स्टॉक में हेराफेरी करने वालों पर अब SEBI लगाएगा लगाम, जानें F&O को लेकर नया सर्कुलर

By Surya Prakash Tripathi  |  First Published Aug 31, 2024, 2:10 PM IST

SEBI ने फ्यूचर्स और ऑप्शंस के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिसमें एंट्री और एग्जिट के नियम कड़े किए गए हैं और मार्केट वाइड पोजिशन लिमिट को 500 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 1500 करोड़ रुपये कर दिया गया है।

SEBI New Circular: भारतीय बाजार नियामक SEBI ने फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस (F&O) सेगमेंट को लेकर एक नया सर्कुलर जारी किया है, जिसमें एंट्री और एग्जिट रूल्स को कड़ा किया गया है। SEBI का यह कदम स्टॉक में हेराफेरी को रोकने और बाजार में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से उठाया गया है। सेबी की नई गाइडलाइन के इन 4 बिंदुओं पर बेस्ड है। 

1. एंट्री और एग्जिट के कड़े मानदंड
SEBI ने नए मानकों पर खरा नहीं उतरने वाले शेयरों के लिए एग्जिट की टाइम लिमिट तय की है। जो कंपनियां निर्धारित मानकों को पूरा नहीं कर पाएंगी, उन्हें डेरिवेटिव सेगमेंट से बाहर कर दिया जाएगा। अगर लगातार 3 महीने तक अर्धवार्षिक एवरेज वॉल्यूम बेस्ड बेंचमार्क पूरा नहीं होता है, तो ऐसी कंपनियों के लिए एग्जिट की शर्तें लागू होंगी।

2. मार्केट वाइड पोजिशन लिमिट में बढ़ोत्तरी
SEBI ने मार्केट वाइड पोजिशन लिमिट को 500 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 1500 करोड़ रुपये कर दिया है। इसका उद्देश्य अधिक से अधिक निवेशकों को आकर्षित करना और बाजार की गहराई को बढ़ाना है।

3. कैश सेगमेंट वॉल्यूम और ऑर्डर सिग्मा साइज में बदलाव
औसत आधार पर डेली कैश सेगमेंट वॉल्यूम को 10 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 35 करोड़ रुपये कर दिया गया है। इसके अलावा मीडियन क्वार्टरली ऑर्डर सिग्मा साइज को भी 25 लाख रुपये से बढ़ाकर 75 लाख रुपये कर दिया गया है। इन बदलावों का मकसद बाजार की तरलता को बढ़ाना और व्यापारिक गतिविधियों को सुगम बनाना है।

4. मौजूदा स्टॉक और कॉन्ट्रैक्ट्स के लिए गाइड लाइन
मौजूदा स्टॉक में नए कॉन्ट्रैक्ट नहीं खोले जाएंगे, लेकिन मौजूदा कॉन्ट्रैक्ट को बंद करने का मौका मिलेगा। इससे निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो को समायोजित करने का पर्याप्त समय मिलेगा।

SEBI की नई गाइडलाइन तुरंत प्रभाव से होगी लागू
SEBI के संशोधित गाइड लाइन तुरंत प्रभाव से लागू हो गए हैं। इन नियमों का उद्देश्य हाई क्वालिटी और पर्याप्त बाजार गहराई (Adequate market depth) वाली कंपनियों को फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस सेगमेंट में बनाए रखना है। अगर कोई कंपनी लगातार 3 महीने तक निर्धारित मानकों को पूरा नहीं करती है, तो उसे डेरिवेटिव सेगमेंट से हटा दिया जाएगा। सेगमेंट से बाहर होने के बाद कंपनी को एक साल तक फिर से प्रवेश की अनुमति नहीं होगी।

 


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