कौन थे भारत के पहले IAS-IPS? ब्रिटिश राज में पास की थी UPSC

By Rajkumar UpadhyayaFirst Published Aug 14, 2024, 10:47 PM IST
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भारत के पहले IAS और IPS अधिकारी कौन थे? जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के दौरान सिविल सेवाओं में अपनी छाप छोड़ी और देश का नाम रोशन किया।

नयी दिल्‍ली। भारत में हर साल लाखों युवा भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) और भारतीय पुलिस सेवा (IPS) में जाने का सपना देखते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि अंग्रेजों के शासन काल में भी ऐसे भारतीय थे, जिन्होंने सिविल सर्विस में अपनी छाप छोड़ी। गुलामी के दौर में भी अपने टैलेंट से अंग्रेजों को प्रभावित किया। हम बात कर रहे हैं उन दो भारतीयों की जो देश के पहले आईएएस और आईपीएस अफसर बनें। आइए जानते हैं उनके बारे में।

भारत के पहले IAS अधिकारी कौन?

भारत में ब्रिटिश राज के दौरान, अंग्रेजों ने भारतीय प्रशासनिक सेवा की नींव रखी। वर्ष 1854 में भारतीयों के लिए सिविल सेवा परीक्षा की शुरुआत हुई थी, जो बेहद कठिन मानी जाती थी। सिविल सर्विसेज में भारतीयों का प्रवेश लगभग असंभव माना जाता था। लेकिन 1863 में एक भारतीय ने यह धारणा तोड़ दी। उस व्यक्ति का नाम था सत्येन्द्रनाथ टैगोर। सत्येन्द्रनाथ टैगोर ने उस दौर में सिविल सेवा परीक्षा पास की और भारत के पहले IAS अधिकारी बने।

कौन थे सत्येन्द्रनाथ टैगोर?

सत्येन्द्रनाथ टैगोर का नाम आज भी भारतीय सिविल सेवाओं के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता है। वह महान कवि रवींद्रनाथ टैगोर के बड़े भाई थे। उनका जन्म 1 जून 1842 को कोलकाता के एक प्रतिष्ठित बंगाली परिवार में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता से हुई। फिर वह इंग्लैंड चले गए और वहीं सिविल सेवा एग्जाम की प्रिपरेशन की और महज 21 साल की उम्र में सिविल सेवा परीक्षा (Civil Services Examination) पास कर ली थी। तब यह एग्जाम इंग्लैंड में आयोजित किया जाता था और उसमें ज्यादातर अंग्रेज ही सफल होते थे। सत्येन्द्रनाथ टैगोर की पहली पोस्टिंग मुंबई में हुई थी, बाद में अहमदाबाद में भी नियुक्त हुए।

भारत के पहले IPS अधिकारी कौन? 

सीवी नरसिम्हन भारत के पहले भारतीय पुलिस सेवा (IPS) अधिकारी थे। उन्होंने 1937 में इंडियन सिविल सर्विस ज्वाइन की थी। उनका जन्म 21 मई 1915 को तमिलनाडु में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा तिरुचि के सेंट जोसेफ कॉलेज में हुई। हायर एजूकेशन ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से हासिल की। उन्हें भारतीय पुलिस सेवा में कई सुधारों का श्रेय भी दिया जाता है। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 1946 में ‘ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर’ से सम्मानित किया था। यह उस समय का एक बहुत बड़ा सम्मान माना जाता था।

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