भारत में इनकम टैक्स और TDS (टैक्स डिडक्टेड एट सोर्स) के बीच के महत्वपूर्ण अंतर को जानें। समझें कि प्रत्येक टैक्स कैसे कार्य करता है, आपकी आय पर इसका क्या प्रभाव होता है, और जैसे कि सेल्फ असेसमेंट और टैक्स स्लैब जैसे महत्वपूर्ण टर्म्स।
नई दिल्ली। भारतीय टैक्स सिस्टम कई पेचीदा और कठिन टर्म्स से भरी हुई है, जिन्हें समझना आम लोगों के लिए चुनौती भरा हो सकता है। इनमें से दो सबसे प्रमुख टर्म्स हैं–इनकम टैक्स और TDS (Tax Deducted at Source)। अक्सर लोग इन दोनों को लेकर भ्रमित हो जाते हैं और यह समझना कठिन हो जाता है कि इन दोनों में वास्तविक अंतर क्या है। यदि आप भी इनकम टैक्स भरते हैं या टैक्स प्रणाली से जुड़े हुए हैं, तो यह जानना जरूरी है कि इनकम टैक्स और TDS में क्या अंतर है।
इनकम टैक्स क्या है?
इनकम टैक्स एक प्रकार का डायरेक्ट टैक्स है, जिसे सरकार किसी व्यक्ति या संगठन की कमाई (आय) पर वसूल करती है। यह व्यक्ति की आय के विभिन्न स्रोतों पर लागू होता है, जैसे वेतन, कारोबार से आय, ब्याज, किराया, पूंजीगत लाभ आदि। इनकम टैक्स की दरें भारत सरकार द्वारा निर्धारित किए गए टैक्स स्लैब के अनुसार होती हैं, और यह प्रत्येक व्यक्ति की वार्षिक कमाई पर निर्भर करता है।
इनकम टैक्स में यूज होने वाले टर्म्स का मतलब
सेल्फ असेसमेंट: टैक्सपेयर (यानी व्यक्ति या संस्था) को अपनी वार्षिक आय की गणना करनी होती है और उसी आधार पर सरकार को टैक्स भरना होता है।
डायरेक्ट टैक्स: यह सरकार द्वारा सीधे करदाता से वसूला जाता है।
टैक्स स्लैब: विभिन्न आय वर्गों के लिए अलग-अलग टैक्स दरें होती हैं, जिन्हें टैक्स स्लैब कहा जाता है।
समय सीमा: फाइनेंशियल ईयर के अंत में टैक्स रिटर्न दाखिल किया जाता है, जिसमें आपकी कमाई और भुगतान किए गए टैक्स की जानकारी दी जाती है।
इनकम सोर्स: यह सैलरी, बिजनेस, इंवेस्टमेंट, प्रॉपर्टी रेंट आदि जैसे इनकम के विभिन्न स्रोतों पर लगाया जाता है।
TDS क्या है?
TDS (टैक्स डिडक्टेड एट सोर्स) एक ऐसा तरीका है जिसके माध्यम से सरकार व्यक्ति की आय पर टैक्स पहले ही काट लेती है, इससे पहले कि आय व्यक्ति के पास पहुंचे। यह टैक्स उस समय काट लिया जाता है जब आपको सैलरी, ब्याज, किराया, कमीशन या अन्य किसी प्रकार की आमदनी प्राप्त होती है। यह टैक्स सीधे सरकार को जमा कर दिया जाता है, और व्यक्ति को अपनी इनकम के हिसाब से बाकी टैक्स का आंकलन करना होता है।
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