नई दिल्ली- नरेन्द्र मोदी सरकार गरीब सवर्णों को भी आरक्षण देने पर विचार कर रही है। इस मामले को लेकर सरकार और पार्टी में शीर्ष स्तर पर विचार विमर्श की प्रक्रिया जारी है।

सरकार के सूत्रों ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर माय नेशन को जानकारी दी, कि सरकार उन जातियों के लिए आय पर आधारित आरक्षण देने का प्रावधान कर रही है, जो अब तक आरक्षण व्यवस्था से दूर रहे। इससे पिछड़ी जातियों को दी जा रही वर्तमान आरक्षण व्यवस्था में कोई फर्क नहीं आएगी।

विचार यह है, कि एससी,एसटी और ओबीसी जातियों को दी जा रही वर्तमान आरक्षण व्यवस्था में बिना किसी हस्तक्षेप के, सवर्ण जातियों के गरीबों के लिए एक अलग से श्रेणी तैयार की जाएगी। सरकार के सूत्रों ने बताया, कि इस विषय में संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में कदम उठाए जा सकते हैं। 

इसके लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण की अधिकतम सीमा को 50(पचास) फीसदी तक सीमित रखने के आदेश को निरस्त करने के लिए संविधान संशोधन प्रस्ताव लाया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर तमिलनाडु, जहां जनसंख्या में जातियों के प्रतिनिधित्व के आधार पर 69(उनहत्तर) फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है। 

दिलचस्प यह है, कि बहुत सारे सवर्ण जाति के वोटरों ने पिछले दिनों मोदी सरकार की तीखी आलोचना की थी, क्योंकि सरकार ने शिड्यूल्ड कास्ट/शिड्यूल्ड ट्राइब अत्याचार निरोधक कानून मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया था। अदालत ने इस एक्ट में तत्काल गिरफ्तारी के मामले में कुछ सेफगार्ड अपनाने का आदेश दिया था, जिसे केन्द्र सरकार ने मानसून सत्र में संशोधन प्रस्ताव लाकर निरस्त कर दिया था।

इससे नाराज होकर कुछ संगठनों ने भारत बंद बुलाकर सरकार के फैसले के विरुद्ध प्रदर्शन किया था। बहुत से लोगों ने सोशल मीडिया पर 2019 चुनावों में 'नोटा आंदोलन' शुरु करने का कैंपेन चलाया था।  
और अब आर्थिक आधार पर आरक्षण का प्रस्ताव देकर मोदी सरकार ने सारे विरोध-प्रदर्शनों की हवा निकालने की योजना बना चुकी है।

खबर थी कि इस मामले में विपक्ष आग में घी डालने का काम कर रहा था और 2019 चुनावों से पहले हिंसक प्रदर्शनो की योजना बना रहा था। लेकिन अब उन्हें अपनी रणनीति पर फिर से विचार करना होगा। 

बीजेपी ने अपनी इस योजना को अमली जामा पहनाने से पहले ही तैयारियां शुरु कर दी थीं। यही वजह है कि दलित समुदाय से आने वाले बीजेपी नेताओं और एनडीए सहयोगियों ने सवर्ण आरक्षण के विषय में बयान देना शुरु कर दिया था। 

सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग के केन्द्रीय राज्य मंत्री रामदास अठावले ने पिछले शुक्रवार को लखनऊ में संकेत दिया था, कि शीतकालीन सत्र में सरकार क्या कदम उठाने जा रही है। उन्होंने गरीब सवर्णों के लिए 25(पचीस) फीसदी आरक्षण की वकालत की थी और इसके लिए आरक्षण सीमा को बढ़ाकर 75(पिचहत्तर) फीसदी तक ले जाने की बात कही थी। इससे पहले केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने भी सवर्णों के लिए 15 फीसदी आरक्षण की मांग की थी। 

सरकार के सूत्रों से माय नेशन को मिली जानकारी के मुताबिक आरक्षण सीमा 15(पंद्रह) से 25(पचीस) फीसदी के बीच हो सकती है। 

इससे पहले राज्य स्तर पर गुजरात में ऐसी कोशिश की जा चुकी है। जहां साल 2016 में बीजेपी सरकार ने 6 लाख प्रतिवर्ष से कम पारिवारिक आय वाले सामान्य श्रेणी के लोगों लिए 10 फीसदी आरक्षण की मांग की थी, लेकिन आरक्षण की अधिकतम सीमा पर सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या के आधार पर हाईकोर्ट ने इसपर रोक लगा दी थी।

राजस्थान में भी सरकार ने कुछ इसी तरह का प्रयास किया था, जिसमें सवर्ण जाति के गरीब लोगों को आरक्षण देने का प्रावधान था, पर वहां भी हाईकोर्ट ने इसपर रोक लगा दी थी। 

लेकिन अब संसद में संशोधन प्रस्ताव के जरिए आर्थिक आधार पर आरक्षण का रास्ता साफ किए जाने की कोशिश की जा रही है।