क्या पूरी दुनिया मोदी को ही पीएम के रुप में देखना चाहती है

By Avdhesh Kumar  |  First Published Apr 16, 2019, 4:31 PM IST

दुनिया भर के देश प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपने यहां के पुरस्कार प्रदान कर रहे हैं। अगर भारत की कोई संस्था उन्हें पुरस्कार देने की घोषणा करती तो हंगामा मच गया होता तथा चुनावी आचार संहिता आड़े आ जाता। लेकिन बाहरी देशों पर तो आचार संहिता लागू नहीं हो सकता। ऐसे में दुनिया के देशों द्वारा लगातार मोदी को ईनाम दिए जाने की घोषणा के क्या हैं मायने?

नई दिल्ली: भारत के आम चुनाव में दुनिया की कितनी अभिरुचि है उसका आभास प्रमुख देशों की मीडिया कवरेज से चल जाता है। पाकिस्तान की चर्चा यहां नहीं करुंगा क्योंकि वहां की मीडिया का तो इस समय मख्य मुद्दा ही भारत का चुनाव है। इमरान खान ने प्रथम चरण के चुनाव के ठीक पहले एक बयान दे दिया कि अगर नरेन्द्र मोदी सत्ता में वापस आते हैं तो भारत के साथ संबंधों के लिए बातचीत में आसानी होगी। मोदी के प्रति उनका इतना प्यार अनायास तो नहीं छलक सकता। जिसे वे छोटा आदमी कह चुके हैं, जिसके बारे में जहां संभव है अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान शिकायत कर चुका है उसके चुनाव जीतने की कामना करना कुछ लोगों को हैरत में डालने वाला  था। 

किंतु इसमें बहुत ज्यादा माथापच्ची करने की आवश्यकता नहीं है। इमरान को मालूम है कि भारत के चुनाव में पाकिस्तान अपने दुर्नीतियों के कारण मुद्दा बन जाता है। पुलवामा हमला सीमा पार वायुसेना कार्रवाई के बाद पाकिस्तान इस चुनाव में एक बड़ा मुद्दा है। जाहिर है, इमरान ने एक कुटिल चाल चली है। उन्हें पता है कि जिसके पक्ष में वे बयान देंगे उस पर अन्य पार्टियां हमला करेंगी, उसे अपना बचाव करना होगा एवं उसके कुछ वोट अवश्य कटेंगे। 

इस तरह उनका प्रकट मोदी प्रेम वस्तुतः भाजपा को नुकसान पहुंचाने के लिए था। आप पाकिस्तानी मीडिया पर होने वाली चर्चाओं को देख लीजिए कि मोदी को लेकर वहां क्या धारणा है। किंतु दुनिया भर में पाकिस्तान को छोड़कर कहीं से भी मोदी के विरोध में वातावरण का समाचार नहीं आ रहा है। उल्टे चुनाव की घोषणा के बाद से कुछ घटनाएं ऐसी हुईं जो कुछ और ही संकेत देतीं हैं। 

इस कड़ी में ये पंक्तियां लिखे जाने तक सबसे अंतिम घोषणा रुस की है। रूस ने कहा है कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान (ऑर्डर ऑफ सेंट एंड्रयू द एपोस्टल) देगा। इस पुरस्कार की स्थापना 17 वीं शताब्दी के अंत में रूस के तत्कालीन सम्राट ज़ार पीटर प्रथम ने की थी। इस सम्मान को अन्य पुरस्कारों के साथ अक्टूबर 1917 की क्रांति के बाद समाप्त कर दिया गया था। लेकिन, जुलाई 1998 में रूसी राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन द्वारा इसे दोबारा शुरू किया गया।  

हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस मायने में सौभाग्यशाली हैं कि रुस को मिलाकर उनको आठ अतंरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल जाएंगे। इनमें संयुक्त राष्ट्र का सर्वोच्च पर्यावरण सम्मान चैंपियंस ऑफ अर्थ द अवार्ड जैसा प्रतिष्ठित पुरस्कार भी शामिल है। 

इसका सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इनमें से चार सम्मान मुस्लिम देशों, सउदी अरब, फलस्तीन, अफगानिस्तान और संयुक्त अरब अमीरात ने दिया है। हम इसमें यहां विस्तार से नहीं जाएंगे कि मोदी को पुरस्कार मिलने के क्या मायने हैं। हां, यह अवश्य स्वीकार करना होगा कि देश में राजनीतिक विरोधियों की आलोचनाओं के परे विश्व स्तर पर उनका गहरा सम्मान है। 

किंतु यहां मूल प्रश्न दूसरा है। रुस ने अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान देने की घोषणा लोकसभा चुनाव अभियान के बीच कर दिया है। तो इसके राजनीतिक मायने अवश्य हैं।  भारत की कोई संस्था पुरस्कार देने की घोषणा करती तो हंगामा मच गया होता तथा चुनावी आचार संहिता आड़े आ जाता। बाहरी देशों पर तो आचार संहिता लागू नहीं हो सकता। तो क्या हैं इनके मायने?

