जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने आज फिर धमकी दी है कि अगर धारा 370 हटी तो कश्मीर में फिलीस्तीन इजरायल जैसे हालात पैदा हो जाएंगे। इससे पहले उमर अब्दुल्ला भी कश्मीर को अलग कराने संबंधी बयान दे चुके हैं। लेकिन इन कश्मीरी नेताओं की हिम्मत कैसे हो रही है इस तरह का देशविरोधी बयान देने की? दरअसल यह एक भ्रम के कारण के कारण हो रहा है कि धारा 370 या 35ए का कोई संवैधानिक अस्तित्व है। लेकिन ऐसा बिल्कुल ही नहीं है।
नई दिल्ली: देश की जनता नरेंद्र मोदी के भाषणों को इसलिए पसंद करती है क्योंकि चिकनी चुपड़ी बाते नहीं करते वरन ज्वलंत और बुनियादी समस्याओं को उठाते है। तेलंगाना में एक रैली को संबोधित करते हुए, मोदी ने कहा कि कांग्रेस के एक बड़े सहयोगी दल नेशनल कॉन्फ्रेंस ने बयान दिया है कि कश्मीर में अलग प्रधानमंत्री होना चाहिए। कांग्रेस को जवाब देना होगा। क्या कारण है कि उनके एक साथी दल इस प्रकार की बात बोलने की हिम्मत कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेशनल कांफ्रेस के उमर अब्दुल्ला को जवाब दिया कि मेरे रहते भारत का बंटवारा संभव नहीं है। मगर उमर अब्दुल्ला अब ट्वीट करके प्रधानमंत्री को से कह रहे हैं कि ये हमारी मांग नहीं है। यह तो वह शर्त है, जिसे भारत में विलय के समय तत्कालीन सरकार (नेहरू सरकार) ने स्वीकार किया था। यह भारत के संविधान में है। हम तो जो संविधान में लिखा है, वही मांग रहे हैं।
उमर को ये हिम्मत धारा 370 और अनुच्छेद 35 ए पर फैले भ्रम के कारण मिल रही है। इन दोनों के बारे में कहा जाता है कि इनसे ही कश्मीर को विशेष दर्जा मिला हुआ है।
इन दिनों धारा 370 को लेकर घमासान मचा हुआ है।केवल उमर अब्दुल्ला ही नहीं, पीडीपी अध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने धारा 370 को हटाने की कोशिश को लेकर इतनी नाराज है कि कश्मीर के भारत से अलग होने की धमकी दे रही हैं।
महबूबा ने कहा, अगर सरकार धारा 370 को खत्म करती है तो भारत और जम्मू-कश्मीर के रिश्ते खत्म हो जाएंगे। सोचने वाली बात यह होगी कि एक मुस्लिम बहुमत वाला राज्य, क्या यह आपके साथ भी रहना चाहेगा?
मुफ्ती ने कहा, 'आग से मत खेलें, 35ए का बाजा न बजाएं। अगर ऐसा हुआ तो आप वो देखेंगे जो 1947 से अब तक नहीं हुआ है। अगर इस पर हमला किया जाता है तो मैं नहीं जानती कि जम्मू कश्मीर के लोग तिरंगे की जगह कौन सा झंडा पकड़ने को मजबूर हो जाएंगे।'
जम्मू कश्मीर के दूसरे राजनीतिक दल नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने कहा कि उनकी पार्टी जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे पर किसी भी तरह के हमले को स्वीकार नहीं करेगी और ‘सदर-ए-रियासत’ और ‘वजीर-ए-आजम’ समेत राज्य के विलय की शर्तों की पुनर्बहाली की कोशिश करेगी।”
ये नेता भले ही जो भी बोल रहे हों, हकीकत यह है कि धारा 370 में कोई विशेष दर्जा नहीं है और 35ए असंवैधानिक है जो संविधान के साथ खिलवाड़ है।
देश और कश्मीर के राजनीतिक दल यह कहते है कि धारा 370 भारतीय संविधान का एक विशेष अनुच्छेद है, जो जम्मू-कश्मीर को भारत में अन्य राज्यों के मुकाबले विशेष अधिकार देता है। इस धारा के कारण ही कश्मीर भारत का अंग बना हुआ है। आखिर इस बात में कितनी सच्चाई है धारा 370 कश्मीर को विशेष दर्जा देता है ।
