कभी स्ट्रॉबेरी गांव के नाम से मशहूर रहा। अब पुस्तक गांव के रूप में जाना जाता है। हम बात कर रहे हैं महाराष्ट्र के सतारा जिले के भिलार गांव की। यह भारत का पहला किताबों का गांव है और दुनिया का दूसरा।
सतारा (महाराष्ट्र)। कभी स्ट्रॉबेरी गांव के नाम से मशहूर रहा। अब पुस्तक गांव के रूप में जाना जाता है। हम बात कर रहे हैं महाराष्ट्र के सतारा जिले के भिलार गांव की। यह भारत का पहला किताबों का गांव है और दुनिया का दूसरा। यह गांव महाबलेश्वर और पचगनी के बीच स्थित है। विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। अब तक देश-विदेश के लाखो पर्यटक भारत के इस पहले बुक विलेज को देखने आ चुके हैं। इसका श्रेय तत्कालीन शिक्षा मंत्री विनोद तावड़े को जाता है। उनके द्वारा यह अवधारणा लागू की गई थी, जिसकी वजह से गांव को एक नयी पहचान मिली है।
दुनिया का पहला बुक विलेज ब्रिटेन का हे-ऑन-वे गांव
दुनिया के पहले पुस्तक गांव के रूप में ब्रिटेन के हे-ऑन-वे गांव को जाना जाता है। उसी तर्ज पर तत्कालीन शिक्षा मंत्री विनोद तावड़े ने पुस्तक गांव की अवधारणा लागू की। पूरा गांव एक परिवार की तरह काम करता है। सुबह सात बजे से पुस्तक गांव की शुरूआत होती है। हॉल खोल दिया जाता है, जो शाम तक ओपेन रहता है। गांव में बड़ी संख्या में बुजुर्ग, बच्चे और टीचर किताबें पढ़ने आते हैं। पुस्तक गांव का क्रेज ऐसा है कि देश-विदेश के पर्यटक भी यहां जरूर आते हैं। स्थानीय लोग महज दो से तीन मिनट में टूरिस्ट्स को गांव और बुक्स की जानकारी उपलब्ध करा देते हैं।
पढ़ी और देखी जा सकती हैं ये पुस्तकें
गांव की सड़क के किनारे बसे 35 घरों में पुस्तकालय हैं। ये विभिन्न विभागो के हैं। इन घरों में 35 हजार से ज्यादा किताबे हैं। बाल साहित्य और उपन्यास के अलावा जीवनी, बायोग्राफी, पर्यावरण, इतिहास, कहानियां, कला और चित्र पुस्तकें भी मौजूद हैं। हास्य पुस्तकें, दीवाली अंक, विभिन्न पत्रिकाएं और समाचार पत्र भी यहां देखने को मिल सकते हैं। गांव के लोग मराठी भाषा संरक्षित करने के काम में पिछले आठ साल से लगे हुए हैं। उनका कहना है कि मराठी भाषा में हजारों किताबें रखी गई हैं, ताकि देश-विदेश में मराठी भाषा को फैलाया जा सके।
4 मई 2017 को हुई थी शुरूआत
वैसे देखा जाए तो गांव में 4 मई 2017 को पुस्तक गांव अवधारणा की नींव पड़ी। बताया जाता है कि मौजूदा समय में गांव में 50 हजार से ज्यादा बुक्स हैं। गांव के 35 पुस्तकालयों में डेली 100 से 200 टूरिस्ट आते हैं। इस हिसाब से देखा जाए तो अब तब करीबन 14 से 15 लाख टूरिस्ट इस गांव में आ चुके हैं और हजारो किताबें पढ़ चुके हैं।
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