ध्यान रखिए, ऐसा करने वाला रुस अकेला नहीं है। संयुक्त अरब अमीरात ने भी पिछले दिनों मोदी को सर्वोच्च नागरिक अवार्ड जायद मेडल से सम्मानित किए जाने की घोषणा की। चुनाव अभियान के बीच ही मोदी की संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा निर्धारित है। वहां वे सम्मान प्राप्त करेंगे तथा एक मंदिर का उद्घाटन करेंगे जिसके लिए जमीन उनकी पूर्व यात्रा के दौरान मिली थी। संयुक्त अरब अमीरात को भी मालूम है और रुस को भी कि इसका असर चुनाव पर पड़ सकता है। 

मतदाताओं को लगेगा कि उनके नेता का जब दुनिया इतना सम्मान कर रही है तो हम क्यों उसे हराएं। मंदिर उद्घाटन का असर भाजपा के मूल मतदाताओं पर होगा, क्योंकि यह पुरस्कार एक मुस्लिम देश संयुक्त अरब अमीरात दे रहा है। ऐसे में भाजपा यह प्रचारित करेगी कि देखो, आज विश्व के देश मोदी को अपने सर्वोच्च सम्मानों से नवाज रहे हैं। है कोई दूसरा नेता ऐसा दुनिया में जिनको इस तरह सम्मान मिल रहे हों? 


यह चुनाव में मोदी की छवि को उपर उठाने वाले निर्णय हैं। 2019 की शुरुआत से ही दुनिया को मालूम  था कि भारत में आम चुनाव की उल्टी गिनती शुरु हो गई है। बावजूद वे मोदी को अलग-अलग मंचों पर महत्व देते रहे तो यह अकारण नहीं हो सकता। पिछले फरवरी में उन्हें दक्षिण कोरिया ने अंतरराष्ट्रीय सियोल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया था। इसको एशिया का नोबल भी कहा जाता है। दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ने मोदी का दिया हुआ बंडी पहनकर तस्वीर ट्वीट किया जिसमें उनको अपना गहरा दोस्त बताया। 


तो क्या इन सब सम्मानों का संबंध भारत के आम चुनाव से भी हैं या आम चुनाव से ही है? क्या दुनिया के अनेक देश, जिसमें प्रमुख मुस्लिम देश भी शामिन हैं, मोदी को हर हाल में जीतते हुए देखना चाहते हैं? 

जिस तरह से अमेरिका खुलकर भारत के पक्ष में बयान दे रहा है वह प्रकारांतर से मोदी के पक्ष में ही है। उपग्रहरोधी मिसाइल परीक्षण पर इस समय अमेरिका ने जितना मुखर बयान दिया है वह भारतीय विदेश नीति की यकीनन बहुत बड़ी सफलता है। अमेरिका भारत के साथ इस तरह प्रखरता से खड़ा होगा इसकी कल्पना शायद ही किसी को हो।  अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन ने कहा है कि यह परीक्षण आत्मरक्षा के लिए उठाया गया कदम है। दो टूक शब्दों में कहा कि भारत अंतरिक्ष में पेश आ रही चुनौती और खतरों से चिंतित है, इसलिए उसने ए-सैट का परीक्षण किया। अमेरिकी कूटनीतिक कमान के कमांडर जनरल जॉन ई हीतेन ने सीनेट की शक्तिशाली सशस्त्र सेवा समिति से कहा कि भारत के एसैट से पहली सीख यह सवाल है कि उन्होंने ऐसा क्यों किया और मुझे लगता है कि उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वे अंतरिक्ष से अपने देश के समक्ष पेश आ रहे खतरों को लेकर चिंतित हैं। इसलिए उन्हें लगता है कि उनके पास अंतरिक्ष में अपना बचाव करने की क्षमता होनी चाहिए। यह भारत का हक है। 

याद करिए जब नासा ने कहा था कि भारत के मिसाइल परीक्षण से पैदा मलबों से अंतरिक्ष स्टेशनों को खतरा है तो पेंटागन ने इसका त्वरित खंडन किया था। उसे पता है कि चुनाव के समय ऐसे बयान मोदी के पक्ष ही जाएंगे। उसे यह भी अनुमान रहा होगा कि नासा के बयान के बाद विरोधी पार्टियां मोदी को कठघरे में खड़ा करेंगी। अभी कुछ ही दिनों पहले अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि मोदी अच्छे दोस्त हैं, लेकिन अमेरिकी सामान पर 100 प्रतिशत कर वसूलते हैं। ट्रंप यह संदेश देना चाहते थे कि अमेरिकी सामानों पर ज्यादा कर लगाने वाले देशों के खिलाफ हमने कार्रवाई की है, लेकिन भारत को इससे अलग रखा है तो मोदी के कारण। 

