बाहुबली के बिना बिहार में राजनीति करना किसी भी विचारधारा वाले नेता और पार्टी के लिए शायद संभव नहीं रहा है. यही वजह है कि सूरजभान सिंह को सजायाफ्ता होने के बाद भी कई पार्टियों ने शरण दी. पिछली बार उनकी पत्नी को टिकट दिया गया था. वहीं इस बार सूरजभान अपने छोटे भाई चंदन के लिए नवादा से रामविलास पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी का टिकट हासिल करने में सफल हो गए हैं.
नई दिल्ली: वेब सीरिज मिर्जापुर का एक बड़ा फेमस डायलॉग है- ‘अटैक में गन, डिफेंस में गन. हम मिर्जापुर को बनाएंगे अमरीका.’ नब्बे के दशक में उतरार्ध में गंगा के किनारे बसे बेगुसराय जिले के मोकामा की कहानी इसी अंदाज में लिखी जा रही थी. अलग-अलग समय पर अलग पात्रों ने इसकी पटकथा लिखने की कोशिश की लेकिन हम आज जो कहानी लेकर आए हैं, उसमें इसका श्रेय कांग्रेस के विधायक और मंत्री रह चुके श्याम सुंदर सिंह धीरज को जाता है.
धीरज के लिए बूथ कब्जा करने वाले बाहुबली दिलीप सिंह ने धीरज को ही चुनाव के मैदान में चुनौती दी, हराया और लालू सरकार में मंत्री भी बन गए. अपने पाले-पोसे बाहुबली के हाथों मिली शिकस्त से धीरज तिलमिला गए थे. धीरज को तलाश थी ऐसे व्यक्ति की जो बाहुबली दिलीप को टक्कर दे सके और उनके लिए रास्ता बना सके. धीरज की नजर गई दिलीप गैंग के ही एक और युवा पर जिसके सर रंगदार बनने का ऐसा भूत सवार था कि उसने उस व्यक्ति से भी रंगदारी मांग ली जिसकी दुकान पर काम करके उसके पिता परिवार का पेट भरते थे.
मोकामा में एक छोटा सा गांव है शंकर बीघा. उसी गांव में जन्मे सूरजभान सिंह रंगदार से बाहुबली, बाहुबली से विधायक और फिर सांसद बने. 80 के दशक में मोकामा में छिटपुट अपराध करते थे. नब्बे के दशक में अपहरण, रंगदारी व हत्या जैसे कई संगीन अपराधों से सूरजभान का अपराध की दुनिया में ग्राफ बढ़ने लगा. अपराध जगत में पांव पसारना सबसे पहले सूरजभान के परिवार को ही भारी पड़ा.
सूरजभान के पिता मोकामा के एक व्यापारी सरदार गुलजीत सिंह की दुकान पर काम किया करते थे. इसी नौकरी से परिवार चलता था. बड़े भाई की सीआरपीएफ में नौकरी लगी तो परिवार को सहारा मिला. लंबी-चौड़ी कदकाठी वाले सूरजभान से पिता की उम्मीद थी कि यह भी बड़े भाई की तरह सीआरपीएफ या फिर फौज में जाएंगे. पर सूरजभान को तो रंगदार बनने का नशा था. कुछ आपराधिक किस्म के लोगों की सोहबत हुई और मोकामा में छिटपुट रंगदारी और वसूली शुरू कर दी.
दिलीप सिंह सफेदपोश हो गए थे. सरकार के मंत्री थे इसलिए अपना काम आगे बढ़ाने के लिए उन्हें कुछ निडर युवाओं की जरूरत थी. सूरजभान ने गुलजीत सिंह से रंगदारी की मांग कर दी. जिस सूर्या को गुलजीत बचपन से देखते आए थे उसके इस व्यवहार से दंग थे. उन्होंने सूर्या के पिता को बताया. पिता ने बेटे को समझाया कि ‘डायन भी एक घर बख्श देती है’ पर सूर्या को लगा कि अगर इसी तरफ सिफारिश पर रंगदारी माफ करते रहे तो फिर बन लिए बड़का रंगदार.
सूर्या ने गुलजीत सिंह को खबर भिजवाई, ‘रंगदारी त दैये परतो’. ये सारी कहानियां किवंदतियों जैसी हैं. आप मोकामा जाकर सूरजभान के डॉन बनने की बात बस छेड़ दें, कोई भी ये सारी कहानियां सुना देगा. लोग बताते हैं कि बेटे के इस आचरण से क्षुब्ध पिता को इतनी शर्मिंदगी महसूस हुई कि उन्होंने गंगा में छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली. कुछ लोग कहते हैं कि सीआरपीएफ में कार्यरत उनके एकमात्र सहोदर भाई ने भी हमेशा के लिए भाई से मुंह मोड़ लिया.
