संगीत की जीवंत देवी ‘मां’ अन्नपूर्णा का निधन

By Anshuman Anand  |  First Published Oct 13, 2018, 4:53 PM IST

शास्त्रीय संगीत के पुरोधा बाबा अलाउद्दीन खान की पुत्री ‘मां’अन्नपूर्णा देवी का 91 साल की उम्र में देहांत हो गया। मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में आज तड़के 03:51 मिनट पर उन्होंने शरीर त्याग दिया। ‘मां’ अन्नपूर्णा देवी सुरबहार और सुरसिंगार सहित संगीत की कई विधाओं की विशारद् थीं।     

Orbituary to  Maa Annapoorna devi

चार भाईयों की लाड़ली बहन, मैहर घराने के यशस्वी पिता उस्ताद अलाउद्दीन खान और मदीना बेगम की पुत्री, दिग्गज सितारवादक पंडित रविशंकर की पूर्व पत्नी... ‘मां’ अन्नपूर्णा देवी के जीवन के साथ पता नहीं कितने रिश्ते-नाते जुड़े हुए थे। 

लेकिन जीवन के आखिरी पलों में उनके पास बचे थे मात्र कुछ स्नेही शिष्य। 

Orbituary to  Maa Annapoorna devi

इकलौता बेटा शुभेन्द्र ‘शुभो’ शंकर, 1992 में ही उन्हें अकेला छोड़कर चिरनिद्रा में लीन हो गया और प्रशंसकों का तो उन्होंने खुद ही त्याग कर दिया था। 

 अपने दुखी वैवाहिक जीवन की स्मृतियों से आहत होकर ‘मां’ अन्नपूर्णा देवी ने सार्वजनिक रुप से संगीत कार्यक्रम में प्रस्तुति ना देने की प्रतिज्ञा कर ली थी। उन्होंने अपनी आराध्या, मैहर की मां शारदा देवी और पिता उस्ताद अलाउद्दीन खान के सामने सौगंध उठाई थी, कि वह कभी सार्वजनिक कार्यक्रम में प्रस्तुति नहीं देंगीं। जिसका पालन उन्होंने ताउम्र किया। 

क्योंकि उन्हें लगता था, कि इन कार्यक्रमों में मिलने वाली प्रशंसा ने ही पंडित रविशंकर के साथ उनके सुखद वैवाहिक जीवन का सर्वनाश कर दिया है। 

1941 में पंडित रविशंकर से विवाह के बाद इन दोनों ने कई बार एक साथ कार्यक्रम दिए थे। 1950 के दशक में इन दोनों की जुगलबंदी बेहद हिट मानी जाती थी। लेकिन ऐसे हर कार्यक्रम के बाद समीक्षकों और प्रशंसकों की भीड़ पंडित रविशंकर की बजाए अन्नपूर्णा देवी को ही ऑटोग्राफ के लिए घेर लेती थी। पत्र-पत्रिकाओं में रविशंकर की बजाए उनकी तारीफों के पुल बांधे जाते थे। 

इन घटनाओं से पंडित रविशंकर का पुरुष स्वाभिमान बेहद आहत होता था। आखिरकार विवाद इतना बढ़ा कि 21 साल तक वैवाहिक जीवन बिताने के बाद दोनों ने अलग होने का फैसला कर लिया।

जिसके बाद उन्होंने देवी शारदा(मैहर) और अपने पिता के सामने प्रतिज्ञा की, कि वह कभी सार्वजनिक प्रस्तुति नहीं देंगी।

कहा जाता है, कि पंडित रविशंकर और अन्नपूर्णा देवी की इसी कहानी पर अमिताभ और जया की सुपरहिट फिल्म ‘अभिमान’ बनी थी।

स्टेज शो के बाद प्रशंसकों की तालियों की गड़गड़ाहट किसी भी कलाकार के लिए संजीवनी का काम करती है। लेकिन अन्नपूर्णा देवी ने इसका भी त्याग कर दिया था।

पंडित रविशंकर से तलाक के बाद उन्होंने रूशि कुमार पांड्या से पुनर्विवाह किया। लेकिन रूशि कुमार भी 2013 में उन्हें अकेला छोड़कर अंतिम यात्रा पर निकल लिए। 