जिस भारत स्वतंत्रता अधिनियम के आधीन पाकिस्तान का निर्माण हुआ,उसमें जम्मू कश्मीर के राजा को निर्णय हेतु एक अधिकार प्राप्त हुआ। उनके द्वारा उसका उपयोग कर विलय पत्र पर हस्ताक्षर करते ही जम्मू कश्मीर भारत का अंग हो गया। भारत के संविधान निर्माण के लिए संविधान सभा में जम्मू कश्मीर के 4 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। 25 नवंबर 1949 को कर्ण सिंह ने घोषणा कर भारत के संविधान को स्वीकार किया। 26 जनवरी को लागू भारतीय संविधान के अनुच्छेद-1 में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि 15वें नंबर का राज्य जम्मू कश्मीर है।
26 जनवरी 1950 में जम्मू कश्मीर का नया संविधान लागू हुआ उसके प्रस्तावना के पहली पंक्ति में ही लिखा है कि जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है ।
एक जो सबसे बड़ा भ्रम है सबके मन में कि अनुच्छेद 370 राज्य को विशेष दर्जा या स्वायत्तता को दर्शाता है। यह जो अनुच्छेद है वह instrument of Accession है। इसमें विशेष दर्जे के बारे में कुछ नहीं लिखा ।
यहां मुख्यत: तीन बातें समझने की जरूरत है। वास्तव में 370 कोई विशेष दर्जा नहीं है। अनुच्छेद 370 वास्तव में एक प्रक्रिया है, जो एक अंतरिम व्यवस्था थी।
जब भारत में संविधान निर्माण का काम शुरू हुआ तब अधिमिलन के बाद प्रधानों की बातचीत समिति और संविधान सभा की मसौदा समिति की बैठक हुई जिसमें तीन बातें तय हुई।
एक भारत एक संघीय व्यवस्था रहेगा।
दूसरा सभी राज्य संविधान बनाने की प्रक्रिया में भाग लेंगे।
तीसरा सभी राज्यों का स्वयं का संविधान होगा।
कभी कभी लोग सवाल करते हैं कि जम्मू कश्मीर में संविधान सभा क्यों बनी।
इसका जवाब यह है कि अपना स्वयं का संविधान उन सभी राज्यों में बना जिनको भारतीय संविधान में पार्ट बी स्टेट कहा गया है। 1956 तक हर राज्य का अपना संविधान था। बाद में आम सहमति से पार्ट बी स्टेट के संविधान को 211 ए और अनुच्छेज 238 को समाविष्ट करके संविधान की मुख्यधारा में शामिल किया गया।
आजादी के समय यह तय हुआ था कि हर राज्य की संविधान सभा बनेगी और वह तीन काम करेगी। पहला अधिमिलन का सत्यापन करेगी। दूसरा राज्यों में संघ के संविधान का विस्तार और तीसरा वो अपना खुद संविधान बनाएंगे।
वास्तव में यहीं से अनुच्छेद 370 का प्रारंभ हुआ।18 अक्तूबर को संविधान सभा में सारी चर्चा हुई।आखिरी दिन केवल प्रस्तावना पर बहस हुई । वास्तव में वो जो आखिरी चर्चा हुई वह 306 ए के ऊपर ही थी। ऐसा क्यों हुआ ? उस समय समस्या यह थी कि जम्मू कश्मीर में युद्ध चल रहा था,परिस्थितियां विशेष थी। जम्मू कश्मीर में संविधान सभा बन नहीं सकती थी। तो भारत के संविधान का राज्य में विस्तार कौन करेगा तीन राज्यों में संविधान सभा की प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी। ये थे मैसूर,सौराष्ट्र और कोचीन। त्रावणकोर और अन्य राज्यों में प्रक्रिया चल रही थी।
लेकिन जम्मू कश्मीर में संविधान सभा कब बनना शुरू होगी किसी को मालूम नहीं था, भारत के संविधान को कैसे बढ़ाया जाएगा, यह किसी को स्पष्ट नहीं हो पा रहा था। इसलिए इस प्रारूप को लाने की जरूरत पड़ी।
अनुच्छेद के शीर्षक में साफ लिखा था – Temporary provision for the state of Jammu and kasmir इसलिए हमें स्पष्ट हो जाना चाहिए कि 370 कोई बाध्यता या विलय की शर्त नहीं थी।
भारतीय संविधान को लागू करने की जो प्रक्रिया शेष राज्यों में या तो पूरी हो चुकी थी या हो रही थी वह जम्मू काश्मीर में युद्ध के कारण संभव नहीं थी।बाद में जम्मू कश्मीर में भी संविधान सभा बनी उसमें विलय का अनुमोदन भी हुआ।
अनुच्छेद 370 कोई विशेष दर्जा नहीं देता तो समस्या कहां खड़ी हुई?
