कुछ समय पहले एक हॉलीवुड की फिल्म आई थी '300'। गेरार्ड बटलर की मुख्य भूमिका वाली इस फिल्म ने पूरी दुनिया में तहलका मचाया। युद्ध की पृष्ठभूमि बनने वाली फिल्में हमेशा से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती रही हैं। भारत के इतिहास में भी कई ऐसी लड़ाइयां लड़ी गईं, जिनकी कोई तुलना नहीं हो सकती। लेकिन ये सब इतिहास के पन्नों में दबकर रह गया। युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी बाहुबली जैसी काल्पनिक फिल्म की हैरतअंगेज सफलता के बाद भारतीय फिल्म निर्माताओं ने इतिहास के उन चमकदार पन्नों को टटोलना शुरू किया, जिनमें भारतीयों की शौर्यगाथा दर्ज है। 

कुछ ऐसी ही कहानी है सारागढ़ी की लड़ाई की। साल 1897...। उस समय भारत पर अंग्रेजों की हुकूमत थी। अंग्रेजी सेना के तहत 36 सिख रेजीमेंट के 21 जवानों ने अपनी वीरता से 10 हजार अफगानी हमलावरों को को नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया। सभी 21 सिख जवानों ने शहादत दी लेकिन अपनी पोस्ट पर कब्जा नहीं होने दिया। अतुलनीय शौर्य की इस कहानी को रुपहले पर्दे पर ला रहे हैं अभिनेता अक्षय कुमार। सारागढ़ी की लड़ाई पर आधारित फिल्म 'केसरी' जल्द ही रिलीज होने वाली है। बृहस्पतिवार को इस फिल्म का ट्रेलर रिलीज होने जा रहा है। 

12 सितम्बर 1897 को सारागढ़ी नामक स्थान पर यह युद्ध लड़ा गया था। आज यह जगह पाकिस्तान में है। सारागढ़ी किले पर बनी आर्मी पोस्ट पर ब्रिटिश इंडियन आर्मी की 36वीं सिख बटालियन के 21 सिख सिपाही तैनात थे। अफगानों को लगा कि इस छोटी सी पोस्ट को जीतना काफी आसान होगा, पर ऐसा समझना उनकी भारी भूल साबित हुई। 

दरअसल, भारत-अफगानिस्तान सीमा पर दो किले हुआ करते थे, गुलिस्तान का किला और लॉकहार्ट का किला। यह दोनों सीमा रेखा के छोरों पर थे। लॉकहार्ट का किला ब्रिटिश सेना के लिए था, जबकि गुलिस्तान का किला ब्रिटिश सेना के संचार का एक प्रमुख केंद्र हुआ करता था। इन दोनों के बीच में था सारागढ़ी का किला। सामरिक रूप से यह जगह महत्वपूर्ण थी, इसलिए यहां की सुरक्षा के लिए विशेष तौर पर 21 सिखों को तैनात किया गया था। अफगानिस्तान के औराकजई कबीला सारागढ़ी को हथियाना चाहता था। इसे लेकर ब्रिटिश सेना और अफगानियों में झड़पें शुरू हो गई थीं।

12 सितंबर 1897 की अल सुबह जब सारागढ़ी किले में तैनात सैनिक आराम कर रहे थे, करीब 10,000 अफगानियों ने उन पर हमला कर दिया। 21 सिख सैनिकों के लिए उन्हें रोकना एक बड़ी चुनौती थी। तुरंत दूसरे किले पर तैनात अंग्रेजी सेना को संदेश भेजा गया। लॉकहार्ट के किले पर अंग्रेजी अफसरों को बताया गया कि बड़ी संख्या में अफगानी हमलावरों ने चढ़ाई कर दी है, तुरंत मदद की जरूरत है। अफसर ने इतने कम समय में सेना भेजने में असमर्थता जताई। उन्हें मोर्चा संभालने या पीछे हटने को कहा गया।  

