तो चलिए हम सब 'रुढ़िवादी' हिंदू बन जाते हैं

By Maria Wirth  |  First Published Oct 24, 2018, 7:25 PM IST

 इस इक्कीसवी सदी में हमारे लिये यह उचित समय है जब हम एक समुदाय को दूसरे समुदाय के विरोध में खड़ा करने वाले हानिकारक, अप्रमाणित रुढ़िवाद का त्याग करें? सब से अच्छा विकल्प है कि हम हिंदू मूलतत्वों का अनुसरण करें। तो चलें, हम सब मनुष्यों में, कुदरत में और पशुओं में भी ईश्वरत्व देखनेवाले रुढ़िवादी हिंदू बनें। इससे संपूर्ण विश्व का लाभ होगा।

पूरी दुनिया में धार्मिक रुढ़िवादियों की संख्या बढ़ती जा रही है और यह हमारे समाज के हित में बिलकुल नहीं है। अधिकांश लोग कुछ ऐसा ही मानते हैं। मगर इस बात की छान–बीन करनेवाले लोग बहुत थोड़े होंगे कि,धार्मिक रुढ़िवादी होते क्या हैं ।  इसका सीधा मतलब ऐसे लोगों से निकाला जाता है, जो  अपने धर्म के मूल तत्वों से चिपके रहना पसंद करते हैं । वह चाहते हैं कि उन का जीवन उन के धार्मिक ग्रंथों में दी गयी हिदायत के मुताबिक हों जिससे कि उनके भगवान उन पर प्रसन्न हो । चूँकि, अब दुनिया भर में धार्मिक रुढ़िवादियों के कारण समस्याएँ खड़ी होती दिख रही हैं। लेकिन क्या इस से यह अनुमान निकल सकता है कि, धर्म के मूल तत्व हमारे समाज के लिये हितकारी नहीं हैं? इस सवाल का जवाब तलाश करने के लिए दुनिया के तीन सबसे बडे धर्मों की तरफ एक नज़र डालते हैः

ईसाई धर्म में रुढ़िवादी ऐसा मानते हैं कि, भगवान ने अपने आप को बाइबल के माध्यम से प्रकट किया है और उन्होंने अपने इकलौते बेटे को पूरी मानवजाति को बचाने के लिये धरती पर भेजा है। वह उन के धर्म की पहली आज्ञा को सही मानते हैं- ‘मेरे अलावा कोई अन्य भगवान तुम्हारे सामने नहीं होगा’ इसलिये, पूरी मानवजाति को बाइबल के भगवान और उन के इकलौते बेटे जीसस क्राइस्ट को सही मानना होगा। जो ऐसा नहीं करते वह नरक में जायेंगे। ईसाई धर्म का मूलभूत सिद्धांत हैः- “बाहर की दुनिया में जाओ” और इस कारण से ईसाई धर्म के रुढ़िवादी यह अपना धार्मिक कर्तव्य समझते हैं कि, जितना हो सके उतने ‘बुतपरस्तों’ का किसी भी उपाय से धर्म परिवर्तन किया जाय।

इस्लाम में रुढ़िवादी ऐसा मानते हैं कि, इस्लाम ही एकमात्र सच्चा धर्म है और अल्लाह ही एकमात्र सच्चे भगवान हैं। वह चाहते हैं कि सारी दुनिया उन के सामने झुक जाए, उन की शरण में आए। जो इस्लाम स्वीकार नहीं करते वह सब नर्क में जायेंगे। यह एक केंद्रीय नियम या सिद्धांत है और कुरान में उसे बार बार दोहराया गया है। रुढ़िवादी यह अपना धार्मिक कर्तव्य समझते हैं कि पूरी मानवजाति को इस्लाम स्वीकार करवाना है और वह कुरान की आज्ञा “काफ़िरों के दिल में ड़र पैदा करो” के शाब्दिक अर्थ पर अमल करते हैं।  

जबकि हिंदू धर्म के रुढ़िवादी ऐसा मानते हैं कि, ब्रह्म (अन्य शब्दों या नामों का उपयोग करने की अनुमति है और वैसा उपयोग होता भी है) यह एकमात्र सच्चे भगवान है। तथापि ब्रह्म कोई व्यक्तिगत भगवान नहीं हैं जो केवल उन्हीं को बचाते हैं जो उन की शरण में आते हैं और जो नहीं आते उन्हें शाप देते हैं। 

ब्रह्म तो एक अतिशय सूक्ष्म और सचेत तत्व है जो सब (वस्तु और व्यक्ति) के अंदर स्थित है। फिर वह किसी भी धर्म का पालन करते हो या नास्तिक हो, इस से कोई फर्क नहीं पडता। वेदों में उद्घोषित किया है, “अयमात्मा ब्रह्म” या “अहम् ब्रह्मास्मि”.
अब जब सभी धर्म यही दावा करते हैं कि, एक ही सब से बड़ी शक्ति है, जिसे अंग्रेजी में ट्रू गॉड अरेबिक में अल्लाह और संस्कृत में ब्रह्म कहते हैं।
 
यह सच है कि, केवल एक ही सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, सर्वसाक्षी परमेश्वर है, जो इस सृष्टि के अस्तित्त्व का कारण है। इस से अलग कुछ हो ही नहीं सकता। तथापि, अक्सर हिंदुओ के समझ में यह नहीं आता कि, ईसाई और मुस्लिम लोग उन के एकमात्र ट्रू गॉड या अल्लाह में कैसे विश्वास रखते है जो केवल उन्हीं के धर्म का पालन करनेवाले भाईयो और बहनों को बचाता है औऱ बाकी सभी काफ़िर या बुतपरस्तों को नरक में धकेल देता है। इस धारणा को समझना सामान्य तर्क बुद्धि की क्षमता रखनेवाले इन्सानों के लिये मुश्किल है। 

