जानिए क्या है विरासत टैक्स? जो 3 दशक तक भारत में था लागू, इस वजह से किया गया खत्म

By Rajkumar UpadhyayaFirst Published Apr 25, 2024, 2:13 PM IST
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What is Inheritance tax: एक तरफ लोग पहले से ही आयकर दे रहे थे। दूसरी तरफ उनकी मौत के बाद उन्हीं संपत्तियों पर फिर टैक्स को दोहरे कर के रूप में देखा जा रहा था। खास वजह यही थी कि लोगों के बीच इस टैक्स को लेकर नाराजगी पैदा हुई।

What is Inheritance tax: बीते दिनों इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने "अमेरिका जैसे विरासत कर" को देश में लागू करने की वकालत की है। देश में आम चुनाव चल रहे हैं। ऐसे में इस मुद्दे का गरमाना वाजिब था। आप भी जानना चाहते होंगे कि आखिरकार यह विरासत टैक्स क्या है? कम लोगों को पता होगा कि पूर्व के समय में इनहेरिटेंस टैक्स (विरासत टैक्स) देश में लागू था और करीबन 3 दशक के बाद उसे खत्म कर दिया गया। 

क्या है विरासत टैक्स? भारत में कब लगा

दरअसल, देश की आजादी के बाद तत्कालीन सरकार ने देखा कि देश में संपत्ति को लेकर बड़ी असमानताए हैं। उसे दूर करने के मकसद से संपत्ति शुल्क अधिनियम के तहत 1953 में विरासत टैक्स कानून पेश किया गया। यह कानून उन धन कुबेरों पर टैक्स लगाने का साधन था, जो विरासत में अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए बड़ी मात्रा में संपत्ति छोड़ जाते थे। मतलब कि ऐसे लोगों की मौत के बाद उनकी कुल संपत्ति पर विरासत टैक्स लगाया जाता था। उत्तराधिकारियों को संपत्ति हस्तांतरित करने से पहले टैक्स लिया जाता था। ऐसा नहीं कि विरासत टैक्स सिर्फ भारत में मौजूद संपत्ति पर लगाया जाता था। यदि किसी अति-अमीर आदमी की विदेशों में भी संपत्ति होती थी तो उसकी मौत के बाद उन संपत्तियों पर भी यह टैक्स लगाया जाता था।

विरासत टैक्स भारत में कब खत्‍म हुआ?

विरासत टैक्स कानून धीरे-धीरे देश में अलोकप्रिय होता चला गया। उसकी वजह जटिल कर व्यवस्था थी। कम से कम एक लाख रूपये की संपत्ति पर शुल्क लगना शुरू होता था। जिसकी दर 7.5 फीसदी थी। 20 लाख रूपये से अधिक की संपत्तियों पर टैक्स की दरें 85 प्रतिशत तक थीं। संपत्तियों पर टैक्स बाजार दर के हिसाब से लगाया जाता था। विरासत टैक्स लागू होने के 30 वर्षों के दौरान इसकी आलोचना इतनी बढ़ गई कि साल 1985 में तत्कालीन वित्त मंत्री वीपी सिंह ने इस कर व्यवस्था को समाप्त कर दिया। 

एक साल में हुआ था 20 करोड़ रुपये का कलेक्शन

विरासत टैक्स कानून में संपत्तियों का मूल्यांकन करने के नियम अलग-अलग थे। नतीजतन ज्यादातर मामलों में विवाद शुरू हो जाते थे। मामला अदालत तक पहुंचता था। रिपोर्ट्स के अनुसार, इस टैक्स से वसूले गए कर का आंकलन किया तो सामने आया कि कुल प्रत्यक्ष कर की तुलना में विरासत कर से वसूला गया टैक्स बहुत ही कम था। एक रिपोर्ट के अनुसार, 1984-85 में कुल 20 करोड़ रुपये टैक्स का कलेक्शन हो सका था, जो एस्टेट ड्यूटी एक्ट के तहत किया गया था। लोगों ने इस टैक्स से बचाव के तरीके खोजने शुरू कर दिए थे। बेनामी संपत्ति की प्रथा ने जोर पकड़ा। संपत्तियों को अवैध रूप से छिपाने की कोशिशें की जाने लगीं। एक तरफ लोग पहले से ही आयकर दे रहे थे। दूसरी तरफ उनकी मौत के बाद उन्हीं संपत्तियों पर फिर टैक्स को दोहरे कर के रूप में देखा जाने लगा था। खास वजह यही थी कि लोगों के बीच इस टैक्स को लेकर नाराजगी पैदा हुई। 

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