नई दिल्ली।  भले ही भारत चीन सीमा पर तनाव चल रहा है लेकिन देश में राज्यसभा चुनाव के लिए कांग्रेस पार्टी भी जबरदस्त तनाव में है। क्योंकि वह भाजपा के चक्रव्यूह में फंस गई है और जितनी सीटों को जीतने की उम्मीद पार्टी ने की थी, उसका जीत पाना भाजपा की रणनीति के कारण मुश्किल है। फिलहाल राज्य सभा चुनाव के लिए कांग्रेस अपने विधायकों को बचाने की जुगत में है। कांग्रेस अपने विधायकों को राज्यसभा चुनाव में होने वाली सेंधमारी के लिए बचा रही है।  शुक्रवार को राज्यसभा के चुनाव होने हैं और कांग्रेस के कई दिग्गजों की क़िस्मत दांव पर है। दिग्विजय सिंह, के सी वेणुगोपाल और शक्ति सिंह गोकुल की किस्मत दांव पर लगी हुई है।  लेकिन कांग्रेस को राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश में डर है कि भाजपा उसका खेल बिगाड़ सकती है। राज्य सभा की 19 सीटों के लिए  19 जून को मतदान होगा।

राजस्थान में कांग्रेस ने अपने विधायकों को पॉलिटिकल क्वारंटिन कर दिया है। पिछले एक हफ्ते से कांग्रेस ने अपने विधायकों को रिसार्ट में ठहरा रखा है। क्योंकि भाजपा ने संख्या बल न होने के बावजूद राज्य में दूसरे प्रत्याशी को उतार दिया है। जिसको लेकर पार्टी में खौफ है।पार्टी को लगता है कि कुछ विधायक भाजपा खेमें में जा सकते हैं। राज्य में राज्य सभा की तीन सीटों पर चुनाव होना है और पार्टी ने दस जनपथ के करीबी माना जाने वाले केसी वेणुगोपाल और नीरज डांगें को उतारा है। जबकि भाजपा ने राजेंद्र गहलोत और ओंकार सिंह लखावत को उम्मीदवार बनाया है। राज्य में एक राज्यसभा सदस्य के लिए  51 वोटों की जरूरत है जबकि कांग्रेस के पास 107 विधायक हैं और 12 निर्दलीय विधायक भी कांग्रेस को समर्थन दे रहे हैं।

वहीं विधानसभा में भाजपा  के 72 विधायक है और हनुमान बेनीवाल की पार्टी के तीन विधायकों का भी समर्थन उसे प्राप्त है। लेकिन उसके उसके बावजूद राज्य में कांग्रेस भाजपा से डरी हुई है। कांग्रेस को डर सता रहा है कि आखिरी वक्त में भाजपा कोई बड़ा खेल कर सकती है। वहीं गुजरात में भाजपा कांग्रेस को पहले ही बड़े झटके दे चुकी है। राज्य में चार सीटों के लिए चुनाव हो रहे हैं। कांग्रेस ने शक्ति सिंह गोहिल और अमर सिंह सोलंकी पर दांव खेला है। वहीं भाजपा ने मैदान में तीन उम्मीदवार उतार कर मुकाबले को और दिलचस्प बना दिया है। भाजपा ने अभय भारद्वाज, रमिला बेन बारा और नरहरि अमीन चुनावी मैदान में उतारा है और राज्य में एक उम्मीदवार को राज्यसभा की दहलीज पर पहुंचने के लिए 35 विधायकों की जरूरत है।

राज्य में भाजपा के 103 विधायक हैं और तीन उमीदवारों को जीतने के लिए 105 वोट चाहिए। यानी उसे दो वोटों के लिए कांग्रेस खेमे में सेंधमारी करनी होगी।  वहीं राज्य में कांग्रेस के 65 विधायक हैं और उसे बीटीपी के दो, एनसीपी के एक और एक निर्दलीय विधायक का समर्थन है।  अगर सब विधायकों को जोड़ दिया जाए तो कांग्रेस के पास 69 विधायक ही हैं और उसे एक और विधायक के समर्थन की जरूरत है। कांग्रेस की एक सीट निकलनी तय है जबकि दूसरी सीट पर मुकाबला बड़ा हो गया है। कांग्रेस के शक्ति सिंह गोहिल कोअहमद पटेल का करीबी माा जाता है और उनकी जीत तय है। लेकिन मामला अमर सिंह सोलंकी में फंसा हुआ है।

 वहीं मध्य प्रदेश में राज्यसभा चुनाव के लिए दिग्विजय सिंह और फूल सिंह बरैया मैदान  में हैं। यहां संख्याबल के मुताबिक कांग्रेस एक सीट पर जीत दर्ज करेगी।  लेकिन दूसरी सीट पर राह मुश्किल है। राज्य में भाजपा के 107 विधायक हैं जबकि दोनों की जीत के लिए 104 विधायक चाहिए वहीं कांग्रेस के पास 92 विधायक हैं। अगर निर्दलीय और सपा और बसपा विधायकों की भी जोड़ लिया जाए तो कांग्रेस के पास कुल 99 विधायक होते हैं। इस लिहाज से कांग्रेस को पांच और विधायकों की जरूरत होगी। जिसकी उम्मीद नहीं दिख रही है। माना जा रहा है कि चुनाव में दिग्विजय सिंह की जीत तय है लेकिन एक धड़ा दलित नेता फूल सिंह बरैया के लिए प्रथम वरीयता के लिए पार्टी में लॉबिंग कर रहा है।


वहीं अब झारखंड में भी कांग्रेस की हार तय है और उसके बावजूद उसने मैदान में प्रत्याशी को उतारा है। राज्य में राज्य सभा की दो सीटों पर चुनाव होने हैं और तीन उम्मीवाद मैदान में हैं। इसमें एक झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और भाजपा का है। राज्य में जीत के लिए 27 विधायकों की जरूरत है। इस आधार पर जेएमएम आसानी से जीत दर्ज करेगी क्योंकि उसके 29 विधायक हैं।  जबकि कांग्रेस  के राज्य में17 विधायक हैं और उसे सीपीआईएमएल के एक, एनसीपी के एक, राजदके एक और दो निर्दलियों में से एक का समर्थन है और इस तरह कांग्रेस के पास कुल 23 विधायकों का समर्थन है। जबकि भाजपा के 25 विधायक हैं और दो आजसु के विधायकों ने भाजपा को समर्थन दिया है।  वहीं सीएम रघुवर दास को हराने वाले बाग़ी विधायक सरयू राय ने भी भाजपा को समर्थन दिया है। लिहाजा झारखंड में भी कांग्रेस की जीत मुश्किल है।