स्रोत - विकीपीडिया

हवलदार ईशर सिंह के नेतृत्व में सारागढ़ी पर तैनात सिख जवान चाहते तो मोर्चा छोड़कर वापस आ सकते थे, लेकिन उन्होंने भागने से अच्छा दुश्मन का सामना करने का फैसला किया। कुछ ही देर में वहां जबरदस्त युद्ध शुरू हो गया। दोनों तरफ से दनादन गोलियां चल रही थीं। कुछ ही समय में अफगानी हमलावर भी समझ गए कि जंग आसान नहीं है। उन्होंने एकजुट होकर किले पर हमला बोल दिया। किले का दरवाजा तोड़ने की कोशिश की लेकिन सिख सैनिकों की वीरता के आगे उनकी एक न चली। अफगानी हमलावर खिसिया गए, इसके बाद उन्होंने पीछे से किले की दीवार को तोड़ना शुरू कर दिया। कुछ देर बाद किले की दीवार टूट गई, अफगानी लड़ाके किले में घुस गए, अभी तक बंदूकों और बमों से चल रही लड़ाई तलवारों से लड़ी जाने लगी। इतनी बड़ी संख्या होने के बावजूद सिख सैनिकों ने हौसला नहीं खोया। सिख सैनिकों को गहरी चोटें लग चुकी थी, उन 21 सिख सैनिकों में कुछ ऐसे भी थे, जो पूरी तरह सिपाही नहीं थे। उनमें कुछ रसोईये थे तो कुछ सिग्नलमैन थे, लेकिन सभी अपनी पोस्ट को बचाने के लिए लड़ रहे थे।

हालांकि लड़ते हुए सभी 21 सिख सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए, लेकिन शहादत से पहले उन्होंने 600 से ज्यादा अफगानों को मौत के घाट उतार दिया औ सैकड़ों को घायल कर दिया। सिख सिपाही तब तक लड़ते रहे जब तक अंग्रेजी सेना की दूसरी टुकड़ी सारागढ़ी के पास नहीं पहुंच गई। इसके बाद ब्रिटिश सेना ने अफगानियों को पीछे खदेड़ दिया। सारागढ़ी पर कब्जे का उनका मंसूबा पूरा न हो सका। हालांकि जब ब्रिटिश सेना किले के अंदर पहुंची तो उन्हें 21 सिख जवानों की वीरता का अंदाजा हुआ। 

इस बहादुरी से अंग्रेज अफसर हैरान थे। उन्हें समझ में नहीं आया कि कैसे 21 बहादुरों ने इतनी बड़ी संख्या में आए अफगान हमलावरों को रोके रखा। सभी शहीद भारतीय सैनिकों को मरणोपरांत ब्रिटिश सल्तनत की ओर से बहादुरी का सर्वोच्च पुरस्कार 'इंडियन ऑर्डन ऑफ मेरिट' प्रदान किया गया। यह पुरस्कार आज के परमवीर चक्र के बराबर माना जाता है। 

सारागढ़ी आज पाकिस्तान के वजीरिस्तान में है। केसरी बाग अमृतसर और फिरोजपुर में इन 21 सिख फौजियों की याद में सारागढ़ी मेमोरियल गुरद्वारा साहिब स्थापित किए गए। इन 21 शहीदों में से ज्यादा शहीदों का संबंध फिरोजपुर और अमृतसर के साथ था। ऐतिहासिक सारागढ़ी गुरुद्वारा फिरोजपुर 1902 में बनाया गया।  इसका उद्घाटन 18 जनवरी, 1904 को पंजाब के उस समय के लेफ्टिनेंट गवर्नर चा‌र्ल्स मोंटगुमरी रिवाज ने किया था। 12 सितम्बर को सिख रेजीमेंट सारागढ़ी दिवस मनाती है। अभिनेता अक्षय कुमार की सारागढ़ी की लड़ाई पर आधारित फिल्म 'केसरी' जल्द ही रिलीज होने वाली है। बृहस्पतिवार को इस फिल्म का ट्रेलर रिलीज होने जा रहा है। 

सारागढ़ी में शहीद होने वाले जवान 

स्रोत- विकीपीडिया

हवलदार ईशर सिंह, नायक लाभ सिंह, लांस नायक चंद सिंह, सिपाही सुध सिंह, साहिब सिंह, उत्तम सिंह, नरैन सिंह, गुरमुख सिंह, जीवन सिंह, राम सिंह, हीरा सिंह, दया सिंह, भोला सिंह, जीवन सिंह, गुरमुख सिंह, भगवान सिंह, राम सिंह, बूटा सिंह, जीवन सिंह, आनन्द सिंह, और भगवान सिंह हैं।