समस्या तब शुरू हुई जब उसकी व्याख्या दिल्ली समझौते के द्वारा 1952 में करनी प्रारंभ की और उसे पूरा करने के लिए संवैधानिक आदेश 1954 जारी किया।
अनुच्छेद 370-1बी के अंतर्गत जो प्रक्रिया निश्चित हुई अर्थात राज्य सरकार की सहमति, वह आदेश लागू किया वास्तव में यहीं से ये समस्या शुरू हुई। दरअसल अनुच्छेद 370 की आड़ में राजनीतिक धोखाधड़ी और संवैधानिक दुरूपयोग किया गया है।
इस आदेश के द्वारा जो धोखाधड़ी हुई जम्मू कश्मीर में या जिसके सारे भारत में मायने है उसके प्रति देश को जागरूक बनाने की जरूरत है। इससे अजीबोगरीब स्थिति पैदा हुई है। देश में दो तरह के लोग हो गए हैं,-एक वे नागरिक जो जम्मू कश्मीर के स्थायी निवासी हैं और दूसरे भारत के वे नागरिक हैं जो जम्मू कश्मीर के स्थायी निवासी नहीं हैं।
हैरानगी की बात यह है कि यह उस अनुच्छेद के कारण हुआ जिसको आजतक संविधान के मुख्य भाग से जोड़ा नहीं गया। यह बात अधिकांश लोगों को मालूम नहीं है।
बहुत सारी कानून की पुस्तकों में जम्मू कश्मीर राज्य से संबंधित एपेन्डिक्स को छापा ही नहीं जाता । इसलिए यह विषय लोगों के ध्यान में नहीं आया।अनुच्छेद 370 ने बहुत सारे सवाल खड़े किए हैं। क्या अनुच्छेद 370 के तहत संसद की शक्ति को सीमित किया जा सकता है। क्या यह संभव है कि भारतीय संविधान में सामान्य प्रशासनिक संशोधनों से नए अनुच्छेद डाले जा सकते हैं।
संवैधानिक आदेश (C.o. 1954) में कहा गया है कि अनुच्छेद 35 के पश्चात निम्नलिखित अनुच्छेद जोड़ लें, अर्थात 35 ए।
क्या संसदीय प्रक्रिया के बिना नया आदेश जोड़ा जा सकता है?
इस अनुच्छेद में कहा गया है कि जम्मू कश्मीर की विधानसभा स्थायी निवासी की परिभाषा निश्तित कर उनके विशेष अधिकार सुनिश्चित करे तथा शेष लोगों के नागरिक अधिकार सीमित करे।क्या देश के लोगों पर यह प्रतिबंध लगाया जा सकता है?
