रामलीला शुरू कराने की अदालत से स्वीकृति बरेली के धर्म गुरू आला हजरत मुफ्ती-ए-आजम हिन्द ने दिलाई थी। परंपरा को बरकरार रखने के लिए मुस्लिम समाज भी सहयोग करता है। साहूकारा में भगवान राम और केवट के संवाद को मूल रूप में बनाए रखने के लिए एक शख्स ने लकड़ी की नाव रामलीला सभा को भेंट की थी।
यूपी के 'बरेली की रामलीला' शुरू हो चुकी है। विश्व धरोहर (World Heritage) घोषित इस रामलीला को देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग जुटते हैं। आजादी के पहले से ही ब्रह्मपुरी इलाके में रामचरित मानस के पाठों का मंचन हो रहा है। साल 2024 में इसकी 163वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है। खास यह है कि इस रामलीला में अयोध्या से आए कलाकार मंचन करते हैं। आपको बता दें कि साल 2015 में यूनेस्को 'बरेली की रामलीला' को विश्व धरोहर घोषित कर चुकी है।
1861 से हो रहा रामलीला का मंचन
बरेली में साल 1861 से रामलीला का मंचन हो रहा है। खासियत यह है कि इसका मंचन अलग—अलग मोहल्लो में होता है। जैसे—लंका दहन मलूकपुर चौराहे पर, राम—केवट संवाद साहूकारा और मेघनाद यज्ञ छोटी बमनपुरी में होता है। इसी तरह अगस्त्य मुनि से जुड़ी लीला का मंचन छोटी बमनपुरी स्थित अगस्त्य मुनि आश्रम में किया जाता है। हालांकि अप्रैल के पहले सप्ताह में ही शुरू हुए। रामलीला के पहले दिन भगवान श्रीराम के जन्म का मंचन किया गया। दूसरे दिन मॉं सीता के जन्म के दृश्य का मंचन हुआ। लोगों ने फूलों की होली खेली। रामबारात इतना खास है कि इसे देखने के लिए विदेश से भी लोग आते हैं।
क्यों है रामबारात इतना खास?
रामबारात में ठीक उसी तरह से होली खेली जाती है। जिस तरह तुलसीदास की विनय पत्रिका में फाल्गुन रामलीला का वर्णन किया गया है। दरअसल, उस जमाने में जब रामलीला का मंचन शुरू हुआ था। तब मनोरंजन के इतने साधन उपलब्ध नहीं थे। छोटे—छोटे बच्चे रामलीला के मंचन में शामिल होते थे। धीरे—धीरे इसका पूरा रूप बदल गया। अब यह एक भव्य इवेंट बन चुका है। जिसे दुनिया भर में जाना जाता है। रामबारात के दिन लोग एक दूसरे पर रंग डालते हैं। होली खेलने में पानी की कमी आड़े न आए। इसलिए नगर निगम के पानी के टैंकर और फायर ब्रिगेड की गाड़ियां भी साथ चलती हैं। खुद डीएम और एसएसपी रामबारात का स्वागत करते हैं।
धर्म गुरू ने दिलाई थी अदालत से स्वीकृति
कहा जाता है कि रामलीला शुरू कराने की अदालत से स्वीकृति बरेली के धर्म गुरू आला हजरत मुफ्ती-ए-आजम हिन्द ने दिलाई थी। परंपरा को बरकरार रखने के लिए मुस्लिम समाज भी सहयोग करता है। साहूकारा में भगवान राम और केवट के संवाद को मूल रूप में बनाए रखने के लिए एक शख्स ने लकड़ी की नाव रामलीला सभा को भेंट की थी। तब से साहूकारा में ही राम केवट संवाद का मंचन किया जाता है। कथावाचक पंडित राधेध्याम रामलीला के पात्रों के अभिनय की रसमय व्याख्या किया करते थे।