लेकिन इस सभी घटनाओं से बेअसर दिलीप सिंह का वरदहस्त पाकर सूरजभान ने मोकामा से बाहर भी हाथ-पैर मारने की कोशिशें शुरू की. मोकामा में कुख्यात नाटा सरदार से लंबी अदावत चली. दोनों तरफ से कई लाशें गिरीं. उत्तर बिहार का एक और बड़ा डॉन अशोक राय उर्फ अशोक सम्राट भी उसी बेगूसराय जिले से आता था. अशोक सम्राट अपने इलाके में किसी नए बाहुबली को पनपने देने को हर्गिज तैयार न था. अशोक सम्राट ने मोकामा में सूरजभान पर हमला किया और सूरजभान के पांव में गोली भी लगी. सूरजभान की जान तो बच गई लेकिन चचेरा भाई अजय और शूटर मनोज मारे गए. कहते हैं जब तक अशोक सम्राट जिंदा था सूरजभान को मोकामा से बाहर निकलने ही नहीं दिया.
उस समय हाजीपुर से सटे वैशाली के महनार इलाके में एक और दबंग उभर रहा था- राम किशोर सिंह उर्फ रामा सिंह. रामा सिंह पांच बार विधायक रहे हैं और 2014 के मोदी लहर में राम विलास पासवान की लोजपा से वैशाली से सांसद चुने गए. उन्होंने राजद के कद्दावर नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह को हराया. रामा सिंह के साथ अशोक सम्राट की अच्छी दोस्ती थी. लेकिन सिर्फ हाजीपुर इलाके से रामा सिंह को संतोष न था. पूरे उत्तर बिहार के बादशाह बनने के सपने आकार ले रहे थे. सम्राट अशोक हाजीपुर में पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारा गया. सम्राट के कई साथियों ने आरोप लगाया था कि पुलिस का जाल रामा सिंह ने ही बिछवाया था.
अशोक स्रमाट के मारे जाने के बाद सूरजभान को अपने इलाके के विस्तार का मौका मिला. दिलीप सिंह को राजनीति भी चलानी थी और मोकामा पर अपनी पकड़ भी बनाए रखनी थी. दबंगई अकेले दिलीप सिंह की तो थी नहीं, बहुत सारे शेयरहोल्डर थे. यहीं वह चूक गए.
दिलीप सिंह का एक और शूटर था-नागा सिंह. नागा ने सूरजभान के चचेरे भाई मोती सिंह की हत्या कर दी. सूरजभान को बदला चाहिए था लेकिन दिलीप सिंह ने लड़ाई को बंद कराने की कोशिश की. सूरजभान को लगा कि यह हत्या दिलीप सिंह के शह पर हुई है. और यहीं से दोनों के बीच अदावत बढ़ी. पूरे टाल क्षेत्र में अब एक और नया स्वतंत्र बाहुबली ताल ठोंक रहा था-सूरजभान सिंह.
पूर्व विधायक श्याम सुंदर सिंह धीरज को एक बाहुबली की जरूरत थी और बाहुबली सूरजभान को एक सफेदपोश सरपरस्त की. धीरज ने सूरजभान के सिर पर हाथ रखा पर कहते हैं न गंगा बनारस से कलकत्ता की ओर बहती है, कलकत्ता से बनारस की ओर नहीं. लेकिन सूरजभान ने भी धीरज को गच्चा दे दिया. उन्हें अपना कंधा और अपनी बंदूक के बल पर विधानसभा पहुंचाने के बजाय खुद ही चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया. धीरज समझ गए कि वह गीली चुटकी से नमक पकड़ रहे थे. बाहुबली सूरजभान सिंह मोकामा से 2000 का विधानसभा चुनाव जीतकर माननीय विधायक सूरजभान सिंह हो गए. नीतीश कुमार की आठ दिनों की सरकार में सूरजभान के नेतृत्व में दबंग निर्दलीय विधायकों का एक मोर्चा बना जिसने नीतीश को समर्थन दिया पर सरकार नहीं बच सकी.
बाहुबलियों के बिहार की राजनीति में रसूख के लिहाज से 80 के दशक को अगर संक्रमण काल कहें तो 90 का दशक पल्लवन काल कहा जाएगा. बाहुबलियों, जिनका कांग्रेस और वामपंथी दलों द्वारा अपनी सुविधानुसार इस्तेमाल किया जाता था, ने बुलेट के साथ-साथ बैलट में भी हाथ आजमाने के छिटपुट प्रयोग किए थे सफल भी रहे थे. कई जगह तो उन्होंने प्रमुख राजनीतिक दलों को 440 वोल्ट का झटका दिया था.