वास्तव में अनुच्छ्द 370 की आड़ में जो राजनीतिक धोखाधड़ी हुई है, उसका संवैधानिक दुरुपयोग हुआ है। जिसके कारण 120 लाख लोग पीड़ित हैं। देश के करीब 125 करोड़ लोगों के बीच भेदभाव पैदा कर दिया गया है। हमारे राजतंत्र को कमजोर बनाया गया है।
जम्मू कश्मीर में संविधान के 130 अनुच्छेद लागू नहीं हैं। लेकिन जो 262 अनुच्छेद लागू है उनमें भी 100 अनुच्छेदों में महत्वपूर्ण परिवर्तन के गए हैं जिन्हें समझने की जरूरत है। इनको लेकर देश में एकमत बनाने की जरूरत है।
धारा 370 में जम्मू कश्मीर को कोई विशेष दर्जा नहीं दिया गया है, दूसरी बात वह अस्थायी है। कश्मीर को जो विशेष दर्जा मिला है वह राष्ट्रपति के प्रशासनिक आदेश के कारण अनुच्छेद 35 में जोड़े गए 35ए के कारण जो एक संवैधानिक धोखाधड़ी है।
भारत सरकार के मध्यस्थ रहे दिलीप पडगांवकर जैसे लोग कहते हैं कि अधिमिलन पत्र और 1952 में हुए दिल्ली समझौते के तहत हमने जम्मू कशमीर को स्वायत्तता दी है। लेकिन यह हैरानी की बात है कि दिल्ली समझौता केवल दो राजनीतिज्ञों की आपसी समझ थी। दो नेताओं ने घर पर फैसले कर लिए और उन फैसलों को सारे देश पर थोप दिया है।
जम्मू कश्मीर के बारे में बहुत सारी बातें कहानियों में चलती आ रही हैं। जब विधि और दस्तावेजों की बात चलती है तो शेख अब्दुल्ला और नेहरू के भाषण सामने आ जाते हैं। लेकिन भाषण भी कभी कानूनी दस्तावेज नही होते हैं।
दिल्ली समझौता नेहरू और शेख ने बैठकर कर लिया कोई लिखित समझौता तो नहीं किया था। दिल्ली समझौते के तहत 35ए बनी जिसे अवैध तरीके से संविधान में जोडा गया। अब उसके खिलाफ मामला सुप्रीम कोर्ट में है। उसी को उसकी संवैधानिक वैधता के बारे में फैसला करना है। वह तो 35ए को रद्द भी कर सकती है।
इस तरह से यह विशेष दर्जा संविधान की देन नहीं नेहरू और शेख अब्दुल्ला की दोस्ती की देन है। जिन्ना के बारे में कहा जाता है जिन्ना द्विराष्ट्रवाद के प्रवर्तक थे। मगर एक व्यक्ति उनसे भी आगे बढ़ गया था जो त्रिराष्ट्रवाद का समर्थक था। जिसने जिंदगीभर कश्मीर एक स्वतंत्र देश के झूठ को अमली जामा पहनाने के ले काम किया। लोग उन्हें शेरे कश्मीर कहते थे। 1931 से उन्होंने इस स्वतंत्रता संग्राम की शुरूआत की 1982 तक उसके लिए लड़ते रहे.।इस दौरान शेख अब्दुल्ला ने जो बोया वही अलगाववाद अब जंगल बन चुका है।
हुर्रियत हो या आतंकी संगठन अपने तरीके से वही लड़ाई लड़ रहे हैं। जिन्ना और शेख अब्दुल्ला में एक समानता थी कि जिन्ना की पार्टी मुस्लिम लीग थी तो शेख अब्दुल्ला की मुस्लिम कांफ्रेस मगर भारत की आजादी के बाद नेहरू के कहने पर उन्होंने अपनी पार्टी का नाम बदल कर नेशनल कांफ्रेंस कर लिया और तब से भारत के सेकुलर राजनीतिक दलों को यह गलत फहमी हो गई कि उनकी पार्टी सेकुलर है।
असल में शेख ब्दुल्ला का स्वतंत्रता संग्राम जिहाद ही था। नेशनल कांफ्रेन्स के मुख्यालय का नाम मुजाहिद मंजिल था। मुजाहिद का मतलब होता है इस्लाम के लिए लडंनेवाला योद्धा। हुर्रियत और आतंकवादी ,पीडीपी इसी लड़ाई को आगे बढा रहे हैं।
धारा 370 और अनुच्छेद 35 ए जैसे अलगाववादी इंतजाम संविधान में क्यों किए गए। शेख अब्दुल्ला (उमर अब्दुल्ला के दादा) की महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने ये विषबेल बोई, जिससे कश्मीर एक नासूर बन गया।
