लोकसभा चुनाव 2024 की शुरूआत हो चुकी है। 18वीं लोकसभा के लिए देश का मतदाता अपनी सरकार चुनेगा। केंद्र में सत्तासीन मोदी सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती इस बार बेरोजगारी का मुद्दा है।
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2024 की शुरूआत हो चुकी है। 18वीं लोकसभा के लिए देश का मतदाता अपनी सरकार चुनेगा। केंद्र में सत्तासीन मोदी सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती इस बार बेरोजगारी का मुद्दा है। हालांकि जम्मू काश्मीर से धारा 370, अयोध्या राम मंदिर निर्माण से लेकर तमाम तरह के भावनात्मक कदमों का जोर शोर से प्रचार प्रसार करके मतदाताओं के बीच अपनी पैठ बरकरार रखने की जद्दोजहद पीएम मोदी और उनकी पार्टी एवं गठबंधन के लोग करने में जुटे हैं लेकिन विपक्ष बेरोजगारी को प्रमुख मुद्दा बना रहा है। युवा मतदाताओं मे इसका कितना पाजिटिव और निगेटिव प्रभाव है।
स्नातक बेरोजगारों की संख्या में हुई दोगुनी वृद्धि
रोजगार आज सबसे जटिल मुद्दा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2013-14 में 18-29 साल के लोगों के लिए बेरोजगारी दर 12.9% थी, जो स्नातक डिग्री वाले लोगों के लिए बढ़कर 28% हो गई। अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2021-22 में, युवा बेरोजगारी समान स्तर पर थी, 12.5%, लेकिन 25 वर्ष से कम उम्र के स्नातकों के लिए यह बढ़कर 42% हो गई थी। इसी अवधि में प्रति व्यक्ति आय दोगुनी हो गई है लेकिन स्नातकों के लिए बेरोजगारी दर एक चुनौती बनी हुई है। कई युवाओं के लिए मोबाइल फोन स्क्रीन पर देखी जाने वाली दुनिया और उसके बाहर की वास्तविकता के बीच एक अंतर है।
डिजिटल दुनिया में सूचनाओं की भरमार से पैदा हो रही भ्रम की स्थिति
बेंगलुरु के अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर असीम सिद्दीकी युवा, लोकतंत्र और विकास पर एक पाठ्यक्रम पढ़ाते हैं। उनका कहना है कि जब मैंने 2008-09 में अपना काम शुरू किया तो स्मार्टफ़ोन बहुत प्रचलित नहीं थे। लेकिन आज के युवा डिजिटल मूल निवासी हैं। सूचना की अधिकता के कारण चीजों का पता नहीं लगा पाता है। जिससे बहुत अधिक भ्रम, अनिश्चितता और असुरक्षा की स्थिति है। लोगों में बहुत गुस्सा है। इसे व्यक्त भी किया जा रहा है, लेकिन इसे प्रसारित नहीं किया जा रहा है।
4 जून को तय हो जाएगी मोदी सरकार की लोकप्रियता
कुविरा मुंबई स्थित एक गैर-लाभकारी संस्था है। इसकी संस्थापक और निदेशक शेविका युवा लड़कियों के साथ राजनीति में उनके ज्ञान और जुड़ाव को बढ़ाने के लिए काम करती है। उनका कहना हैं कि राजनीति का इतना ध्रुवीकरण होने के कारण युवाओं को इस पर खुलकर चर्चा करने के लिए सुरक्षित स्थान की कमी महसूस होती है। 2014 में जब मोदी सत्ता में आए तो सर्वेक्षणकर्ताओं ने कहा कि इसका एक कारण पहली बार मतदाताओं का समर्थन था। 2021 CSDS सर्वेक्षण में पाया गया कि युवा मतदाताओं के बीच भाजपा का वोट शेयर 34.4% था, जो पार्टी के औसत वोट शेयर से मात्र 3 प्रतिशत अधिक है। हमें पहली बार मतदान करने वाले मतदाताओं के मतदान पैटर्न में बहुत अधिक अंतर नहीं दिखता, सिवाय इसके कि वे अन्य समूहों की तुलना में भाजपा और मोदी की ओर अधिक झुके हुए हैं। यह सच रहेगा या नहीं, इसका खुलासा 4 जून को हो जाएगा।
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