गरीब सवर्णों को आरक्षण राजनीतिक शिगूफा नहीं बल्कि एक दूरदर्शी सोच का नतीजा है

By Anshuman Anand  |  First Published Jan 9, 2019, 7:53 PM IST

मोदी सरकार ने आर्थिक रुप से कमजोर लोगों को आरक्षण देने का फैसला किया है। विपक्ष इसे राजनीतिक दांव की संज्ञा दे रहा है और इसके समय पर सवाल उठा रहा है। ऐसा कहकर इस बेहद संवेदनशील और सामाजिक बदलाव लाने वाले फैसले की अहमियत कम की जा रही है। हम आपको बताएंगे कि कैसे गरीबों को दिया जाने वाला यह आरक्षण जातीय विभेदों में बंटे इस देश में धीमी किंतु बड़ी क्रांति का कारण बनेगा। यह महज एक राजनीतिक दांव नहीं बल्कि प्रधानमंत्री के दूरदर्शी नजरिए का प्रतीक है।

सात जनवरी 2019 की शाम को जैसे ही सरकार ने इस बात का खुलासा किया कि वह आर्थिक रुप से कमजोर गरीबों के लिए आरक्षण की व्यवस्था करने जा रही है, राजनीतिक हलकों में तूफान मच गया। 

विपक्ष खुले तौर पर तो इसके विरोध का साहस नहीं कर पाया। लेकिन मोदी सरकार के इस फैसले को फेल करने के लिए इसकी टाइमिंग पर प्रश्नचिन्ह लगाने लगा। विपक्षी नेताओं का कहना था कि सरकार ने मात्र राजनीतिक लाभ उठाने के लिए चुनाव से मात्र कुछ महीनों पहले सवर्ण वोटरों को लुभाने के लिए उन्हें आरक्षण का लॉलीपॉप थमाया है। 

लेकिन विपक्ष के यह आरोप सरासर गलत थे। क्योंकि माय नेशन संवाददाता सिद्धार्थ राय ने 12 सितंबर 2018 यानी अभी से चार महीने पहले ही यह खबर दे दी थी कि मोदी सरकार आर्थिक रुप से कमजोर गरीबों को आरक्षण देने पर विचार कर रही है।
 
इससे जुड़े सबूत यह हैं- महीनों पहले से गरीबों को आरक्षण देने पर सरकार कर रही थी विचार

इन सबूतों से इस आरोपों की हवा निकल जाती है कि एनडीए सरकार ने मात्र राजनीतिक लाभ के लिए सवर्ण आरक्षण का शिगूफा छोड़ा है। क्योंकि उपरोक्त खबर इस बात का सबूत है कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में केन्द्र सरकार बहुत दिनों से आर्थिक रुप से कमजोर लोगों को आरक्षण देने पर विचार कर रही है। 
अब बात करते हैं इस फैसले की अहमियत की। 

पिछले कुछ दिनों से देखा जा रहा था कि आजादी के समय से दिया जा रहा आरक्षण बड़े सामाजिक विद्वेष का कारण बनता जा रहा था। 

मंडल कमीशन लागू होने से लेकर अब तक आरक्षण की मांग या विरोध में उतरे जातीय समूह अक्सर हिंसा पर उतर आते थे। 

हरियाणा में फरवरी 2016 में जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान हुई हिंसा की यादें सबके जेहन में ताजा हैं। जिसमें 34 हजार करोड़ की संपत्ति का नुकसान हुआ और 18 लोगों की जानें गईं। हालात इतने खराब हो गए थे कि सेना उतारनी पड़ी थी।  

राजस्थान में गुर्जर आरक्षण आंदोलन के दौरान तो लगभग पूरा उत्तर भारत ही ठप हो गया था। गुर्जर आरक्षण आंदोलन में 2007 में 26 लोगों की मौत हुई जबकि 2008 में 38 लोगों की जान गई। यानी कुल 64 लोगों की मृत्यु हुई और उद्योग जगत तथा सरकार को 70 अरब का नुकसान हुआ। जिसमें से 200 करोड़ का नुकसान तो अकेले भारतीय रेल का हुआ। 