जब महाराजा हरिसिंह ने विलय के लिए कोई शर्त् नहीं रखी थी तो अनुच्छेद 370 कहां से टपक पड़ा। भारत के प्रगतिशील बुद्धिजीवी यह मानते है कि कश्मीरियत नामकी कोई अजूबी चीज है जिसकी रक्षा के लिए यह बनाया गया मगर शेख अबदुल्ला के दिमाग में यह बात नहीं थी।
धारा 370 स्वतंत्र कश्मीर के एवज में किया गया समझौता था। इसके अलावा कश्मीरी मुसलमानों के पाकिस्तान के प्रति झुकाव को कम करने के लिए शेख अब्दुल्ला धारा 370 चाहते थे। वैसा संविधान में तो नहीं लिया गया, लेकिन उसे 35ए के जरिये जोड़ दिया गया। यह कश्मीरी मुसलमान पाकिस्तान की तरफ न जाने देने के लिए सौदेबाजी थी।
यह एक तरह से ऐसी ब्लैकमेलिंग थी। जिसमें कहा गया कि हम कश्मीरी मुसलमान पाकिस्तान की तरफ न जाएं ऐसा आप चाहते हैं तो हमारी मांगें मानिए। नहीं तो हम चले अपने धर्मबंधुओं के पास ।
इस शर्त से ही धारा 370 और 35ए का जन्म हुआ। उनके बेटे फारुख और पोता उमर भी इसी ढर्रे पर चलते रहे। मगर वे थोड़े आरामतलब और अवसरवादी थे। क
श्मीर के जानकारों का कहना है कि कश्मीर के नेताओं की यह खासियत रही है कि जब वे सत्ता में नहीं होते तो बैचेन और असंतुष्ट आत्मा हो जाते हैंऔर वे उलटी बातें बोलने लगते हैं।
वैसे भी फारूख आरामतलब नेता रहे हैं। उनका एक पैर कश्मीर और दूसरा पैर लंदन में होता है। जब राज्य में अशांति होती है तो वे लंदन में जाकर आराम फरमाते हैं जब राज्य में शांति स्थापित हो जाती है तो प्रगट होते हैं और बयानबाजी करते हैं। फारूख यूं भी अपनी बयानबाजी के लिए मशहूर रहे हैं।
उत्तरी कश्मीर के बांदीपोरा में एक जनसभा को संबोधित करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री उमर ने कहा कि जम्मू कश्मीर का भारत में विलय कुछ शर्तों के साथ हुआ था और अगर उनसे छेड़छाड़ हुई तो विलय की पूरी योजना ही सवालों के दायरे में आ जाएगी।
उन्होंने कहा, “जम्मू-कश्मीर बाकी राज्यों की तरह नहीं है। बाकी राज्य हिंदुस्तान में मिल गए। हम भारत के दूसरे राज्यों से इतर कुछ शर्तों के साथ उनसे मिले थे। क्या भारत में किसी और राज्य का अपना झंडा और संविधान है? हमारा विलय भारत में कुछ शर्तों के साथ हुआ था।”
उमर अब्दुल्ला ने कहा कि 70 साल बाद, राज्य के विशेष दर्जे का विरोध करने वाली शक्तियां शर्तों से पीछे हटने की कोशिश कर रही हैं।
उन्होंने कहा, “लेकिन हम अपने राज्य के दर्जे से छेड़छाड़ करने वाले किसी भी प्रयास का मुकाबला करेंगे। हम अपने विशेष दर्जे पर किसी और हमले की इजाजत नहीं देंगे। इसके विपरीत हम उसे फिर हासिल करने की कोशिश करेंगे जिसका उल्लंघन किया गया। हम अपने राज्य के लिये ‘सदर-ए-रियासत’ और प्रधानमंत्री पद फिर से हासिल करने के लिये प्रयास करेंगे।
बयान में उमर ने कश्मीर के अलग झंडे की बात की है और सवाल किया है कि क्या किसी राज्य का अलग झंडा है। मगर हमारे संविधान में हर राज्य के लिए लग झंडे का प्रावधान था। यह बात लग है कि सारे राज्य उसका इस्तेमाल नहीं करते ।
कर्नाटक चुनाव से पहले सिद्दारमैया ने कर्नाटक का झंडा बनाया था। असल में राज्य अलग झंडे से बचते है उन्हे तिरंगा पर्याप्त लगता है। इस तरह से अलग झंडा कोई विशेष दर्जा नहीं है।
कुल बात यह है कि धारा 370 विशेष दर्जा नहीं है और अनुच्छेद 35ए असंवैधानिक है। क्योंकि बिना संसद की सहमति के संविधान में कुछ भी जोड़ा नहीं जा सकता है।
सतीश पेडणेकर
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं)