ताइवान और तिब्बत पर भारत के दांव से बढ़ी चीन की बेचैनी, इस कदम से ड्रैगन हो गया भौचक्का

By Rajkumar Upadhyaya  |  First Published Jun 29, 2024, 5:59 PM IST

ताइवान और तिब्बत को लेकर भारत के हालिया इनिशिएटिव से चीन की बेचैनी बढ़ गई है। एक तरफ भारत ताइवान के साथ आर्थिक और तकनीकी क्षेत्र में अपनी साझेदारी मजबूत कर रहा है।

नयी दिल्ली। ताइवान और तिब्बत काे लेकर भारत के हालिया इनिशिएटिव से चीन की बेचैनी बढ़ गई है। एक तरफ भारत ताइवान के साथ आर्थिक और तकनीकी क्षेत्र में अपनी साझेदारी मजबूत कर रहा है। दूसरी ओर पिछले दिनों अमेरिकी सांसदों का दल धर्मशाला आया और दलाई लामा से मुलाकात की। यह बातें चीन को चुभ रही हैं। चीन सीमा पर चल रहे तनाव के बीच भारत के इस दांव ने चीन को सरप्राइज कर दिया है।

दलाइ लामा से मिला यूएस प्रतिनिधिमंडल

पिछले दिनों पीएम नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर अमेरिकी सांसदों से मिलें। यूएस सांसदों का एक प्रतिनिधिमंडल धर्मशाला भी गया और दलाई लामा से मुलाकात की। खास यह है कि उस प्रतिनिधिमंडल में यूएस कांग्रेस की विदेश मामलों की समिति के प्रमुख माइकल मैककॉल भी थे। आपको बता दें कि धर्मशाला से अब भी तिब्बत की निर्वासित सरकार चलती है। अमेरिकी सांसदों का धर्मशाला दौरा चीन को सबसे ज्यादा चुभा। इसका असर भी दिखा। बीजिंग ने कहा कि अमेरिका 'चीन विरोधी अलगाववादी रवैये' को पूरी तरह मान्यता दे। तिब्बत को लेकर उसने जो वादे किए हैं, उसको लेकर दुनिया को गलत मैसेज न दे। 

ताइवान के साथ आर्थिक और तकनीकी क्षेत्र में साझेदारी

उधर, भारत ने ताइवान के साथ टेक्नोलॉजी सेक्टर में साझेदारी मजबूत की है। खासकर सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री को लेकर। ताइवानी कम्पनियां भारत में विस्तार कर रही हैं। उनमें पावरचिप सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कॉर्पोरेशन और फॉक्सकॉन शामिल हैं। दोनों कम्पनियों ने गुजरात प्रदेश में अच्छा इंवेस्टमेंट भी किया है। यह साझेदारी सिर्फ आर्थिक मोर्चे पर ही भारत को राहत देने वाली नहीं है, बल्कि टेक्नोलॉजी सेक्टर में भी चीन पर निर्भरता कम होगी।

मल्टी-अलाइनमेंट स्ट्रेटजी पर काम कर रहा भारत

जानकारों के अनुसार, भारत यूं ही चीन और ताइवान को महत्व नहीं दे रहा है, बल्कि चीन को उसी की भाषा में समझा रहा है, क्योंकि दोनों जगहों से जुड़े मुद्दे चीन के लिए सेंसेटिव हैं। भारत अपने हितों को साधने के लिए मल्टी-अलाइनमेंट स्ट्रेटजी पर काम कर रहा है। साफ तौर पर समझा जाए तो भारत एक तरफ ताइवान से रणनीतिक साझेदारी कर रहा है। दूसरी ओर तिब्बत को सांकेतिक समर्थन। दुनिया भर को यह साफ संकेत है कि भारत किसी के दबाव में राष्ट्रहित की नीतियां नहीं तय करता है।

अमेरिका के शामिल होने से त्रिकोणीय बन गया मामला

इस रूख से भारत आर्थिक और तकनीकी कैपेसिटी विकसित करने के साथ चीन के प्रभुत्व को काउंटर भी कर रहा है। ताइवान और तिब्बत के साथ भारत के कनेक्शन को चीन चुनौती के रूप देखता है। अब अमेरिका भी इसमें शामिल हो गया है, जिससे यह मामला त्रिकोणीय बन गया है। आपको बता दें कि साल 2020 के बाद से ही भारत और चीन के रिश्तों के बीच आई खटास बरकरार है। उस समय सीमा पर सैनिकों के बीच तनातनी हुई थी।

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