इसके बाद कई दशकों तक वह अपने चुनिंदा शिष्यों को संगीत सिखाती रहीं। उनके प्रमुख शिष्यों में विख्यात बांसुरीवादक पं. हरि प्रसाद चौरसिया, मशहूर सितारवादक पीटर क्लॉट, उनके भाई सरोदवादक अली अकबर खान के बेटे आशीष खान भी शामिल हैं। 

अन्नपूर्णा देवी के नाम के आगे ‘मां’ शब्द लगाया जाता है। खास बात है, कि उनके भाई और पिता भी उन्हें ‘मां’ ही कहते थे। वह अपने घर में सबसे छोटी और सबकी लाड़ली थीं। इसलिए अन्नपूर्णा देवी के साथ ‘मां’ शब्द स्थायी रुप से जुड़ गया था। 
उनके स्वनामधन्य शिष्यों के लिए तो वह मातृस्वरुपा ही थीं। उन्होंने सार्वजनिक गायन को बहुत पहले ही बंद कर दिया था। लेकिन जिसको भी उन्हें सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, वह कहता है कि वह साक्षात् देवी स्वरुपा थीं। इसलिए उन्हें ‘मां’ कहने में किसी को कभी संकोच नहीं हुआ। 

हालांकि उन्होंने सार्वजनिक प्रस्तुति से दूर रहने की प्रतिज्ञा की थी। लेकिन सन् 1970 में मशहूर वायलिन वादक येहुदी मेहुनिन और विश्वविख्यात बीटल्स बैंड के परफॉर्मर्स ने उनकी कला की एक झलक देखने की इच्छा प्रकट की थी। 

इन लोगों के अनुरोध पर तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व.इंदिरा गांधी ने स्वयं ‘मां’ अन्नपूर्णा देवी से बात की थी। देश के प्रधानमंत्री की गुजारिश पर भी ‘मां’ सार्वजनिक प्रस्तुति के लिए तैयार नहीं हुईं। लेकिन उन्होंने इतनी छूट जरुर दी, कि जब वह अपना रोजाना का रियाज करने बैठें, तो यह विश्वविख्यात कलाकार उस समय वहां उपस्थित रह सकते हैं। 

मेहुनिन और बीटल्स बैंड परफॉर्मर्स ने इस यादगार प्रस्तुति को रिकॉर्ड कर लिया, जो कि उनका आखिरी प्रदर्शन माना जाता है। 

‘मां’ अन्नपूर्णा देवी ने भारत रत्न और पद्म भूषण जैसे सरकारी सम्मान स्वीकार करके इन पदवियों का मान बढ़ाया था। 

‘मां’ अन्नपूर्णा देवी अपने जीवन का आखिरी समय वह ज्यादातर एकांतवास में बिताती थी। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के मैहर जिले में हुआ था। जहां मां शारदा का अति प्राचीन मंदिर है, जो कि उनकी आराध्या भी थीं।

हालांकि उनका जन्म मुस्लिम घराने में हुआ था। लेकिन महान पिता अल्लाउद्दीन खान के संस्कारों के भूषित ‘मां’ अन्नपूर्णा देवी हमेशा धार्मिक भेदभाव के जंजाल से मुक्त रहीं। उनके जैसी दिव्यात्मा के लिए ऐसा करना स्वाभाविक भी था। 

उनकी उम्र 91(इक्यानबे) वर्ष हो चुकी थी। अब उनका यह जीर्ण शरीर उनकी महान आत्मा का बोझ उठाने के योग्य नहीं रह गया था। उन्होंने इस नश्वर शरीर का त्याग कर दिया है। लेकिन उनका यश, उनकी कीर्ति और कला के क्षेत्र में उनकी अद्वितीय देन अनंत काल तक याद रखी जाएगी।  

आइए आपको सुनाते हैं 'मां' अन्नपूर्णा की कुछ दुर्लभ प्रस्तुतियां

1. पंडित रविशंकर के साथ -

 

2. मां अन्नपूर्णा देवी- राग माझ खमाज

3. 'मां' अन्नपूर्णा देवी और पं.रविशंकर(राग यमन कल्याण)

4. अन्नपूर्णा देवी(सिंगल प्रस्तुति राग कौशिकी)

 

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