काली पांडेय इसका उदाहरण हैं. 84 में देशभर में कांग्रेस की लहर चली थी लेकिन काली ने ‘लहरों को चीरकर अपनी चुनावी नैय्या पार की थी’. गोपालगंज से काली पांडेय निर्दलीय जीतकर संसद पहुंच गए. काली पांडेय की दहशत और उनका किरदार ऐसा है कि राजनीति और अपराध के गठजोड़ की पृष्ठभूमि पर बनी बॉलीवुड की फिल्म प्रतिघात के खलनायक का चरित्र उन पर ही आधारित बताया जाता है.
दबंगों को इस्तेमाल करने में पार्टियां भ्रमित हो रही थीं कि इन्हें कहां तक छूट दी जाए. लेकिन दबंग अपने दम पर चुनाव जीत लेते थे इसलिए हर पार्टी अपनी ज्यादा से ज्यादा सीट सुरक्षित करने के चक्कर में इन्हें सिर आंखों पर बिठाने लगी. सूरजभान का तो राजनीतिक करियर ही नीतीश के संकटमोचक के रूप में शुरू हुआ लेकिन जल्द ही उन्होंने राम विलास पासवान का चुनाव चिन्ह बंगला भा गया. 2004 में वह लोजपा के टिकट पर सांसद भी बने. अब वह नीतीश के साथ नहीं थे लेकिन नीतीश के हाथ में बिहार की सत्ता थी. सूरजभान के कट्टर दुश्मन अनंत सिंह थे नीतीश के चहेते. सूरजभान के खिलाफ चल रहे मामलों का स्पीडी ट्रायल शुरू हुआ.
सूरजभान पर कई हत्याओं के आरोप थे. जनवरी 1992 में बेगूसराय के मधुरापुर गांव के रामी सिंह की हत्या हुई थी. सूरजभान का नाम आया और निचली कोर्ट से आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. इसी मामले में सजायाफ्ता होने के कारण सूरजभान पर चुनाव लड़ने से प्रतिबंध लगा है. रामी सिंह हत्याकांड के मुख्य गवाहों और यहां तक कि सरकारी वकील राम नरेश शर्मा की भी हत्या हो गई थी. सूरजभान अन्य मामलों की तरह इसमें भी बरी हो जाते अगर केस का एक गवाह और टूट गया होता.
गवाहों में एक व्यक्ति ऐसा भी था जिसका नाता बेगुसराय के डॉन रह चुके कामदेव सिंह के परिवार से था. उस परिवार से जुड़े लोग बताते हैं कि सूरजभान के लोग आदतन उस गवाह को भी धमकाने गए. कामदेव सिंह का परिवार सफेदपोश कारोबारी हो चुका है. जब पता चला कि सूरजभान ने उनके किसी नातेदार को जान से मारने की धमकी दी है तो सूरजभान को उसी के अंदाज में संदेश भिजवाया गया- हमने हथियार चलाना बंद किया है, हथियार रखना नहीं. हमारी बंदूकों से अब भी लोहा ही निकलेगा.
मामला कुछ फिल्मी सा था. वैसे मोकामा बेगुसराय इलाके के लोगों के बीच रहें तो आप इसे सहज पाएंगे. उनकी रोजमर्रा की बातें और बोलने का अंदाज अलहदा रहता है. डॉन को पूर्व डॉन की धमक का अंदाजा था. कामदेव सिंह के बहुत से चेले-चपाटे अपराध की दुनिया में धीरे-धीरे अपनी पकड़ बना रहे थे. सूरजभान को पीछे हटना पड़ा.
रामी सिंह के अलावा सूरजभान पर दो सफेदपोश बाहुबलियों की हत्या के आरोप भी थे. उनमें से एक थे बिहार सरकार के मंत्री बृज बिहारी प्रसाद गुप्ता. बृज बिहारी के जिक्र के बिना मध्य बिहार के बाहुबलियों की कहानी पूरी हो नहीं सकती. इसके कई कारण हैं जिनमें सबसे बड़ा कारण माना जाता है कि उन्होंने दबंगई की उस दुनिया में पिछड़ों का प्रतिनिधित्व किया जिस पर अमूमन भूमिहारों और राजपूतों का ही दबदबा रहा था. उनकी पत्नी रमा देवी शिवहर से भाजपा की सांसद हैं और इस बार भी भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं.