जुलाई 2015 में गुजरात में पाटीदार समाज के आरक्षण आंदोलन के दौरान भी जमकर बवाल हुआ। 850 करोड़ की संपत्ति का नुकसान हुआ, सैकड़ों गाड़ियां फूंक दी गईं। 
फरवरी 2016 में आंध्र प्रदेश के कापू समाज ने आरक्षण की मांग करते हुए हिंसक प्रदर्शन किया। जिसमें रत्नांचल एक्सप्रेस में आग लगा दी गई। कई लोगों की निर्मम पिटाई भी की गई। कुल 650 करोड़ की संपत्ति आरक्षण आंदोलन की आग में स्वाहा हो गई।  

इसी तर्ज पर मराठा आरक्षण आंदोलन के दौरान महाराष्ट्र में औरंगाबाद,नासिक,पुणे में जमकर हिंसा हुई। 60 से ज्यादा कारखानों में तोड़ फोड़ की गई। जिसमें सैकड़ों करोड़ का नुकसान हुई। इस आंदोलन के दौरान कुछ पुलिसवालों को भी गंभीर चोटें आई। 

इसी तरह वीपी सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में मंडल कमीशन की सिफारिशों के विरोध में चले आंदोलन में कई युवाओं ने भावावेश में आकर खुद को आग लगा ली थी। 

दरअसल देश के वंचित वर्गों के लिए की गई आरक्षण की व्यवस्था सामाजिक विद्वेष का कारण बन गई थी। जो कि रह रहकर देश के अलग अलग हिस्सों में उभरती रहती थी। 

देश में आरक्षण प्राप्त वर्ग और आरक्षण से वंचित वर्गों के बीच स्थायी रुप से वैमनस्य की स्थिति बनी रहती थी। यह सिलसिला कोई नया नहीं था, बल्कि यह पिछले 70 सालों से चला आ रहा था। 

प्रधानमंत्री मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में केन्द्र सरकार ने एक झटके में दशकों से चली आ रही इस विषम सामाजिक समस्या के समाधान का रास्ता तय कर दिया है। 

अब आरक्षण हर उस व्यक्ति के लिए है जिसे इसकी जरुरत है। चाहे वह अनुसूचित जाति के हों या जनजाति के या फिर पिछड़े या फिर आर्थिक रुप से अक्षम, अब देश में हर जरुरतमंद तबके के पास अपना जीवन स्तर सुधारने का मौका उपलब्ध है। 

खास बात यह है कि मोदी सरकार का यह आरक्षण प्रस्ताव देश के गरीबों के बीच धार्मिक आधार पर भी भेदभाव से मुक्त है। यानी मुसलमान और ईसाई तबके के गरीबों के लिए भी आरक्षण प्राप्त करने का रास्ता खुला है। 

इसलिए विपक्ष बौखलाया हुआ है क्योंकि उसके पास इस प्रस्ताव के विरोध करने का कोई कारण ही नहीं बचता। यही वजह है कि विपक्ष आरक्षण नहीं सवाल उठा पा रहा है लेकिन उसकी टाइमिंग के बहाने सरकार के फैसले पर निशाना साध रहा है और उसे राजनीति से प्रेरित बता रहा है। 

लेकिन विपक्ष के इस आरोप का जवाब भी माय नेशन के एडिटर इन चीफ अभिजीत मजूमदार ने एक टीवी चैनल के लाइव डिबेट शो के दौरान दे दिया था कि ‘अगर राजनीति किसी बड़े सामाजिक बदलाव या क्रांति का माध्यम बनती है, तो इसमें आखिर बुराई क्या है? यदि राजनीतिक वजहों से उठाए गए कदमों से देश में करोड़ों लोगों का भविष्य सुधरता है तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए’। 
 

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