ता समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव और मायावती के बीच बना। इस रिश्ते के बनने की कहानी भी कुछ अलग है।

ये दोनों दल अपने सियासी वजूद के लिए लड़ रहे थे, क्योंकि बीजेपी ने केन्द्र के साथ ही जिस तरह से राज्य की सत्ता पर वापसी की, उसने इन दोनों दलों को साथ आने को मजबूर कर दिया। राज्य में बीजेपी की सरकार बनने के बाद राज्य की तीन लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में मायावती ने परोक्ष तौर पर एसपी प्रत्याशियों को गोरखपुर और फूलपूर में समर्थन दिया। इसके बाद कैराना के उपचुनाव में भी बीएसपी ने एसपी समर्थित राष्ट्रीय लोकदल के प्रत्याशी को समर्थन दिया।

इन तीन सीटों पर एसपी और आरएलडी चुनाव जीतने में सफल रही। माया ने अखिलेश को बबुआ तो अखिलेश ने मायावती को बुआ माना। हालांकि किसी ने भी सार्वजनिक मंचों पर इस रिश्ते का उल्लेख नहीं किया। लेकिन बुआ और बबुआ की जोड़ी के चर्चे होने लगे। इसी बीच मायावती ने बयान दिया कि कोई मेरा भतीजा(बबुआ) नहीं है और न ही मैं किसी की बुआ हूं। हालांकि इसके बाद ये माना जाने लगा कि दोनों नेताओं के रिश्तों में कड़वाहट आ गयी है।  

असल में मायावती के साथ जो भी राजनैतिक दल चुनावी गठबंधन बनाता है वह उससे रिश्ता बना ही लेती हैं। याद करें जब उत्तर प्रदेश में मायावती ने मुलायम सिंह सरकार से 1995 में समर्थन वापस लिया तो क्या हुआ। यूपी की सियासत में 2 जून 1995 में गेस्ट हाउस कांड हुआ, जिसे पिछले 24 साल से मायावती ने याद रखा। लेकिन पिछले दिनों जब मायावती ने मैनपुरी में मुलायम सिंह के लिए वोट मांगा तो ये सालों से ये गहरा दाग एक ही झटके में धुल गया।

मुलायम से समर्थन वापस लेने के बाद माया ने बीजेपी के साथ मिलकर राज्य में सरकार बनाई। इसके बाद मायावती ने सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले लालजी टंडन को अपना भाई बताया। उस वक्त मायावती ने लालजी टंडन को राखी भी बांधी। हालांकि गेस्ट हाउस कांड में मायावती को वहां से सुरक्षित निकालने वाले स्वर्गीय बह्मदत्त द्ववेदी को भी अपना भाई बताया था। जिनके खिलाफ मायावती ने कभी उनके जिंदा रहते अपना प्रत्याशी नहीं उतारा। लेकिन जिस गर्मजोशी के साथ इस रिश्ते की शुरूआत हुई, उसनी ही तेजी से ये रिश्ते खत्म हो गए। गौरतलब है कि पिछले साल मायावती ने हरियाणा के नेता अभय चौटाला को राखी बांधी थी और उनकी पार्टी के साथ लोकसभा और विधानसभा के लिए चुनावी गठबंधन किया था। लेकिन चौटाला परिवार में दरार पड़ने के बाद मायावती ने इसी साल इनेलो के साथ चुनावी गठबंधन खत्म कर दिया है।

मायावती जिस लालजी टंडन को अपना भाई बताती थी, उन्हें माया ने सार्वजनिक मंचों पर लालची टंडन कहने से भी नहीं चूकी। तीन दिन पहले मायावती ने कन्नौज में डिंपल यादव के लिए वोट मांगे। चुनावी मंच पर डिंपल ने माया के पैर छूए और माया ने उन्हें अपनी बहू बताया। हालांकि इस नए रिश्ते से दोनों को सियासी तौर पर क्या फायदा होगा, ये तो 23 मई के बाद ही पता चलेगा। लेकिन सच्चाई ये है कि मायावती जिस तेजी से सियासी रिश्ते बनाती है, उन्हें खत्म करने में उन्हें हिचकिचाहट भी नहीं होती है।
 

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