गोपालन मजबूरी नहीं स्वस्थ जीवन के लिए जरुरी है

By Sanjay Upadhyay  |  First Published Feb 13, 2019, 6:36 PM IST

भारत हमेशा से शाकाहारी देश रहा है और पारम्परिक रूप से सम्पूर्ण भारतीय उप महाद्वीप में दूध भोजन का एक महत्वपूर्ण  अंग रहा है। (वर्तमान पोषण विज्ञान के अनुसार मानव  पोषण के लिए कुछ अत्यधिक आवश्यक प्रकार के प्रोटीन सिर्फ और सिर्फ पशुओं द्वारा ही मिल सकते हैं । चूंकि तुलनात्मक दृष्टि से सबसे अहिंसक पशु प्रोटीन की उपलब्धता  दूध द्वारा ही हो सकती है अतः हमारे पूर्वजों ने दूध को हमारे भोजन का आवश्यक अंग बनाया होगा ।

अभी हाल ही के वर्षों में मधुमेह , हड्डियों और जोड़ों से सम्बंधित बीमारियों और खास तौर से महिलाओं में  इस तरह की परेशानियां तेजी से महामारी का रूप ले रही हैं यही परेशानी शहरी क्षेत्रों में अधिक भयंकर रूप लेती जा रही  है।

 क्योंकि बढ़ती हुई जनसंख्या को शहरों में आपूर्ति करने वाली डेरियां अधिक दूध देने वाली यूरोपीय वंश की गायों  का दूध सप्लाई करती हैं और दूसरी ओर शहरी रहन-सहन में धूप कम ही मिलती है जिसके कारण शरीर में विटामिन D की कमी बन जाती है विटामिन D के बिना मानव शरीर खनिज तत्वों  जैसे कैल्शियम को पचा नहीं सकता।

उक्त विषय पर अब बिंदुवार विचार करते हैं:-
1) A1 और A2दूध

 देसी गाय के दूध में 207 गुणसूत्रों बाले डी. एन. ए. में 67वें स्थाम पर अमीनो एसिड प्रोलीन है लगभग 8000 वर्ष पहले इन गायों का एक बड़ा जत्था किन्हीं कारणों से यूरोपीय क्षेत्र में गया, इसके अपने आपको उस क्षेत्र के अनुकूल ढालने की प्रक्रिया में उनके डी. एन. ए. में प्रोलीन की जगह हिस्टीड़ाईन आ गया इसका यह परिणाम हुआ क़ि 67वें स्थान पर मौजूद जो प्रोलाइन- 66 वे स्थान पर मौजूद आईसोन अमीनो एसिड  मजबूती से बंधा रहता है। वहीं 67वें स्थान पर मौजूद हिस्टेड़ाइन पाचक  एंजाइम द्वारा आसानी से टूट कर मानव शरीर में एक पेप्टाइड (बीसीएम 7) छोड़ते हैं । बीसीएम 7 अफीम जैसी चीज है जो। यह एक तेज ऑक्सीकरण करने वाला एजेंट है । इसका संबंध बच्चों की डाइबिटीज एक मानसिक रोग ऑटिसिज्म रोग प्रतिरोधक क्षमता और हृदय रोगों से भी सीधा सीधा है।

    जैसे जैसे भारत में हिस्टाइडेन वाले दूध का प्रयोग बढा है वैसे वैसे डाइबिटीज और हृदय रोगियों  के बढ़ने की समानुपाती गणना मिलती है। पूरी दुनिया का डेरी उद्योग बहुत तेजी से अपने दूध को अच्छा दूध यानी बीसीएम 7 मुक्त बनाने में लगा हुआ है। 

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस अच्छे दूध का नाम A2 दूध है। सौभाग्य से भारत की सभी देसी नस्लें अच्छा दूध यानी A2 दूध देती है।


2) ओमेगा 3:-  

यह मानव भोजन में आवश्यक वसा अम्ल है।  शाकाहारी लोगों के इसका एकमात्र स्रोत देशी गाय का दूध है जो सुख पूर्वक हरी घास चरती हों। DHA यानी डेकोसा हेक्सानोइएक अम्ल मस्तिष्क की तीव्रता और आंखो की रोशनी को बढ़ाने का प्रमुख पदार्थ है जो ओमेगा 3 के पाचन में मानव शरीर में बनता है। ( ओमेगा 3 को DHA  बदलने की क्षमता महिलाओं में पुरुषों की मुकाबले 20 गुना है)। 

तमाम वैज्ञानिक अध्य्यनों से सिद्ध हो चुका है कि ओमेगा 3 न केवल डाइबिटीज , हृदय संबंधी रोगों और मस्तिष्क संबंधी रोगों से बचाता है बल्कि इन रोगों का इलाज भी करता है। इसीलिए देसी गाय के दूध को अमृत माना गया है।

3) बीटा कैरोटीन

 भारतीय उपमहाद्वीप की गाय खासतौर से बीटा कैरोटीन से समृद्ध होती हैं। यह हमें निम्न प्रकार से लाभ पहुंचाता है –
•    मानव कोशिकाओं की सुरक्षा करना।
•    यह विटामिन A   प्राकृतिक माध्यम है।
•    रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
•    जननेन्द्रियों के ठीक ढंग से कार्य करने में सहयोग करता है।

 4) विटामिन D

अधिकतर डेरी द्वारा उत्पादित दूध में विटामिन  D की कमी होती है इसीलिए अमेरिका में एक निश्चित मात्रा में कम विटामिन D होने पर दूध में इसको मिलाकर ही बेचा जा सकता है। जो गाय चरने जंगल नहीं जाती है उनके दूध में यह एक बड़ी कमी होती है क्युकी आधुनिक विज्ञान ने विटामिन D के अनेकों फायदे ढूंढ निकाले है।

यह भारतीय नस्ल की गायों में पाया जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण अंग है।वसा में घुलनशील विटामिन A, D और K बड़ी मात्रा में देसी गाय के दूध में पाए जाते हैं। वेदों ने गायों को सूर्य की रोशनी को पसंद करने वाला बताया है। इसीलिए देसी गाय के दूध में संपूर्ण पोषक तत्व अधिक मात्रा में पाए जाते है जिनकी उपलब्धता सूर्य की किरणों द्वारा होती है।

इसीलिए सत्य तो ये है कि गाय को हमें नही पालना है। वह तो माँ है जो हमें सुरक्षित रखती है। गोपालन मजबूरी नही बेहद जरूरी है।

लेखक परिचय:
संजय उपाध्याय 
लेखक शाहजहां उत्तर प्रदेश में कृभको में इंजीनियर के पद पर कार्यरत हैं। गोवंश के प्रति अपने प्रेम से प्रेरित होकर उन्होंने कामधेनु अवतरण अभियान चलाया है।  जो कि ग्राम संस्कृति पुनर्जीवन और गोवंश से संबंधित सभी आयामों पर कार्य करता है। 
वह कामधेनु अवतरण अभियान के सचिव के तौर पर गोसेवा का पुनीत कार्य कर रहे हैं। उनके प्रयासों से लाखों गायों की जान बची है और हजारों किसान लाभान्वित हुए हैं। लेखक ने गोवंश के संरक्षण और सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है।  
 

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