इन सबका सीधा निष्कर्ष तो यही निकलता है कि प्रमुख देश भी चाहते हैं कि मोदी आम चुनाव में जीतकर फिर से प्रधानमंत्री बनें। वे सीधे ऐसा नहीं कह सकते तो मोदी को सम्मानित कर रहे हैं, भारत के साथ खड़ा होने का बयान दे रहे हैं या फिर दूसरे तरीके से भारत को महत्व दे रहे हैं। 

आखिर रुस के राष्ट्रपति पुतिन को इसी समय मोदी को सर्वोच्च सम्मान देने की याद क्यों आई? पहले दौर का मतदान समाप्त होेने दूसरे दिन रुस का यह बयान आ गया। चुनाव में जीत हार कुछ भी हो सकता है। इसमें प्रधानमंत्री को सम्मानित करने का राजनीतिक अर्थ निकालना बिल्कुल सही है। 

आप सोचिए, 57 सदस्य देशों वाला इस्लामिक सम्मलेन संगठन ओआईसी ने इसके पहले भारत को घुसने नहीं दिया। इस बार अचानक उसने भारत को गेस्ट ऑफ ऑनर बना दिया। पाकिस्तान ने इसका विरोध किया लेकिन सउदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों तक ने उसको नजरअंदाज कर दिया। पाकिस्तान अंत में वहां नहीं गया किंतु ओआईसी ने भारत का निमंत्रण वापस नहीं लिया। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने वहां उद्घाटन भाषण दिया। ओआईसी के इतिहास में पहली बार प्रस्ताव का स्वर कश्मीर पर अत्यंत ही नरम था। 

अभी मालदीव के संसदीय चुनाव में पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नसीद की मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी की विजय हुई तो मोदी को धन्वयाद का बयान दिया गया। 

इन सबका कोई भी यदि राजनीतिक निष्कर्ष निकाले तो यही कहेगा ये सारे देश मोदी को प्रधानमंत्री पद पर बने देखना चाहते हैं। हम मोदी के विरोधी हों या समर्थक, किंतु यह सच है कि उन्होंने विदेशी नेताओं से कूटनीतिक दायरे में और उसके परे भी अपने व्यवहार से प्रभावित कर निजी संबंध विकसित किए हैं। दुनिया के मुद्दों पर सीधी बात करके तथा प्रमुख समस्याओं पर सही भूमिका निभाकर प्रभाव स्थापित किया है। 

इस समय दुनिया के प्रमुख देशों के नेताओं में मोदी के साथ मित्रता रखने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है। रुस के राष्ट्रपति ब्लादीमिर पुतिन भी अंतरराष्ट्रीय मसलों पर बातचीत के लिए मोदी को आमंत्रित करते हैं। दो दिनों तक दोनों की बातचीत होती है। चीन के राष्ट्रपति शि जिनपिंग भी कूटनीतिक बंधनों से परे खुलकर बात करने के लिए मोदी को वुहान बुलाते हैं। 

चीन के साथ अनेक मतभेद होते हुए भी शी से मोदी का सीधा संबंध बना हुआ है और उसके परिणाम भी आए हैं। डोकलाम में 72 दिनों तक भारतीय सेना भूटान के पक्ष में खड़ी रही तथा चीन को पीछे हटना पड़ा। तो ऐसा नहीं है कि संबंधों के लिए मोदी देश के मामले में कहीं नरम रवैया अपनाते हैं। 

सारे अफ्रीकी देशों का सम्मेलन दिल्ली में बुलाकर उसे अलग स्वरुप देकर एक साथ भारत को उनके निकट लाने का कदम उठाकर भी मोदी ने विश्वमंच पर अपनी छाप छोड़ी।  
सौर उर्जा के लिए अंतरराष्ट्रीय संगठन बनाया जिससे 104 देश जुड़ चुके हैं। 
आतंकवाद पर हर मंच से मोदी ने सबसे  ज्यादा मुखर आवाज दी है। 
इन सबसे दुनिया को शायद लगता है कि मोदी में नेतृत्व की बेहतर क्षमता है, उसके साथ कार्यव्यवहार आसान है, क्योंकि वह निर्णय लेता है, जो कहता है उस पर कायम रहता है तथा अंतरराष्ट्रीय-द्विपक्षीय मामलों पर उसकी दृष्टि साफ है। आश्चर्य नहीं होगा अगर चुनाव प्रक्रिया के बीच किसी देश से फिर ऐसी घोषणा हो जाए जो मोदी की छवि को और मजबूत करने वाला है। 

अवधेश कुमार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक हैं)
 

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