किंतु, अगर बचपन से यही संस्कार मिले हो कि, केवल हमारा धर्म ही सच्चा है और अन्य लोग बुरे हैं क्यों कि वह इसे स्वीकार नहीं करते, तो यह सही लगना स्वाभाविक है। मेरा खुद का यही अनुभव है- मैं यही मानती थी कि, केवल हम ईसाई लोग ही स्वर्ग में जायेंगे क्योंकि हमें गॉड ने चुना है। 

तो अब यहाँ दो सौ करोड से भी ज्यादा आबादी वाले धर्म आमने-सामने एक दूसरे के विरोध में खड़े हैं। एक कहता है, “केवल हमारा गॉड/अल्लाह सच्चा है। अगर आप उस में विश्वास नहीं रखते, तो आप नरक में जायेंगे।” दूसरा उस का उत्तर देता है, “नहीं, केवल हमारा गॉड/अल्लाह सच्चा है। और अगर आप उस में विश्वास नहीं रखते, तो आप नरक में जायेंगे।” 

 यह बात अगर इतनी ज्यादा गंभीर न होती तो हम इसे हँस कर टाल भी देते, मगर रुढ़िवादी इससे चिपके रहते हैं और दुर्भाग्यवश दोनो धर्मों के उपदेशक भी उसी का समर्थन करते हैं। स्वाभाविक है कि, इस दुनिया में घातक संघर्ष पैदा करने का यह एक बड़ा कारण है।

हिंदुत्व (या सनातन धर्म, जिस नाम से यह जाना जाता था) इस तरह की प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं लेता। वह एक बहुत पुरानी परंपरा है। विश्व में ईसाई धर्म या इस्लाम के आने के पहले से वह हुआ करता था। हिंदुत्व में ब्रह्म हमारे उपर कहीं से नजर रखनेवाला पुरुष नहीं है। वह तो सब के अंदर स्थित, सचेत, सजीव और प्यारा है। वह हमेशा सब को अपने सच्चे आत्मभाव का अनुभव करने का और ब्रह्म में विलीन होने का और एक मौका देगा, जिस के लिये कई जन्मों की आवश्यकता हो सकती है। 

हिंदू शास्त्र उद्घोषित करते हैं, “वसुधैव कुटुंबकम्” “सर्वं खल्विदं ब्रह्मम्।” “तत्वमसि।” “ब्रह्म वह नहीं है जो आप का मन सोचता है, बल्कि वह है जो आप के मन को सोचने के काबिल बनाता है।.” “सब में भगवान का रुप देखो।”  “निसर्ग का सम्मान करो।”
और प्रार्थना के प्रारंभ में कहते हैं: “ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहे। तेजस्विनावधीतमस्तु। मा विद्विषावहे। हम (गुरू और शिष्य) दोनों का साथ में रक्षण हो, साथ में पोषण हो, साथ में बलसंवर्धन हो, विद्या का तेज बढ़ता रहे और हम दोनों में कोई द्वेष जैसी बाधा न आये ।” “चारो ओर से हमारे पास अच्छे विचारों का आगमन हो” “सर्वे भवन्तु सुखिनः।” आदि

अधिकतर हिंदू भी उन के धर्म के इस मूलतत्व नहीं जानते और ऐसा मानते हैं कि, उस में केवल कर्मकांड, अपनी मनोकामना पूरी करने के लिये भगवान की अपने इष्ट के रूप में पूजा या अर्चना और त्योहार मनाना ही धर्म है। 

वह यह नहीं समझते कि, केवल हिंदू धर्म ही सर्वसमावेशक है। वह किसी एक समुदाय को दूसरे समुदाय के सामने नहीं रखता। वह विज्ञान का विरोध भी नहीं करता और केवल अपनी बुद्धि का प्रयोग करने की अनुमति देता है और  उपर से उसको प्रोत्साहित भी करता है।
शायद इसी कारण पश्चिमी देशों में जब धर्मों की सूची बनाई जाती है, तब हिंदू धर्म उस में समाविष्ट नहीं किया जाता। पश्चिमी लोगों के लिये कोई धर्म, धर्म नहीं हो सकता, अगर वह किसी अप्रमाणिक तत्वों पर आधारित नहीं हैं जिस से वह अन्य धर्मों से अलग सिद्ध हो सके। और यह बात पूरी मानवता के सामंजस्यपूर्ण रीति से साथ रहने के लिये हानिकारक है।

 क्या इस इक्कीसवी सदी में हमारे लिये यह उचित समय नहीं है कि, जो एक समुदाय को दूसरे समुदाय के विरोध में खड़ा करे, ऐसे हानिकारक, अप्रमाणित रुढ़िवाद का त्याग करें?

सब से अच्छा विकल्प है कि हम हिंदू मूलतत्वों का अनुसरण करें। तो चलें, हम सब मनुष्यों में, कुदरत में और पशुओं में भी ईश्वरत्व देखनेवाले रुढ़िवादी हिंदू बनें। इससे संपूर्ण विश्व का लाभ होगा।

मारिया विर्थ
(मारिया विर्थ जर्मन नागरिक हैं, जो कि भारतीय संस्कृति से अभिभूत होकर पिछले 38 सालों से भारत में रह रही हैं। उन्होंने सनातन धर्म के सूक्ष्म तत्वों का गहराई से अध्ययन करने के बाद, अपना पूरा जीवन सनातन मूल्यों की पुनर्स्थापना के कार्य हेतु समर्पित कर दिया है।)
 

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