बृज बिहारी, राबड़ी देवी सरकार में विज्ञान और प्रोद्यौगिकी मंत्री थे. छोटन शुक्ला की हत्या में उनका नाम आया था. इलाज के लिए बृज बिहारी पटना के इंदिरा गाँधी आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती थे. 3 जून 1998 को रात आठ बजे वह अस्पताल के पार्क में ठहल रहे थे तभी एके-47 से लैस 6 से 7 हमलावरों ने उन्हें गोलियों से भून डाला. गोली चलाने वालों में उस वक्त गोरखपुर का डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला भी शामिल था. इस मामले में सूरजभान सिंह को भी अभियुक्त बनाया गया था. मंत्री की हत्या से भारी बवाल मचा था. बाद में इसकी जांच सीबीआई को सौंपी गई थी. निचली अदालत ने अगस्त, 2009 में सूरजभान सिंह सहित सारे आरोपियों को आजीवन कारावास और अर्थदंड की सजा दी थी. हालांकि बाद में हाईकोर्ट ने सूरजभान को बरी कर दिया.
सूरजभान पर तीसरा बड़ा आरोप मोकामा के पूर्व जिला पार्षद रहे कुख्यात अपराधी उमेश यादव की हत्या में शामिल होने का लगा. उमेश को 2003 में मोकामा गौशाला रोड पर दिनदहाड़े गोलियों से छलनी कर दिया गया था. सूरजभान तब तक माननीय विधायक हो चुके थे. सूरजभान सिंह को आरोपी बनाया था. हालांकि बाद में सूरजभान सिंह को बरी कर दिया गया था.
बाहुबली के बिना बिहार में राजनीति करना किसी भी विचारधारा वाले नेता और पार्टी के लिए शायद संभव नहीं रहा है. लेकिन डॉन से कारोबारी बना मिर्जापुर का कालीन भैया कहता है, डर की यही दिक्कत है, कभी भी खत्म हो सकता है. एक वक्त था जब लोग सूरजभान सिंह के नाम से ही डरते थे. लेकिन आज हालात ऐसे नहीं हैं. सूरजभान की भी अब रंगदारी की जगह कारोबार में ज्यादा रूचि है.
सजायाफ्ता होने की वजह से फिलहाल सूरजभान चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई है. 2014 के चुनाव में इनकी पत्नी वीणा देवी बिहार की मुंगेर सीट से लोजपा के टिकट पर सांसद चुनी गई थीं. समझौते में मुंगेर सीट जदयू को चली गई. गृहणी वीणा सिंह कोई पेशेवर नेता तो हैं नहीं, सो सार्वजनिक मंचों से भी कई बार ऐसा कुछ बोल जाती हैं जिससे उनकी पार्टी के नेता असहज हो जाते थे.
इसी वजह से राम विलास पासवान के बेटे चिराग ने साफ कर दिया कि वीणा सिंह को टिकट नहीं मिलेगा और सूरजभान लड़ नहीं सकते. वीणा सिंह ने भी जिद पकड़ ली कि वह चुनाव लडेंगी ही और मुंगेर से ही लड़ेंगी. तो क्या सूरजभान का राजनीति का सफर समाप्त! सूरजभान ने पत्नी को बड़ी मुश्किल से मनाया और विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी डाली अपने सबसे छोटे भाई चंदन सिंह के कंधों पर.
राहत की बात यह है कि चंदन बड़े ठेकेदार हैं. अपराध से उनका नाता नहीं रहा है. नवादा सीट से उनके सामने हैं बाहुबली राजबल्लभ यादव की पत्नी विभा देवी. राजबल्लभ यादव एक नाबालिग से बलात्कार के आरोप में सजायाफ्ता हैं इसलिए उनकी डमी हैं विभा देवी. बाहुबली बनाम बाहुबली की लड़ाई की बिसात नवादा में बिछी हुई है. चूल्हे से रोटी निकालने के लिए चिमटे का मुंह तो जलाना ही पड़ता है. कम से कम बिहार की राजनीति तो यही दर्शाती है.
बाहुबली सीरिज की अगली कहानी में बात होगी एक ऐसे बाहुबली की जो सांसद रहा था. जिसके एक इशारे पर लोगों का अपहरण हो जाता था उसे सजा काटने के दौरान किसी से प्यार हुआ. ऐसा प्यार जो कि परवान चढ़ता नहीं दिखा तो अपने हाथ की नसें काट ली थीं. कहानी ये भी फिल्मी होगी पर क्या बाहुबली रोमांटिक नहीं हो सकते! इंतजार कीजिए कहानी का.
राजन प्रकाश
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं)