नौकरशाही में राजनैतिक दखल से परेशान होकर 1986 बैच के एक वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी अभय नारायण त्रिपाठी न्याय पाने के लिए कोर्ट चले गए हैं. हालांकि अब उन्होंने इस प्रकरण में कुछ भी कहने से इंकार दिया है, क्योंकि ये मामला कोर्ट में चल रहा है.
नौकरशाही में राजनैतिक हस्तक्षेप की बानगी इससे ज्यादा देखने को मिल सकती है कि जब जनता को न्याय देने वाले अफसर को ही स्वयं के न्याय के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटना पड़े. असल में ये एक कड़वी सच्चाई है, जिसमें एक ईमानदार वरिष्ठ केन्द्रीय सेवाओं के अफसर को ट्रांसफर किया जाता और उसे बताया भी नहीं जाता है और न ही विभागीय मंत्री के इस पर साइन होते हैं और न ही सीएम से अनुमोदन लिया जाता है. अफसर को दो महीने तक बगैर काम के रखा जाता है. लेकिन तो भी जिम्मेदार अफसर ये नहीं बताते हैं कि उनका ट्रांसफर कहां किया गया और किसके आदेश रपर किया गया. लिहाजा अब न्याय के लिए अफसर को कोर्ट का रूख करना पड़ा.
नौकरशाही में राजनैतिक दखल से परेशान होकर 1986 बैच के एक वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी अभय नारायण त्रिपाठी न्याय पाने के लिए कोर्ट चले गए हैं. हालांकि अब उन्होंने इस प्रकरण में कुछ भी कहने से इंकार दिया है, क्योंकि ये मामला कोर्ट में चल रहा है. लेकिन देश में कई उदाहरण ऐसे हैं, जहां नौकरशाहों को अपने हक के लिए कोर्ट के दरवाजे खटखटाना पड़ रहा है. इतना ही नहीं अभय नरायण त्रिपाठी जरुरत पड़ने पर आमरण अनशन करने की धमकी सरकार को दी. असल में त्रिपाठी को बगैर किसी मामले के उनके विभाग से दूसरे विभाग में ट्रांसफर कर दिया. जबकि इसके लिए बोर्ड की अनुमति लेनी थी. जो अखिल भारतीय सेवा के नियमों के खिलाफ था.
त्रिपाठी ने बताया कि उन्होंने न्याय के लिए राज्य सरकार से लेकर सिविल सेवा बोर्ड तक अपनी बात रख चुके हैं, लेकिन उनकी परेशानी का समाधान नहीं हो पाया. क्योंकि यहां भी राजनैतिक दलों के प्रभाव में अफसर हैं. लिहाजा उन्होंने इसके खिलाफ कोर्ट का रूख किया. वो कहते हैं कि उनके पास सबूत हैं, सरकार के नियम हैं. जिनका पालन करना अफसर के साथ ही सरकार के लिए भी अनिवार्य है. सिविल सेवा की परिक्षा पास करने के बाद वह पिछले 32 साल से सरकारी सेवा में हैं. उनका अभी तक का सर्विस रिकार्ड बेदाग रहा है. उनको सुप्रीम कोर्ट से भी प्रशंसा और पुरस्कार के साथ प्रशस्ति पत्र मिल चुका है. लेकिन अब इन सब के बाद भी वह नौकरशाही की तरफ से किए जा रहे व्यवहार से दुखी हैं.
पत्र के माध्यम से अपनी शिकायत महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री से लेकर सिविल सेवा बोर्ड तक पहुंचा चुके हैं. लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ क्योंकि उन्हें ना तो न्या मिला और ना ही उनके खिलाफ साजिश करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई. अभय नारायण त्रिपाठी फरवरी 2018 से पहले महिला एंव बाल विकास विभाग में सचिव थे लेकिन उनका वहां से अचानक ट्रांसफर कर दिया गया. उसके बाद उनको नई तैनाती नहीं दी गई उनसे कहा गया कि अभी पोस्ट खाली नहीं है. इस कारण उन्हें मजबूरन घर पर बैठना पड़ा.
त्रिपाठी का नाम राज्य के ईमानदार नौकरशाहों में शुमार है. उन्होंने राज्य के पूर्व ट्रांसपोर्ट मंत्री के भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलाई थी, जिसके कारण मंत्री को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी. दिलचस्प ये है कि त्रिपाठी का ट्रांसफर बगैर विभागीय मंत्री और मुख्यमंत्री की अनुमति किया गया. इस रवैये के कारण वह मानसिक रूप से परेशान रहने लगे और इलाज के लिए लगभग पांच महिने अस्पाल में भर्ती होना पड़ा.